रांचीः Republic Day History: भारत का संविधान, जिसके पन्ने 26 जनवरी 2022 को 73 साल पुराने हो रहे हैं. वह बीते 72 सालों के इतिहास को देख रहा है. बल्कि इससे भी पार 200 सालों के उस दौर को भी निहार रहा, जहां कहीं गूंज है 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' के नारों की. कहीं बूढ़े हो चले दरख्तों पर टंगे हैं फांसी के फंदे. जिस पर लटके क्रांतिवीरों ने वंदे मातरम कहा और आखिरी सांस ली. संविधान देख पा रहा ऐसी तमाम दरों-दीवारों और जर्रों को, जहां स्वतंत्रता की लौ जली थी और आज उसके निशान बाकी हैं. 


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रांची का पहाड़ी मंदिर
इन्हीं निशानियों में नजर आ रहा है, झारखंड का एक देव स्थल. रांची शहर का वो मंदिर जो न सिर्फ एक प्राचीन शिवाला है, बल्कि देशप्रेम की अमिट निशानी भी है. यह बलिदानियों का तीर्थ है. यहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दिन खास तौर पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है. यह है झारखंड की राजधानी रांची में स्थित पहाड़ी मंदिर, जिसे फांसीगढ़ी के नाम से जाना जाता है. 


सैकड़ों क्रांतिकारियों को दी गई फांसी
राजधानी रांची से कुछ दूर गांव में स्थित एक मंदिर है, पहाड़ी मंदिर. गुलामी के काल में इस मंदिर पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था. असल में इस मंदिर के प्रांगण में कई बार क्रांतिकारियों ने गुप्त योजनाएं बनाई थीं. जब अंग्रेजों को पता चला तो उन्होंने इस मंदिर को कब्जे में ले लिया और फिर यहां पहाड़ी पर स्थित पेड़ पर फांसी दी जाने लगी. खुले में फांसी देकर अंग्रेज लोगों में दहशत कायम करना चाहते थे. ऐसे में सैकड़ों क्रांतिकारियों को यहां फांसी दी गई. 


आजादी के बाद फहरा पहला तिरंगा
रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूर स्थित इस पहाड़ी बाबा मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था. ब्रिटिश काल में इसे 'फांसी गरी' और फांसी गढ़ी और फांसी गिरी भी कहा गया. आजादी के बाद रांची में पहला तिरंगा झंडा यहीं पर फहराया गया था. इसे रांची के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चन्द्र दास ने फहराया था.


उन्होंने यहां पर शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानियों की याद तिरंगा फहराया था. उसी समय से हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां तिरंगा फहराया जाता है. पहाड़ी मंदिर में एक पत्थर लगा हुआ है, जिसपर जिसमें 14 और 15 अगस्त, 1947 की आधी रात को मिली आजादी का संदेश भी लिखा हुआ है.