पटना: बिहार विधानसभा में विधायकों ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून (एससी-एसटी एक्ट) को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया के आदेश पर पार्टी लाइन से हटकर विरोध जताया. बिहार विधानसभा की कार्यवाही शुरू होते ही राजद के भाई वीरेंद्र ने विपक्ष के वोटिंग की मांग को दरकिनार कर सदन में विनियोग (संख्या 2) विधेयक, 2018 के ध्वनिमत से पारित करने का मामला उठाया. विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने राजद सदस्यों को समझाया.  इसके बाद प्रश्नकाल सुचारू रूप से चला.


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शून्यकाल के दौरान अध्यक्ष के उक्त मामले को लेकर राजद विधायक शिवचंद राम द्वारा लाए गए कार्यस्थगन प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिए जाने विपक्ष और सत्तापक्ष में मौजूद इस समुदाय के विधायकों ने इसका जोरदार ढंग से विरोध किया. संसदीय कार्यमंत्री श्रवण कुमार ने यह कहकर विधायकों को शांत करने की कोशिश की कि यह मामला राज्य के क्षेत्राधिकार से बाहर का है इसलिए इस पर सदन में चर्चा कराया जाना उचित नहीं है.


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इस समुदाय के विधायकों द्वारा शोरशराबा जारी रखे जाने पर अध्यक्ष ने भोजनावकाश के आधे घंटे पूर्व ही सदन की कार्यवाही अपराह्न दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी. बाद में इस समुदाय के विधायक में सत्ता पक्ष से मंत्री महेश्वर हजारी, सदन में उपनेता श्याम रजक और रालोसपा विधायक संजय पासवान ने विधानसभा परिसर में धरना दिया.


सत्तापक्ष के विधायकों से इस धरना में शामिल होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वे पहले दलित हैं और अपने अधिकारों को शिथिल किए जाने के विरोध में अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. 


मोदी सरकार ने अभी तक स्पष्ट रुख नहीं लिया है 
नरेंद्र मोदी सरकार ने अभी तक इस बारे में कोई स्पष्ट रुख नहीं लिया है कि वह उच्चतम न्यायालय से अपने आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करे या नहीं. लेकिन दलित नेताओं ने इसके पक्ष में राय व्यक्त की है. इन नेताओं में भाजपा के भी नेता शामिल हैं. भाजपा के दलित सांसद उदित राज ने कहा कि अगर आदेश पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो उनकी पार्टी को राजनीतिक रूप से ऐसे समय नुकसान हो सकता है जब वह दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए समन्वित प्रयास कर रही है.


सरकार की ओर से उभर रहे संकेत के तहत, सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि ऐसी आशंका है कि आदेश से कानून अप्रभावी हो जाएगा और दलितों तथा आदिवासियों की न्याय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा कि उनकी राय में इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करना उचित होगा.


इनपुट भाषा से भी