मोतिहारी: बिहार के पूर्वी चंपारण में ऐतिहासिक सत्याग्रह का इकलौता जीता-जागता सबूत नीम का पेड़ अब सूख चुका है. ये पेड़ तुरकौलिया अस्पताल परिसर में स्थित था. ये वही पेड़ था, जहां से देश कि आजादी के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन की नींव रही थी.


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1917 में इसी नीम के पेड़ के नीचे महात्मा गांधी ने किसानों की पीड़ा सुनी थी. बापू ने यहीं से किसानों और रैयतों को एकजुट कर चंपारण सत्याग्रह और निलहा आंदोलन का बिगुल फूंका था. जो देश की आजादी के आंदोलन में पहला अध्याय बना. लेकिन अधिकारियों और राजनेताओं की उपेक्षा और उदासीन रवैये के कारण आज ये पेड़ सिर्फ इतिहास के पन्नों तक ही सिमट कर रह गया है. 


वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि सौंदर्यीकरण के नाम बने चबूतरे के कारण पेड़ का अस्तित्व खत्म हुआ है. इसके लिए स्थानिय लोग अधिकारियों को जिम्मेदार मानते है. उनका कहना है कि पेड़ सूखने की खबर जिलाधिकारी से लेकर वन विभाग तक को दी गई थी. यहां तक की मामलें की जानकारी राज्य सरकार के आलाधिकारियों तक को दी गई थी. लेकिन किसी ने भी मामलें पर संज्ञान तक नहीं लिया. लापारवाही की वजह से सत्याग्रह का इकलौता जीता जागता सबूत खत्म हो गया.


जानकारी के मुताबिक, स्थानीय लोगों ने पेड़ को बचाने का प्रयास किया, लेकिन सरकारी पैसे से बने चबूतरे को तोड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया. तो वहीं, वन विभाग के अधिकारी अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि सौंदर्यीकरण के नाम पर पेड़ के जड़ को चबूतरे में कैद कर टाइल्स और मार्बल के पत्थरों से दबा दिया गया. इससे पेड़ सूख गया है.


Preeti Negi, News Desk