छपरा: आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद को मैट्रिक की शिक्षा देने वाला जिला स्कूल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. जहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी नहीं है. जो अपने आप में "स्वर्णिम अतीत का बदहाल वर्तमान" की कहावत को चरितार्थ कर रहा है. इतना ही नहीं बल्कि इस विद्यालय के कई भवन शिक्षा विभाग के कब्जे में है. हालांकि स्कूल प्रशासन के द्वारा शिक्षा विभाग को कई बार आवेदन दिया चुका है लेकिन आज तक अतिक्रमण मुक्त नहीं हो सका है कारण चाहे जो भी. जिला स्कूल भले ही देश को प्रथम राष्ट्रपति देने वाला विद्यालय रहा है पर इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद भी विद्यालय को ख्याति नहीं मिल सकी है.


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जिला स्कूल में वैसे तो नए और पुराने मिलाकर लगभग 40 कमरे है पर यहां के अधिकतर कमरों में विभागीय कार्यालय चलता है. शिक्षा विभाग के पास भवन की कमी होने के कारण विद्यालय में ही जिला शिक्षा पदाधिकारी का कार्यालय, डीपीओ कार्यालय, साक्षरता कार्यालय, कंप्यूटर सेंटर, निगरानी कार्यालय चलते हैं. वहीं अधिकतर समय विद्यालय में शिक्षा विभाग से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन होते रहता है. जिस कारण यह महान विद्यालय शिक्षा का केंद्र कम कार्यालय कैम्पस ज्यादा प्रतीत होता है.


हर साल 3 दिसंबर को देशरत्न की जयंती पर विद्यालय प्रशासन द्वारा एक परिचर्चा का आयोजन कर अपनी खानापूर्ति कर ली जाती है. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म वर्तमान में सिवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था लेकिन उनकी प्राथमिक व प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के जिला स्कूल से शुरू हुई थी. इस विद्यालय में राजेंद्र बाबू का नामांकन 1893 में आठवीं कक्षा में हुआ था. जो उस वक्त का प्रारंभिक वर्ग था. उस समय आठवीं वर्ग से उत्तीर्ण करने के बाद इसी स्कूल में नामांकन के लिए एंट्रेंस लिया जाता था. जिसे अव्वल दर्जा का वर्ग कहा जाता था.


राजेंद्र बाबु इतने कुशाग्र बुद्धि के थे की उन्हें वर्ग आठ से सीधे वर्ग नौ में प्रोन्नति कर दिया गया था. उन्होंने इसी जिला स्कूल से 1902 में एंट्रेंस की परीक्षा दी थी. जिसमे पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, वर्मा और नेपाल में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने प्रान्त का नाम रोशन किया था लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो उत्तर पुस्तिका कोलकाता से बिहार नहीं आ सका है. जिसमें अंग्रेज परीक्षक ने ऐतिहासिक टिप्पणी की है. इस विद्यालय के शिक्षक व छात्र जिला स्कूल को एक धरोहर के रूप में देखते है.


राजकीय इंटर कॉलेज जिला स्कूल को मॉडल स्कूल का दर्जा प्राप्त है लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. इस विद्यालय के कोने-कोने में राजेन्द्र प्रसाद की यादें जुड़ी हुई है लेकिन स्कूल की वर्तमान दशा व दिशा देख कर ऐसा नही लगता है कि इसका इतिहास इतना गौरवशाली रहा होगा. जर्जर भवन शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं का अभाव के बावजूद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में मात्र 18 शिक्षक है. जो 1100 छात्रों को पठन पाठन के अलावा अन्य गतिविधियों की शिक्षा देने का कार्य करते हैं. वही जिला स्कूल के प्राचार्य ने बताया कि विद्यालय में शैक्षणिक व्यवस्था सुचारू ढंग से चल रही है. शिक्षकों की संख्या भी पर्याप्त मात्रा में है.


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राजेन्द्र बाबू इसी विद्यालय में पढ़े है. यह जिला स्कूल के लिए गर्व की बात है. समय-समय पर छात्रों को देशरत्न से जुड़ी स्मृतियां और उनके उपलब्धियों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है. समय रहते अगर शिक्षा विभाग शिक्षा के इस मंदिर को संरक्षित नही किया तो वो दिन भी दूर नहीं जब गौरवशाली अतीत वाला यह स्कूल इतिहास के पन्नो में दफ़न हो जाए. ऐसे में जरूरत है इसे सजाने व संवारने की जिससे छात्रों को राजेंद्र बाबू की तरह बनने का प्रेरणा मिले.


इनपुट- राकेश कुमार सिंह


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