पटना : राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के बाद सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन में खींचतान शुरु हो गई है. सीट शेयरिंग को लेकर हर बार बैकफुट पर रहनेवाली कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से साफ शब्दों में कह दिया है कि पिछले बार का की स्थिति इसबार नहीं दोहराया जाएगा. वहीं, आरजेडी नेता हैसियत और परिस्थिती के मुताबिक सीट शेयरिंग के जरिये मामला सुलझा लेने की बात कह रहे हैं.


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सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए में मचे घमासान पर मजे लूटनेवाले महागठबंधन के घटक दल अब खुद भंवर में उलझने लगे हैं. सभी को 2019 लोकसभा चुनाव में मिलने वाली सीटों की संख्या का डर सताने लगी है. इस मामले में कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि इस बार स्थिति अलग होगी.


दरअसल सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और आरजेडी के बीच हरबार खींचतान होती रही है. कांग्रेस को हरबार बैकफुट पर रहना पड़ा है. तालमेल नहीं होने की वजह से ही 2009 लोकसभा चुनाव में दोनों ही दलों को अलग चुनाव लड़ना पड़ा था. इस वजह से दोनों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. आरजेडी 22 से घटकर सीधे 4 सांसदों तक पहुंच गई थी. 


कांग्रेस को अपने वोट बैंक पर पूरा भरोसा है. यही वजह है कि पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की नजरें अधिक सीटों पर टिकी हैं. लेकिन आरजेडी के नेता कहते हैं कि हैसियत और परिस्थिती के मुताबिक सीटों के बंटवारे में कोई परेशानी नहीं होगी.


सीटों को लेकर आरजेडी की मुश्किलें इसबार और इसलिए बढ़ जाएंगी, क्योंकि इसबार कांग्रेस, एनसीपी के साथ दो नए सहयोगी और जुड़ गए हैं. जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्यूलर) और शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल है. पांच पार्टीयों के महागठबंधन में किसको कितनी सीटें मिलेंगी ये अभी तय नहीं है. यही वजह है कि बीजेपी के नेता महागठबंधन को भानुमति का कुनबा बता रहे हैं, जिसपर घर नहीं बनाया जा सकता.


कुल मिलाकर कहा जाए तो सीट शेयरिंग की राह न तो एनडीए के लिए आसान है और न ही महागठबंधन के लिए. ऐसे में एनडीए के साथ महागठबंधन के लिए भी अपना कुनबा बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है.