Mahakumbh: देश भर में चार जगहों पर महाकुंभ का मेला लगता है. आपको बता दें इसमें से हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक शामिल है. जहां हरिद्वार में गंगा के तट पर, प्रयागराज में संगम तट पर, उज्जैन में शिप्रा के तट पर और नासिक में गोदावरी के तट पर महाकुंभ का मेला आयोजित होता है. इसके अलावा सनातन धर्म में अर्ध कुंभ के बारे में भी कहा गया है. ऐसे में आपको बता दें कि महाकुंभ की पूरी स्थिति गुरु ग्रह पर निर्भर करती है. 


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इसके पीछे की एक वजह यह है कि बृहस्पति को पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में 12 वर्षों का समय लगता है. ऐसे में हर बारह साल बाद महाकुंभ का मेला आयोजित होता है. ऐसे में 45 दिनों तक चलनेवाले इस विशाल मेले को दुनिया का सबसे पवित्र धार्मिक और सांस्कृतिक मेला कहा जाता है. 


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कुंभ को लेकर वर्णित है कि जब सूर्य और बृहस्पति मेष राशि और चंद्रमा मकर राशि में प्रवेश करेंगे तो उसके बाद अमावस्या की तिथि से महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित होगा. बता दें कि 2013 में कुंभ मेला हरिद्वार में लगा था. इसके बाद अगला कुंभ 2025 में लगेगा. यह 9 अप्रैल से 8 मई तक चलेगा. 


महाकुंभ के मेला 144 सालों में प्रयागराज में लगता है या पूर्ण कुंभ मेला 12 वर्षों बाद आता है. ऐसे में बारी-बारी से देश के इन चार हिस्सों में पूर्ण कुंभ मेले का आयोजन होता है. वहीं हर 6 साल में अर्ध कुंभ का आयोजन हरिद्वार और प्रयागराज में होता है. जबकि कुंभ मेले का आयोजन हर तीन साल पर अलग-अलग स्थानों में आयोजित किया जाता है. वहीं माघ कुंभ मेला हर वर्ष माघ के महीने में प्रयागराज में आयोजित होता है. 


कुंभ के आयोजन में सूर्य और बृहस्पति ग्रहों और राशियों की स्थिति पर निर्भर करता है. जब बृहस्पति का प्रवेश वृष राशि में और सूर्य मकर राशि में आते हैं तो प्रयागराज में कुंभ, जब सूर्य मेष राशि बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है तो हरिद्वार में, वहीं सूर्य और बृहस्पति जब सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तो नासिक में और बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में आते ही उज्जैन में इसका आयोजन किया जाता है.  


बता दें कि समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर देवता और दानवों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला था ऐसे में अमृत कलश से कुछ बूंदे पृथेवी पर गिरीं जिसमें पहली बूंद प्रयाग, दूसरी हरिद्वार, तीसरी उज्जैन, चौथी नासिक में गिरी. ऐसे में इन चारों जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है. वहीं देवताओं का 12 दिन 12 सालों के बराबर होता है ऐसे में 12 सालों के बाद महाकुंभ का आयोजन किया जाता है.