रांची : Shree Sammed ShikharJi: झारखंड सरकार द्वारा गिरिडीह स्थित जैन समाज के आस्था स्थल तीर्थक्षेत्र सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित किये जाने का विरोध जैन समाज के द्वारा लगातार जारी है. जैन समाज दिल्ली से लेकर मुंबई और देश के कोने-कोने में इसके खिलाफ सड़कों पर हैं. उनका साफ कहना है कि भले ही जैन समाज की आबादी देश में बहुत कम है लेकिन देश के कर में उनका योगदान बड़ा है. ऐसे में उनकी मांग पर विचार करना जरूरी है. जैन समाज श्री सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल घोषिक किए जाने का विरोध कर रहा है. उनका कहना है कि यह हमारी आस्था का केंद्र है ऐसे में इसे यदि पर्यटन क्षेत्र घोषित किया गया को तो यहां आनेवाली भीड़ की वजह से इसकी पवित्रता भंग होगी.


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बता दें कि धार्मिक स्थल और धर्म क्षेत्र को लेकर एक कास व्यवस्था होती है जिसके तहत यहां की पवित्रता भंग नहीं हो इसका खास ध्यान रखा जाता है. यहां ऐसी किसी गतिविधी को रोकने की व्यवस्था होती है जिसकी वजह से यहां की पवित्रता खंडित होती हो. ऐसै माहौल यहां आसपास तैयार किया जाता है. इसके लिए ऐसे तीर्थस्थलों पर तमाम तरह की पाबंदियां भी लगाई जाती हैं. 


सम्मेद शिखर ऐसे ही धर्मक्षेत्र में शामिल है जहां की पवित्रता खंडित ना हो इसके लिए यहां भी तमाम पाबंदियां लगाई गई हैं, अगर इसे टूरिस्ट प्लेस का टैग मिल गया तो यहां इस पवित्रता के खंडित होने का खतरा रहेगा. क्योंकि टूरिस्ट प्लेस पर लोग आनंद, मौजमस्ती और मनोरजंन पाने के उद्देश्य से आते हैं और इस तरह की तमाम साधन और सुविधाएं यहां लोगों को मिलती हैं.


अब आपको बताते हैं कि पर्यटन स्थल और तीर्थ स्थल में अंतर क्या है. पर्यटन स्थल वह होती है जहां लोग घूमने-फिरने, मौज-मस्ती करने, मनोरंजन करने और वहां की सौंदर्यता के साथ सुविधाओं का आनंद लेने के उद्देश्य से आते हैं. वहीं तीर्थस्थल एक किसी खास समुदाय के आस्था का केंद्र होता है. यहां लोग श्रद्धा के साथ अपने ईष्ट, आराध्य या देवी-देवताओं की पूजी-अर्चना और ध्यान, साधना के लिए पधारते हैं. ऐसे में इन तीर्थ स्थलों का एक ऐतिहासिक महत्व होता है और इसका एक विशेष महत्व होता है. 


जैन धर्म के अनुयायी इस पहाड़ी के शिखर को मानते हैं 'सम्मेद' शिखर 
मान्यता है कि जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थकरों ने यहीं से मोक्ष को प्राप्त हुए थे. यहां पहाड़ी पर इन 20 तीर्थंकरों के चरण चिन्ह अंकित हैं. जिन्हें 'टोंक' कहा जाता है. यहां जैन धर्म के दोनों पंथों श्वेताम्बर और दिगम्बर के मंदिर बने हुए हैं. ऐसे में इसकी महत्ता ज्यादा बढ़ा जाती है. जैन धर्म के अनुयायी इस पहाड़ी की शिखर को 'सम्मेद शिखर' कहते हैं. इस स्थान को 'मधुबन' के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है. इस पहाड़ी का नाम जैनों के 23 वें तीर्थंकर 'पार्श्वनाथ' के नाम पर 'पारसनाथ' पड़ा. इस पहाड़ी पर 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराने कई मंदिर हैं. दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी इस पहाड़ के दर्शन करने के साथ इस पहाड़ी की परिक्रमा करने भी आते हैं. 


पहाड़ की तलहटी से लेकर चोटी तक जैन मंदिरों की भरमार
पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी से लेकर चोटी तक बड़ी संख्या में जैन मंदिरों की श्रृंखला आपको देखने को मिल जाएगी, यहां एक छोटा मोटा जैनियों का शहर बसा हुआ है. इसे लोग 'मधुबन' के नाम से भी जानते हैं. यहां पहाड़ी की प्राकृतिक खूबसूरती और हरियाली के बीच अगर आप मंदिर में दर्शन करने जाना चाहते हैं तो आपको 1000 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी होंगी. यहां के बारे में आपको बता दें कि तलहटी से शिखर तक यहां लगभग 10 किलोमीटर की यात्रा पैदल करनी होती है. 


संथाल आदिवासी भी इसे देवता की पहाड़ी कहते हैं
संताल आदिवासी इस पहाड़ी पर अपने आराध्य देव 'मारंग बुरु' का निवास मानते हैं. ऐसे में वह इस पहाड़ी को देवता की पहाड़ी भी कहते हैं. यह संथाल-आदिवासी की आस्था का भी सबसे बड़ा केंद्र है. यहां संथाल आदिवासी बैसाख पूर्णिमा में एक दिन का शिकार त्यौहार मनाते हैं. 


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