खूंटी के डोंबारी बुरु का शैल रकब हुआ जर्जर, प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान
डोंबारी पहाड़ पर सैकड़ों परिवारों के लोगों को अंग्रेजों की गोलियों का शिकार होना पड़ा था. इस मार्मिक इतिहास को अभिव्यक्त करने और यादों को ताजा रखने के लिए तात्कालीन बिहार सरकार के द्वारा 1987 ई में इस मानक स्थल का सुंदरीकरण और शैल रकब का निर्माण कराया था.
खूंटी : अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध जल जंगल और जमीन बचाने के लिए खूंटी जिले में जनजातीय समुदाय द्वारा तैयार प्रसिद्ध ऐतिहासिक बलिदान स्थल डोंबारी बुरु का शैल रकब मानक स्तूप जर्जर हो गया है. बता दें कि इस भूमि पर कभी बिरसा मुण्डा जनजातीय जनसमुदाय को एकजुट और एकमत होकर जल-जंगल-जमीन और धर्म संस्कृति को बचाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया था.
1987 ई में बिहार सरकार ने कराया था सुंदरीकरण
बता दें कि डोंबारी पहाड़ पर सैकड़ों परिवारों के लोगों को अंग्रेजों की गोलियों का शिकार होना पड़ा था. इस मार्मिक इतिहास को अभिव्यक्त करने और यादों को ताजा रखने के लिए तात्कालीन बिहार सरकार के द्वारा 1987 ई में इस मानक स्थल का सुंदरीकरण और शैल रकब का निर्माण कराया था. जो देखरेख के अभाव में आज जर्जर हो गया है. ग्रामीण बतलाते हैं कि जिस समय से बना है और एक बार भी इसका जीर्णोद्धार नहीं किया गया है. डोंबारी भगवान बिरसा मुंडा का अंग्रेजों के विरुद्ध जल-जंगल जमीन का ऐतिहासिक डोंबारी बुरु में शहीदों की यादगार में गांधी जी के सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी सिंगराय सिंह मानकी शहीद मेला लगाना आरम्भ किया. यहां प्रत्येक वर्ष डोंबारी बुरु में 9 जनवरी को मेला लगता है, जो आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया. इस बार भी नौ जनवरी को शहीदों को याद करने लोग आएंगे, पर स्थल की दुर्दशा का सुधार नहीं हो पा रहा है.
जनजातीय समुदाय ने अंग्रेजों का किया था विरोध
लांदुप निवासी समाजसेवी महादेव मुण्डा ने बताया कि बिरसा मुंडा की अगुवाई में जल-जंगल जमीन को अंग्रेजों से बचाने के लिए जनजातीय समुदाय एकजुट होकर विरोध किये थे और जमीन, अनाज के बाद जंगल पर भी टेक्स बांधने की अंग्रेजी चाल के विरुद्ध खड़ा हुए. अपनी संस्कृति बचाने वनभूमि प्रेम के लिए जान न्योछावर कर देने वाले जनजातीय समुदाय के सैकड़ों लोगों के बलिदान की याद में बना शैल रकब आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. जिसे ठीक करने की आवश्यकता है, जो पर्यटक स्थल भी माना जाता है और बाहर से भी अवलोकन करने आते हैं. इसे ठीक करना चाहिए. साथ ही गोवर्धन सिंह मानकी ने बताया कि जल-जंगल जमीन और अपना धर्म संस्कृति को बचाने के लिए जनजातीय समुदाय बिरसा मुण्डा के पीछे खड़ा होकर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध विगुल फूंका. जिसमें सैकड़ों नर-नारी बच्चे समेत बलिदान हो गए. जिनकी याद में शैल रकब बनाया गया है.
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