भारत नेपाल सीमा पर स्थित वाल्मीकीनगर के पिपराकुट्टी मोड़ पर मंगलवार को एक दुर्लभ प्रजाति का कछुआ देखने को मिला. इस कछुआ का वैज्ञानिक नाम निलसोनिया हरम या गंगेटिक बताया जा रहा है. इसको इंडियन सॉफ्टशेल टर्टल या फ़िर इंडियन पीकॉक सॉफ्टशेल टर्टल कहा जाता है. यह प्रायः भारत, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में ही पाया जाता है. भारत के अधिकांश नदियों में पाया जाने वाला यह कछुआ अब विलुप्त होने के कगार पर है. आशंका है कि नेपाल से बाढ़ छोड़े गए पानी में बहकर यह गंडक नदी में पहुंचा होगा और फिर वहां से रिहायशी इलाके में आ गया होगा.


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स्थानीय लोगों अंजनी सिंह, गजेंद्र यादव औऱ नसीम खान का कहना है कि इतना बड़ा कछुआ इससे पहले उन्होंने नहीं देखा था. इसकी लंबाई और वजन काफी ज्यादा है. यह तकरीबन 30 किलो का है. लोगों की सूचना पर WTI के लोगों ने आकर मौके से कछुआ का सफ़ल रेस्क्यू किया है. 


WTI रेस्क्यू टीम के सदस्य सुनील कुमार ने बताया कि मैंने और हमारे सहकर्मी मुकेश ने इस कछुआ को रेस्क्यू किया और वनरक्षी शशि कुमार के साथ कछुआ को ले जाकर सुरक्षित गंडक नदी में छोड़ दिया गया है. 


VTR के वन संरक्षक सह वन निदेशक डॉ. नेशामणि कहते हैं कि यह गंडक और गंगा समेत उसके सहायक नदियों में पाया जाने वाला दुर्लभ कछुआ है. पिछले कुछ समय से यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर था. लिहाजा अतिसंरक्षित जलीय जीव के तहत इसे उसी श्रेणी में रखा गया है. 


वहीं वाल्मिकी वसुधा परिवार के जीव जंतु विशेषज्ञ बीडी संजू का कहना है कि अमूमन इतने बड़े कछुआ समुद्र में पाए जाते हैं. समुद्री कछुए 200 से 300 किलो के होते हैं. वाल्मीकीनगर में इतना बड़ा कछुआ मैंने भी पहले कभी नहीं देखा है. इसे लेदर टर्टल कहा भी जा सकता है, क्योंकि इसकी खाल काफी मोटी है और यह बिल्कुल काला रंग का बड़ा और लंबा कछुआ है. 


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उन्होंने कहा कि वाल्मिकी टाइगर रिजर्व के लिए यह गौरव की बात है कि यहां की जलवायु किसी भी तरह के जीव जंतुओं के लिए काफी मुफीद साबित हो रही है और अकसर यहां नए नए जीव जंतु देखने को मिल रहे हैं.


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