रांची: झारखंड के विश्वविद्यालय अजब-गजब ढर्रे पर चल रहे हैं. यहां अव्यवस्थाओं की अंतहीन दास्तां हैं और समस्याओं की लंबी फेहरिस्त. भ्रष्टाचार का आलम यह कि खुद राज्यपाल और राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर सीपी राधाकृष्णन खुद सार्वजनिक तौर पर बोल चुके हैं कि यहां कुलपतियों की नियुक्ति पैसे लेकर की जाती रही है.राज्य के आठ में से पांच विश्वविद्यालय एडहॉक कुलपति के भरोसे हैं. चार विश्वविद्यालयों में प्रतिकुलपति नहीं हैं. 90 फीसदी कॉलेज बगैर प्रिंसिपल के चल रहे हैं. शिक्षकों के चालीस फीसदी पद रिक्त हैं. नॉन टीचिंग कैटेगरी में 60 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली हैं.


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तीन विश्वविद्यालय ऐसे हैं, जहां प्रोफेसर रैंक का एक भी शिक्षक नहीं है. सभी विश्वविद्यालयों को मिलाकर प्रोफेसर रैंक के शिक्षकों की गिनती करें तो यह दहाई अंक में भी नहीं पहुंचती है. इन विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की उम्मीदें यहां अव्यवस्थाओं की दीवारों से टकराकर किस तरह हर रोज लहूलुहान होती हैं, उसकी कहानियां तो अलग हैं.


स्नातक-स्नातकोत्तर की परीक्षाएं उत्तीर्ण कर चुके चार लाख से भी ज्यादा छात्रों को डिग्रियां नहीं मिली हैं. इसकी वजह यह है कि विश्वविद्यालय नियमित रूप से दीक्षांत समारोह नहीं आयोजित कर पा रहे हैं. जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप) उत्तीर्ण कम से कम पांच सौ छात्र ऐसे हैं, जिन्हें शोध निदेशक नहीं मिल रहे हैं. परीक्षाएं और रिजल्ट तय समय पर नहीं होने का मर्ज तो जैसे लाइलाज बन चुका है.


राज्य के चार सरकारी विश्वविद्यालयों -- हजारीबाग स्थित विनोबा भावे यूनिवर्सिटी, दुमका स्थित सिदो कान्हो मुर्मू, पलामू स्थित नीलांबर पीतांबर यूनिवर्सिटी और चाईबासा स्थित कोल्हान यूनिवर्सिटी में कुलपतियों के पद पिछले पांच महीनों से खाली हैं. इन पदों पर नियुक्ति के लिए चार महीने पहले शुरू हुई प्रक्रिया कब पूरी होगी, इसका ठोस जवाब किसी के पास नहीं है. इन पदों को भरने के लिए राजभवन ने आवेदन आमंत्रित किया था और इसके आधार पर उम्मीदवारों का साक्षात्कार भी ले चुका है. लेकिन इसी बीच एक अभ्यर्थी ने प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे कोर्ट में चुनौती दे दी. कोर्ट ने नियुक्ति पर रोक तो नहीं लगाई, लेकिन राजभवन के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि कोर्ट का फैसला आने के बाद ही नियुक्तियों की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी.


इधर, इसी बीच इस महीने की शुरुआत में एक कार्यक्रम में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने सार्वजनिक तौर पर यह बात कहकर सबको चौंका दिया कि राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों में पैसे लिए जाते रहे हैं, लेकिन वे अब ऐसा नहीं होने देंगे.


राज्यपाल ने हाल में ही धनबाद स्थित बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय (बीबीएमकेयू) के कुलपति को भ्रष्टाचार के आरोप में पद से हटा दिया था. झारखंड के विश्वविद्यालयों में कुलपति के बाद सबसे अहम पद प्रतिकुलपति का होता है. आठ में चार विश्वविद्यालयों, रांची विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय और कोल्हान विश्वविद्यालय में यह पद भी पिछले चार-पांच महीनों से खाली है.


इसी तरह छह विश्वविद्यालयों में कुलसचिव और सहायक कुलसचिवों के एक दर्जन पदों पर कोई अफसर नहीं हैं. विश्वविद्यालयों की वित्तीय व्यवस्था में वित्त पदाधिकारी की भूमिका बेहद अहम होती है, लेकिन सात विश्वविद्यालयों में यह पद भी खाली है.


हालांकि इनमें से कई पदों पर नियुक्ति के लिए हाल में विज्ञापन प्रकाशित कर आवेदन मंगाए गए हैं.


रांची स्थित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू), धनबाद स्थित बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय (बीबीएमकेयू) और पलामू स्थित नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय (एनपीयू) पलामू में 21-22 स्नातकोत्तर (पीजी) विभाग हैं, लेकिन किसी भी विषय में प्रोफेसर नहीं हैं. इन तीन विश्वविद्यालयों में विभागों के प्रमुख की जिम्मेदारी या तो एसोसिएट प्रोफेसर या सहायक प्रोफेसर निभा रहे हैं.


रांची स्थित मशहूर शिक्षण संस्थान रांची कॉलेज को वर्ष 2017 में यूनिवर्सिटी बनाया गया और इसे नया नाम मिला डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय. छह साल बाद भी यहां आज तक नए स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. पुराने शिक्षक रिटायर हो गए और अब यहां प्रोफेसर स्तर का एक भी शिक्षक नहीं. विडंबना यह है कि सभी सात विश्वविद्यालयों में इस पद के लिए पर्याप्त योग्य शिक्षक हैं लेकिन 23 वर्षों में उन्हें पदोन्नति नहीं दी गई है.


राज्य के विश्वविद्यालयों के अंतर्गत कुल 62 अंगीभूत कॉलेज हैं. इसमें से 90 प्रतिशत कॉलेजों में प्रिंसिपल का पद वर्तमान समय में रिक्त है. कामचलाऊ व्यवस्था के तहत प्रभारी प्रिंसिपल के भरोसे कॉलेज संचालित किए जा रहे हैं.


रांची यूनिवर्सिटी के अंतर्गत 18 अंगीभूत कॉलेज हैं. लेकिन स्थायी प्रिंसिपल सिर्फ तीन हैं. राज्य सरकार ने विधानसभा के पिछले सत्र में सीपीआई (एमएल) के विधायक विनोद सिंह के एक प्रश्न के जवाब में स्वीकार किया था कि राज्य के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के करीब 40 फीसदी पद खाली हैं. सरकार की ओर से जवाब में मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने कहा था कि शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए आरक्षण रोस्टर क्लीयरेंस का प्रस्ताव कार्मिक विभाग को भेजा गया है और नियुक्ति प्रक्रिया जल्द शुरू कर दी जाएगी.


उल्लेखनीय है कि राज्य गठन के बाद पिछले 23 सालों में सिर्फ दो बार विश्वविद्यालय शिक्षकों की नियुक्ति के लिए वैकेंसी आई है. वर्ष 2008 और वर्ष 2018 में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए वैकेंसी आई थी. इसके बाद से अर्हता रखने वाले अभ्यर्थी नियुक्ति होने का इंतजार कर रहे हैं.


राज्य के विनोबा भावे विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त शिक्षक डॉ शैलेश चंद्र शर्मा कहते हैं कि राज्य के कॉलेजों-विश्वविद्यालयो में शिक्षकों की नियुक्ति किन प्रक्रियाओं के तहत होगी, इसे लेकर सरकार के पास स्पष्ट पॉलिसी ही नहीं है. हकीकत यह है कि जो मौजूदा स्थिति है, उसमें शिक्षकों के रिक्त पदों पर अगले साल- दो साल में नियुक्ति के कोई आसार नहीं दिखते. राज्य की यूनिवर्सिटी में 500 से ज्यादा जेआरएफ पास अभ्यर्थियों को शोध निदेशक नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि राज्य के विश्वविद्यालयों में स्थायी शिक्षकों की कमी है. नेट पास करने के बाद भी इस राज्य में पीएचडी करना आसान नहीं है. राज्य के विश्वविद्यालयों में नॉन टीचिंग कैटेगरी में लगभग 60 प्रतिशत पद रिक्त है. तीन दशक से विश्वविद्यालयों में कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हुई है. अनुकंपा के आधार पर कुछ कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति हुई है. अनुबंध पर नियुक्ति कर्मियों के भरोसे काम चलाया जा रहा है.


(इनपुट आईएएनएस के साथ)