Ahoi Ashtami 2024: अहोई अष्टमी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर उन महिलाओं के लिए जो संतान प्राप्ति या अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं. यह व्रत कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है और व्रतधारी महिलाएं स्याहु की माला पहनती हैं. स्याहु माला का खास महत्व होता है और इसे पहने जाने के पीछे कई धार्मिक नियम और परंपराएं हैं.


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स्याहु माला क्या होती है और इसके पहनने के नियम
आचार्य मदन मोहन के अनुसार स्याहु माला एक खास माला होती है, जिसे चांदी से बना लॉकेट और मोती मिलाकर तैयार किया जाता है. इसे अहोई अष्टमी के दिन पूजा के बाद रोली का तिलक लगाकर धारण किया जाता है. माला को लाल धागे या मौली में पिरोया जाता है, जो रक्षा सूत्र के समान होता है. हर साल इस माला में एक चांदी का मोती जोड़ा जाता है, जिसे बच्चों की उम्र के अनुसार बढ़ाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से संतान को दीर्घायु और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.


स्याहु माला की पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और संतान की लंबी उम्र के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं. पूजा के लिए घर के मंदिर में अहोई माता की तस्वीर स्थापित की जाती है और मिट्टी के घड़े में पानी भरकर रखा जाता है. पूजा के दौरान स्याहु माला अहोई माता की तस्वीर पर चढ़ाई जाती है. फिर माला को तिलक करके गले में पहना जाता है. इस पूजा में संतान को साथ में बैठाकर पूजा करना शुभ माना जाता है.


इसके अलावा पूजा के बाद महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं. इस माला को दिवाली तक पहना जाता है और फिर इसे सुरक्षित रखा जाता है. मिट्टी के घड़े का पानी दिवाली के दिन बच्चों को नहलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा करने से यह माना जाता है कि अहोई माता का आशीर्वाद मिलता है, जिससे संतान को लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है. इस प्रकार अहोई अष्टमी का व्रत और स्याहु माला की पूजा संतान के लिए विशेष आशीर्वाद और सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है.


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