रांची : भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस किया, इस दौरान उन्होंने राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार के द्वारा स्थानीय को परिभाषित करने के लिए 1932 के खतियान को लेकर लगातार राज्य सरकार झारखंड की जनता को गुमराह करने का काम कर रही है. राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद कहा था कि 1932 खतियान आधार पर पूरा नहीं हो सकता, आज मुख्यमंत्री बिना सोचे समझे फैसले लेकर राज्य की जनता को गुमराह करने का काम कर रही है.


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आरक्षण और 1932 के खतियान को लेकर साधा हेमंत सरकार पर निशाना 
वहीं उन्होंने आगे कहा कि रेवड़ी की तरह आरक्षण की बढ़ोतरी से लगता ही नहीं कि इस राज्य में लोकतंत्र है, इस राज्य में राजा का शासन चल रहा है. रेवड़ी की तरह आरक्षण की बढ़ोतरी करने का काम हो रहा है. सरकार ने जो फैसले कैबिनेट में पास किए उनको पता है वह नहीं हो सकता. बावजूद जनता को भ्रमित और गुमराह करने के साथ जनता को ठगने का काम किया जा रहा है. 


राज्य सरकार ने ढाई सालों में 20,000 करोड़ों का भ्रष्टाचार किया- रघुवर दास 
ईडी द्वारा जारी की गई प्रेस रिलीज के बारे में रघुवर दास ने दावा किया कि 1 जिले में 1100 करोड़ का भ्रष्टाचार मुख्यमंत्री के विधायक प्रतिनिधि द्वारा किया गया. 12 जिलों में खनन, पत्थर, बालू समेत कई क्षेत्रों में राज्य सरकार ने ढाई सालों में 20,000 करोड़ों का भ्रष्टाचार किया. 


हेमंत सोरेन हर रोज नयी-नयी लोक लुभावनी घोषणाएं कर रहे हैं- रघुवर दास 
रघुवर दास ने आगे कहा कि पांच लाख नौकरियों के वादे के साथ सत्ता में आई हेमंत सरकार की वादाखिलाफी के कारण झारखंड के युवाओं में सरकार के खिलाफ आक्रोश है. साथ ही परिवार और अपने नजदीकी लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए हेमंत सरकार के संरक्षण में पिछले ढाई वर्ष में झारखंड के जल-जंगल और जमीन और खनिज संपदा की जमकर लूट हुई है. इसका उदहारण साहेबगंज जैसा एक पिछड़ा जिला है. इस एक जिले से ही ईडी की जांच में लगभग 1400-1500 करोड़ रुपये के अवैध उत्खनन की बात सामने आयी है. इस उत्खनन में मुख्यमंत्री के विधायक प्रतिनिधि का नाम सबसे आगे है. हेमंत सरकार के इन कारनामों के कारण झारखंड के लोग सरकार से काफी नाराज हैं. इसी नाराजगी और आक्रोश को दबाने और लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए हेमंत सोरेन हर रोज नयी-नयी लोक लुभावनी घोषणाएं कर रहे हैं. 


दास ने कहा कि इसी कड़ी में उन्होंने 1932 के खतियान और आरक्षण नीति की घोषणा भी की है. 15.11.2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ. राज्य गठन के बाद उस समय सरकार ने अधिसूचना संख्या 3389, दिनांक 29.09.2001 द्वारा एकीकृत बिहार के परिपत्र संख्या 806, दिनांक 03.03.1982 को अंगीकृत किया. जिसमें जिला के आधार पर स्थानीय व्यक्ति की पहचान उनके नाम, जमीन, वासगीत, रिकॉर्ड ऑफ राइट्स के आधार पर की गयी थी. इसी संदर्भ में माननीय झारखंड उच्च न्यायालय ने दो वाद यथा डब्ल्यूपी (पीआईएल) 4050/02 एवं वाद संख्या डब्ल्यूपी पीआइएल 2019/02 के मामले में 27.11.2002 को पारित अपने विस्तृत आदेश के जरिए स्थानीयता को परिभाषित किए जाने संबंधी संकल्प को गलत बताया था और स्थानीयता को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए थे. उक्त आदेश के आलोक में अनेक सरकारें आईं, कमेटियां बनाई गई, लेकिन स्थानीय व्यक्ति को परिभाषित करने और उसकी पहचान के मापदंड को निर्धारित करने का मामला विचाराधीन था. 


उन्होंने कहा कि जब हमारी भाजपा की सरकार आई तब हमने दिनांक 07.04.2015 को विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ सर्वदलीय बैठक की, सामाजिक संगठनों से परामर्श लिया तथा झारखंड के बुद्धिजीवियों के साथ विचार विमर्श किया. माननीय झारखंड उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए सुझाव को ध्यान में रखते हुए 7.4.2016 को स्थानीयता को परिभाषित करते हुए, उस नीति को नियोजन की नीति से जोड़कर भारी संख्या में झारखंड के बच्चे बच्चियों को नियुक्ति दी गई. हमारी सरकार ने स्थानीय निवासियों की परिभाषा को इस तरह से परिभाषित किया था कि किसी भी वर्ग को किसी भी प्रकार के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा. 


वर्तमान सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करने संबंधी निर्णय लिया है और इनको भी पता है कि इसे लागू करना न्यायालय की अवमानना होगी, इसलिए इनके द्वारा इस नीति को लागू नहीं किया जाएगा, ऐसी योजना बनाई गई है. उन्होंने कहा कि स्वयं मुख्यमंत्री 23 मार्च 2022 को इसकी वैधानिकता के बारे में राज्य की सबसे बड़ी पंचायत विधानसभा में घोषणा कर चुके हैं. इनके द्वारा यह कहा गया है कि 1932 वाली स्थानीयता की नीति को संविधान की 9वीं अनुसूची में सम्मिलित होने के उपरांत लागू किया जाएगा, जो कभी भी संभव नहीं हो पाएगा.


कहा कि स्थानीयता का मामला हो या आरक्षण का मामला, यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला है. साथ ही इस नीति को नियोजन से भी नहीं जोड़ा गया है. अतः स्पष्ट है कि सरकारी नियुक्तियों में भी वर्तमान में झारखंडवासियों को 1932 अथवा स्थानीयता का कोई लाभ नहीं मिल पाएगा. पांच लाख नौकरी देने के वादे को पूरा नहीं करने के कारण सरकार के प्रति युवक-युवतियों में रोष है. इसलिए यह स्थानीय नीति उलझाने, लटकाने और भटकाने की नियत से घोषित की गयी है.


जहां तक आरक्षण में बढ़ोतरी का निर्णय है, यह निर्णय भी असंवैधानिक है. इसे लागू करना असंभव सा प्रतीत होता है। इस तरह यहां के आदिवासी, मूलवासी और पिछड़ों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है. उन्हें धोखा दिया गया है. किसी को भी आरक्षण देने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार उस श्रेणी के छात्रों की संख्या और उनके प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना आवश्यक है. इसी क्रम में भाजपा सरकार के समय 2019 में राज्य के सभी जिलों के उपायुक्तों को सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था. इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिससे पता चलता है कि यह रिपोर्ट अभी तैयार नहीं हुई है. कहा कि अगर सरकार ने वह रिपोर्ट तैयार नहीं की है, तो आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने में कौन-कौन से कारक को ध्यान में रखा गया है, यह भी सरकार को सार्वजनिक करना चाहिए. 


पूर्व सीएम रघुबर दास के आरोप पर मंत्री मिथलेश ठाकुर ने पलटवार करते हुए कहा कि ठग कौन रहा ये उनको बताना चाहिए , आज तक उन्होंने ठगने का काम किया. ये सरकार जनता की सभी समस्याओं का समाधान करने वाली सरकार है. एक-एक समस्या का समाधान होगा, हवा हवाई काम हमलोग नहीं करते, ठोक बजा कर काम करते हैं. 
(रिपोर्ट- आशीष कुमार तिवारी)


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