रांची : झारखंड में कुल 81 विधानसभा क्षेत्र हैं और हर क्षेत्र का अपना अलग-अलग वोटों का गणित और सबका सियासी मिजजा भी अलग-अलग है. इनमें से कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां हमेशा से किसी एक दल का दबदबा बना रहा है वहीं कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां चुनाव के साथ ही सियासी फिजा बदल जाती है. झारखंड के रामगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है. यहां उपचुनाव के लिए सभी सियासी दलों ने अपनी कमर कस ली है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

रामगढ़ उपचुनाव के लिए 27 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. ऐसे में इस उपचुनाव क्षेत्र में इस बार किसके सिर जीत का सेहरा सजेगा, यह जानना जरूरी है और इसके लिए इस विधानसभा के 40 साल के इतिहास पर नजर डालकर ही पता लगाया जा सकता है कि यहां की सियासी फिजा कैसी रही है. 


यहां 40 सालों में जितने चुनाव हुए उसमें वर्ष 1997 से लेकर 2000 तक जितने भी चुनाव हुए उसमें किसी एक दल को जीत का स्वाद नहीं मिला. वहीं इस सीट से जनता पार्टी, कांग्रेस, भाजपा और सीपीआई के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. तब तक बिहार था और यहां इन पार्टियों के हिस्से जीत आई. लेकिन 2000 में झारखंड गठन के बाद 2001 में हुए पहले उपचुनाव में इस सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की. यहां का पहला उपचुनाव तब झारखंड के मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी को लड़ने का मौका मिला. वह मुख्यमंत्री बनने के समय दुमका लोकसभा सीट से सांसद थे. इस सीट पर यह उपचुनाव बाबू लाल मरांडी इसलिए लड़े क्योंकि 2000 में बिहार विधानसभा चुनाव के समय यह सीट सीपीआई के खाते में गई थी और यहां से शब्बीर अहमद कुरैसी जीते थे जिनका निधान हो गया था. बाबू लाल यहां से 2001 में चुनाव जीते. 


2005 से 2014 तक यह सीट आजसू के पास रही. आजसू नेता चंद्र प्रकाश चौधरी यहां से जीतते रहे. फिर वह गिरिडीह से 2019 में सांसद बन गए. फिर 2019 में आजसू को यह सीट गंवानी पड़ी और इसपर कांग्रेस का कब्जा हो गया. ऐसे में इस सीट पर चुनावी फिजा बदलती रही है. बता दें कि इस बार कांग्रेस बनाम भाजपा इस सीट पर हो रहा है. ऐसे में यह देखना जरूरी होगा कि इस सीट पर कब्जा आखिर किसका होता है.   


ये भी पढ़ें- कुशवाहा निकले तो जदयू ने पलटा दांव, CM पद की दावेवारी को लेकर उपेंद्र का फिर नीतीश पर निशाना