बगहा:Bansi Dham: यूपी-बिहार सीमा पर स्थित बांसी नदी में कार्तिक पूर्णिमा के स्नान दान करने का काफी महत्व है.पौराणिक कथाओं के मुताबिक शादी के बाद जनकपुर से अयोध्या लौटते वक्त भगवान श्रीराम ने माता जानकी के साथ यहां रात्रि विश्राम किया था और सुबह इस नदी में स्नान करने के उपरांत शंकर भगवान की पिंडी बनाकर पूजा की थी. लिहाजा प्रसिद्ध बांसी नदी तट पर एक ओर सीता राम की प्रतिमा स्थापित है तो दूसरी ओर भगवान शिव की मूर्ति लगाई गई है जो पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है.


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बिहार यूपी सीमा पर अवस्थित बांसी नदी के बारे में कहा जाता है की सौ काशी, नहीं एक बांसी. अर्थात काशी में सौ बार नहाने का जितना पुण्य मिलता है उतना महज एक बार बांसी नदी में नहा लेने से मिल जाता है. यही वजह है की कार्तिक पूर्णिमा के दिन बांसी नदी पर लाखों की संख्या में बिहार, यूपी और नेपाल के दूर दराज इलाकों से श्रद्धालु स्नान दान करने पहुंचते हैं और यहां रात्रि विश्राम कर कोसी भरने की भी परंपरा चली आ रही है.


बांसी नदी का पौराणिक महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि त्रेता युग में इस नदी तट पर भगवान राम की बारात ठहरी थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि माता सीता से विवाह पश्चात जब राम जी जनकपुर से अयोध्या जा रहे थे उसी दौरान बांसी नदी तट पर उनकी बारात ठहरी थी. अगले सुबह स्नान कर भगवान शिव की प्रतिदिन आराधना करने वाले भगवान राम ने यहां एक शिव लिंग की पिंडी बनाकर पूजा की थी. घने जंगल में स्थापित इस पिंडी के बारे में जानने वाले स्थानीय लोगों ने यहां बाद में पूजा-अर्चना शुरू कर दी. कालांतर में यहां एक शिव मंदिर स्थापित किया गया था.


अब यहां आने वाला हर श्रद्धालु बांसीघाट स्थित इस शिव मंदिर में पूजा-अर्चना किये बगैर नहीं लौटते हैं. इस स्थान के बारे में एक कहावत 'सौ काशी न एक बांसी' अर्थात काशी में सौ बार स्नान करने के बराबर बांसी में एक बार स्नान करने से ही पुण्य प्राप्त होता है. लेकिन सरकार और प्रशासन की उदासीनता के कारण यह नदी अब धीरे धीरे मृतप्राय होती जा रही है और सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा स्नान के मौके पर ही इसकी साफ सफाई होती है. नहाने वाला पानी स्थिर होने की वजह से बिल्कुल गंदा हो चुका है. ऐसे में समय रहते सरकार यदि इस पर ध्यान नहीं देती है तो बांसी नदी का अस्तित्व हीं खतरे में पड़ जाएगा.


इनपुट- इमरान अजीज


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