बोकारो : मॉडर्न युग में बच्चे मोबाइल की दुनिया में गुम हो रहे है. जिससे बच्चों के आंखों में असर पड़ने के साथ-साथ दिमाग में भी असर पड़ने लगा है. ऐसे में रंगारंग कार्यक्रम की दुनिया भी ओझल होता जा रहा है. जहां सर्कस जैसे मनोरंजन अब पुराने दिनों की बात हो गई है. ऐसे में इस कला को बचाए रखना हमसब की जिम्मेदारी है, ताकि ऐसे मनोरंजन को बचाया जा सके.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लुप्त होता जा रहा सर्कस और कलाकारों की कला 
बता दें कि सर्कस में कलाकार को भी काफी मेहनत करना पड़ता है और एक जगह से दूसरे जगह जाकर लोगों का मनोरंजन भी करते हैं. जब मोबाइल की दुनिया नहीं थी और टेलीविजन भी प्राय घरों में नहीं था. ऐसे समय में सर्कस ही एकमात्र मनोरंजन का सहारा रहता था जिसको लेकर लोगों को इंतजार रहता था. जहां बाघ और बब्बर शेर के साथ हाथी जैसे जानवरों के सहारे सर्कस के यह कलाकार मनोरंजन करते थे, लेकिन आज सर्कस में जानवरों पर प्रतिबंध लगने से इन कलाकारों को अपनी कला के जरिए दर्शकों को बांधे रखने के लिए काफी मेहनत करना पड़ता है. बोकारो में लगे सर्कस में तो कई अफ्रीकन कलाकार भी मौजूद है जो अपनी कला के जरिए दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लगे हुए हैं। ऐसे में जरूरत है सरकार और आम लोगों को कि इस कला को बचाए रखें और कलाकारों के हौसले को टूटने ना दें.


सर्कस को बचाए रखने के लिए सभी को आना होगा आगे
सर्कस एक ऐसा मनोरंजन है जहां बच्चे से बूढ़े तक आनंद उठा सकते हैं. सर्कस के नाम से फिल्म और सीरियल भी बना जहां कलाकारों के दर्द को दिखाया भी गया. किस तरीके से सर्कस जहां कलाकार अपनी दुख दर्द और पीड़ा को भूलकर दूसरे के मनोरंजन करने में लगे रहते हैं जोकर जो अपने दर्द को भूल कर दूसरे को हंसाने में लगे रहते हैं उस हंसी के पीछे भी उसका दर्द छुपा रहता है, लेकिन लोगों के मनोरंजन के लिए वह अपने दर्द को छिपाकर लोगों को हंसाते रहता है. ऐसे में जरूरत है इस कला को बचाए रखने की ताकि आने वाले समय में सर्कस के वजूद बचा रह सके और इसके कलाकार अपनी कला के जरिए लोगों का मनोरंजन कर सके.बोकारो के चास एसडीओ दिलीप सिंह शेखावत ने भी माना कि सर्कस को बचाए रखने के लिए सभी को आगे आना होगा।


इनपुट- मृत्युंजय मिश्रा 


ये भी पढ़िए-  NDA में नो एंट्री, भाव नहीं दे रही कांग्रेस, अपनों की नाराजगी और लालू-तेजस्वी का प्रेशर, कितनी मुश्किल में नीतीश कुमार?