Chhath Puja 2023: भगवान आदित्य यानी ऊर्जा के देवता सूर्य को समर्पित छठ महापर्व की शुरुआत आज शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ हो गई है. 20 नवंबर को सप्तमी तिथि को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस त्यौहार का समापन हो जाएगा. ऐसे में आस्था के इस महापर्व का नाम छठ क्यों पड़ा और कौन है छठी मईया क्या इसके बारे में आप जानते हैं और कहां से इनकी उत्पत्ति हुई क्या इस विषय में आपको पता है? अगर नहीं तो इस लेख में हम आपको बताएंगे. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


36 घंटे तक निर्जला व्रत रखकर सूर्य की उपासना का यह महापर्व छठ व्रतियां मनाती हैं. 17 को नहाय-खाय, 18 नवंबर को खरना, 19 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य और फिर 20 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था का यह महापर्व अपने समापन की ओर जाएगा. ऐसे में पहले डूबते और पिर उगते सूर्य को अर्घ्य देने का यह त्यौहार सभी तरह के शारीरिक कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाला है. मान्यता है कि इस पर्व को अगर निःसंतान स्त्री या दंपत्ति करे तो उनकी झोली भी मां छठी की कृपा से भर जाती है. 


ये भी पढ़ें- Chhath Puja 2023: छठपूजा पर करें सूर्य के 108 नामों का जाप, फिर देखें चमत्कार


इस पर्व के बारे में सभी को पता है कि यह सूर्य की उपासना का त्यौहार है. लेकिन, इसके साथ ही इस त्यौहार में भगवान सूर्य के साथ छठी मईया की भी अराधना की जाती है. ऐसे में मान्यता और पौराणिक कथाओं की मानें तो छठी मईया को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और भगवान आदित्य की बहन के रूप में पूजा जाता है. 


छठी मईया को संतान का सुख देने वाली देवी के रूप में जाना जाता है. वहीं शरीर में ऊर्जा और स्वास्थ्य के देव सूर्य को माना गया है. ऐसे में यह भी कथा प्रचलित है कि भगवान ब्रह्मा ने अपने आप को दो भागों में विभाजित किया ताकि सृष्टि की रचना कर सकें. इसमें से एक भाग पुरुष का और एक भाग प्रकृति का बना.  इसके बाद प्रकृति ने अपने आप को 6 भागों में विभाजित किया. इसमें से एक भाग देवसेना थीं जिनको मातृ देवी भी कहा गया. इसी देवसेना का छठी अंश को छठी मईया कहा गया. 


छठी मईया को संतान का सुख देने वाली और उसकी रक्षा करनेवाली देवी के रूप में पूजा जाता है. ऐसे में किसी बच्चे के जन्म के बाद भी छठे दिन इसी देवी की पूजा की जाती है जिसे छठी कर्म कहा जाता है. यह बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं. वहीं इन्हें कात्यायनी देवी के नाम से भी पूजा जाता है. ऐसे में दुर्गापूजा के षष्ठी तिथि को इनकी पूजा इसी रूप में की जाती है.