DNA ANALYSIS: माना जाता है कि एकसूत्र में पिरोया समाज विकास के पथ पर समान रूप से आगे बढ़ता है. हमारे देश में सभी धर्मों के लिए कुछ नियम समान रूप से लागू हैं. अब आप छुट्टियों को ही ले लीजिए, 15 अगस्त, 26 जनवरी या 2 अक्टूबर को समान रूप से पूरे देश में छुट्टियां होती हैं. लेकिन बिहार सरकार ने बच्चों की छुट्टियों को लेकर एक ऐसा कैलेंडर जारी किया है, जो उन्हें ये सिखाता है कि वो विद्यार्थी नहीं है, बल्कि वो हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई हैं. हम ये इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने इस बार बच्चों की छुट्टियों के कैलेंडर को हिंदू और मुसलमान में बांट दिया है. उनकी नजर से देखें तो ये सामाजिक सद्भाव का अतुलनीय प्रयोग है. लेकिन इन कैलेंडर्स ने विवाद खड़ा कर दिया है. विवाद ये कि आखिर स्कूलों की छुट्टियों को हिंदू-मुस्लिम के रंग में क्यों रंगा गया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बिहार सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप


बिहार सरकार ने 27 तारीख को स्कूलों की छुट्टियों का वर्ष 2024 वाला कैलेंडर जारी किया था. इस कैलेंडर में छुट्टियों की संख्या 60 ही थी. लेकिन कई हिंदू त्योहारों की छुट्टियों को लिस्ट से गायब कर दिया गया था. इसको लेकर काफी विवाद हुआ. विवाद ये था कि आखिर हिंदू त्योहारों की छुट्टियों को लिस्ट से गायब क्यों कर दिया गया. इस लिस्ट में 22 ऐसे त्योहारों का जिक्र है जिनपर छुट्टियों का ऐलान किया गया है. इस लिस्ट में अगर आप गौर करें तो महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, तीज और जिउतिया जैसे त्योहारों को गायब कर दिया गया है. इसी वजह से बिहार में हंगामा हो गया. बिहार सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगने लगा.


दो अलग-अलग छुट्टियों के कैलेंडर


छुट्टियों को लेकर होने वाले विरोध को देखते हुए बिहार सरकार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की. जिसमें उन्होंने बताया कि मीडिया में छुट्टियों का जो कैलेंडर जारी किया जा रहा है. वो केवल उर्दू स्कूलों के लिए है. बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के मुताबिक उन्होंने वर्ष 2024 के लिए दो अलग-अलग छुट्टियों के कैलेंडर जारी किए हैं. छुट्टियों के इन दोनों कैंलेडर्स को संख्या 2,693 और 2,694 के तौर पर एक ही दिन यानी 27 नवंबर को जारी किया गया था. बिहार सरकार के शिक्षा विभाग का कहना है कि त्योहारों को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है. बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की तरफ से दो कैलेंडर जारी करने वाली बात ठीक है. हमारे पास स्कूलों की छुट्टियों को लेकर जारी किए गए दोनों कैलेंडर मौजूद हैं. 


कई छुट्टियां गायब


लेकिन अब सवाल ये है कि आखिर बिहार सरकार को अपने यहां के स्कूलों के लिए छुट्टियों के अलग-अलग कैलेंडर जारी क्यों करने पड़े. क्या बिहार सरकार अलग-अलग कैलेंडर जारी करके, बच्चों को हिंदू त्योहार और मुस्लिम त्योहारों में बांटने की कोशिश कर रही हैं. क्या बिहार सरकार का शिक्षा विभाग अपने यहां के स्कूलों, फिर चाहे उनकी मुख्य भाषा कोई भी हो, उनको बांटने की कोशिश कर रही हैं. सबसे पहले हम अधिसूचना संख्या 2,693 के कैलेंडर की बात करेगे. इस कैलेंडर की अधिसूचना में ऊपर लिखा हुआ है कि ये सभी प्रकार के राजकीय, प्रारंभिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक विद्यालयों के लिए जारी किए गए हैं. यानी सामान्य रूप से छुट्टियों का ये कैलेंडर, सभी स्कूलों पर लागू होता हैं. इसमें बाकायदा त्योहारों की लिस्ट दी गई है. करीब 27 त्योहारों पर छुट्टियों का ऐलान किया गया है. इसमें लगभग सभी धर्मों के त्योहार हैं. इसमें बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, होली, शब-ए-बारात, ईद, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर छुट्टियों की घोषणा की गई है.


स्कूलों में सभी धर्मों के त्योहारों पर छुट्टियां हों, इसको ध्यान में रखा जाता है. फिर चाहे वो त्योहारा हिंदू धर्म से जुड़े हो, इस्लाम से जुड़े हो, सिख धर्म से जुड़े हो या फिर ईसाई धर्म से जुड़े हों. आमतौर पर स्कूलों में हर धर्म के बच्चे पढ़ते हैं. और ये उनका हक है कि उनके परिवार में मनाए जाने वाले विशेष त्योहारों पर छुट्टियां हो, ताकि वो अपने परिवार के साथ त्योहार मना सकें. यही नहीं, हर धर्म के त्योहार पर सभी बच्चें मिलजुलकर उसका आनंद ले सकें, इसलिए भी त्योहारों पर छुट्टियां रखी जाती हैं. शायद ये पहली बार है जब धर्म के आधार पर छुट्टियों के अलग कैलेंडर बनाए गए है. बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की प्रेस विज्ञप्ति बताती है, कि उर्दू स्कूलों के लिए छुट्टियों का अलग कैलेंडर जारी किया गया था.


5 त्योहारों को हटा दिया गया


अधिसूचना संख्या 2,694 में भी छुट्टियों की लिस्ट जारी की गई है. इस अधिसूचना में भी ऊपर साफ-साफ लिखा है कि ये छुट्टियां, सभी प्रकार के राजकीय और अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त उर्दू स्कूलों के लिए हैं. इस लिस्ट में छुट्टियों के पहले कैलेंडर में शामिल 5 त्योहारों को हटा दिया गया है. उर्दू स्कूलों के लिए जारी नई लिस्ट में 22 त्योहारों को शामिल किया गया है. त्योहारों की उर्दू स्कूलों वाली लिस्ट की कुछ खास बातों पर हम आपका ध्यान खींचना चाहते हैं. पहली ये कि इस लिस्ट में बसंत पंचमी का जिक्र नहीं है. दूसरी ये कि महाशिवरात्रि को भी लिस्ट से हटा दिया गया है. तीसरी ये कि ईद और बकरीद के दोनों त्योहारों पर 3-3 दिन की छुट्टियां निर्धारित की गई है. सामान्य स्कूलों के कैलेंडर में 1-1 दिन की छुट्टियां निर्धारित हैं. चौथी ये कि मोहर्रम की छुट्टी को 2 दिन का किया गया है, जबकि सामान्य कैलेंडर में इस दिन एक दिन की छुट्टी निर्धारित है. 
पांचवीं ये कि उर्दू स्कूलों के कैलेंडर से जन्माष्टमी का त्योहार हटा दिया है. छठी ये कि भैया दूज को हटा दिया गया है.


उर्दू स्कूलों से इन छुट्टियों को क्यों हटाया


बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने उर्दू स्कूलों से इन छुट्टियों को क्यों हटाया है. इसको लेकर अभी तक कुछ नहीं कहा गया है. सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर उर्दू स्कूलों की लिस्ट से महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों का महत्व क्यों खत्म किया गया. क्या उर्दू स्कूलों के बच्चों को इन त्योहारों के बारे में पता होने की जरूरत नहीं है. क्या उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम बच्चों के लिए इन त्योहारों के कोई मायने नहीं है? छुट्टियों का अलग-अलग कैलेंडर, मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के अलावा कुछ नहीं है. भले ही कि इस मामले में खुलकर बिहार सरकार के लोग कुछ ना कह रहे हों, लेकिन सच्चाई ये है कि ईद की छुट्टियों की संख्या बढ़ाने के लिए, और कुल छुट्टियों की संख्या 60 ही रखने के मकसद से, इस लिस्ट से हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योंहारों को हटा दिया गया है. बहुत से लोग बिहार सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे होंगे, या ऐसे लोग, जो मानते हैं कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वालों को महाशिवरात्रि या जन्माष्टमी जैसे त्योहारों की छुट्टियों से कोई मतलब नहीं है.


अलग-अलग छुट्टियों के कैलेंडर क्यों जारी किए


क्या बिहार सरकार ये सोच रही है कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए हिंदू त्योहारों का कोई महत्व नहीं है. अगर ऐसा है तो क्या वो ये बता सकते हैं कि उर्दू कैलेंडर में होली, दुर्गा पूजा सप्तमी, दुर्गा पूजा, दीपावली और छठ जैसे हिंदू त्योहारों को क्यों शामिल किया गया है ? या फिर गुड फ्राइडे, क्रिसमस, या फिर गुरु गोविंद सिंह जन्म दिवस का त्योहार क्यों शामिल है? बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के मुताबिक जो बच्चे महाशिवरात्रि की छुट्टियां शायद नहीं चाहते, वो नवरात्रि की सप्तमी की छुट्टी चाहते हैं, वो होली की छुट्टी चाहते हैं, छठ मनाते हैं. क्या उर्दू स्कूल जन्माष्टमी नहीं चाहता है, लेकिन दिपावली, क्रिसमस की छुट्टी चाहता है? ये वो सवाल हैं जिसका जवाब बिहार सरकार को देना चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि स्कूलों के बच्चों को हिंदू और मुस्लिम में बांटने के लिए उन्होंने दो अलग-अलग छुट्टियों के कैलेंडर क्यों जारी किए. आखिर वो क्या वजह थी कि उनको, सामान्य स्कूलों के लिए अलग और उर्दू स्कूलों के लिए अलग छुट्टियों की जरूरत पड़ गई.


बिहार में 2600 उर्दू स्कूल


स्कूल कोई भी हों, उनमें हर धर्म, वर्ग और जाति के बच्चे पढ़ते हैं. क्या बिहार सरकार उर्दू स्कूलों के लिए अलग छुट्टियों का कैलेंडर जारी करके, ये बताना चाहती है कि उर्दू स्कूलों में अन्य धर्मों के बच्चे नहीं पढ़ते. क्या उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले हिंदू बच्चों को महाशिवरात्रि या जन्माष्टमी का त्योहार मनाने का अधिकार नहीं हैं. बिहार सरकार की छुट्टियों वाली आधिकारिक लिस्ट से तो यही लगता है कि वो उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले हिंदू बच्चों के अधिकार छीन रहे हैं. बिहार में 2600 उर्दू स्कूल हैं. इन उर्दू स्कूलों के लिए छुट्टियों के अलग कैलेंडर पर तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लग रहे हैं. हिंदू त्योहारों को हटाया जाना इसका एक उदाहरण है. यही नहीं, उर्दू स्कूलों में साप्ताहिक अवकाश को लेकर भी विवाद है. अधिसूचना संख्या 2694 में 12वें और 13वें पॉइंट में कुछ ऐसा लिखा है, जिससे ऐसा लग रहा है, जैसे बिहार में कुछ इलाकों की DEMOGRAPHY बदली है तो वहां के स्कूलों को बहुसंख्यक समुदाय के हिसाब से बदलाव करने के आदेश दिए गए हैं.


शुक्रवार के दिन साप्ताहिक अवकाश


12वें पॉइंट में ये बताया गया है कि राज्य के उर्दू स्कूलों में शुक्रवार के दिन, साप्ताहिक अवकाश रखा जाएगा. रविवार को स्कूल सामान्य रूप से खुले रहेंगे. उर्दू स्कूलों में आमतौर पर मुस्लिम छात्रों को संख्या ज्यादा रहती है. बिहार सरकार के शिक्षा विभाग का मानना है कि इस्लाम में जुमा या शुक्रवार का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए उस दिन साप्ताहिक अवकाश कर दिया जाए. ये बात फिर भी समझ में आती है. लेकिन इसी के नीचे 13वें पॉइंट में लिखा है अगर कोई स्कूल मुस्लिम बहुल क्षेत्र में है, और वो उर्दू स्कूलों की तरह शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश करना चाहता है, तो इलाके के जिलाधिकारी से अनुमति लेकर छुट्टी कर सकता है. यानी बिहार सरकार ने एक तरह से मुस्लिम बहुल आबादी वाले क्षेत्रों के स्कूलों को बहुसंख्यकों की इच्छा पर साप्ताहिक अवकाश बदलने का अधिकार दे दिया है. क्या बिहार सरकार का शिक्षा विभाग, हिंदू बहुल क्षेत्र में बहुसंख्यक हिंदू आबादी के दबाव बजरंगबली के नाम पर मंगलवार को साप्ताहिक अवकाश घोषित करने की अनुमति दे सकता है? या फिर शिव जी के नाम पर सोमवार को साप्ताहिक अवकाश करने की अनुमति दे सकता है?


छुट्टियां सर्वधर्म समभाव के आधार पर


स्कूलों की छुट्टियां सर्वधर्म समभाव के आधार पर तय की जानी चाहिए. ऐसा नहीं है कि हिंदू बहुल स्कूल में ईद की छुट्टियां खत्म कर दी जाएं,क्योंकि वहां के हिंदू बहुल छात्र ईद नहीं मनाते. या फिर ऐसा नहीं होना चाहिए कि अगर कोई सिख स्कूल है तो वहां के कैलेंडर से होली-दिवाली की छुट्टी खत्म कर दी जाए. या फिर ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि अगर कोई उर्दू स्कूल है तो वहां के कैलेंडर से हिंदू त्योहारों को नामोनिशान ही मिटा दिया जाए. आखिर बिहार सरकार का शिक्षा विभाग, सामान्य स्कूलों और उर्दू स्कूलों की छुट्टियों को लेकर धार्मिक भेदभाव क्यों कर रहा है. क्या प्रदेश के सभी स्कूलों के लिए एक जैसी छुट्टियां नहीं हो सकती हैं? पूरे देश में छुट्टियों को लेकर अलग-अलग तरह के नियमों का पालन होता है. जैसे वर्ष के तीन दिन ऐसे चुने गए हैं. जिस दिन सभी राज्यों के संस्थानों को छुट्टी घोषित करनी पड़ती है. ये नियम The National & Festival Holiday Act के तहत सभी पर लागू होते हैं. जिसमें पहला है 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस, दूसरा है 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस, तीसरा है 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती. इसके अलावा Ministry Of Personnel Grievances & Pension केंद्रीय कर्मचारियों के लिए छुट्टियों की एक लिस्ट तैयार करता है.


छुट्टियों की दो श्रेणियां


इसमें छुट्टियों की दो श्रेणियां होती हैं. जिसमें पहली है Gazetted List और दूसरी है Restricted List...इसे वैकल्पिक छुट्टियों के तौर पर भी माना जाता है. Gazetted List में 12 से 14 दिनों की छुट्टियां शामिल की जाती हैं. जबकि Restricted List में कई अन्य तरह की छुट्टियां शामिल होती हैं. केंद्रीय कर्मचारी Gazetted List में शामिल छुट्टियों के अलावा, Restricted List, जिसे वैकल्पिक छुट्टियां भी माना जाता है, उनमें से भी कुछ छुट्टियों खुद से चुन सकते हैं. आमतौर पर Gazetted List में जिन छुट्टियों का जिक्र होता है, उनका पालन बैंक कर्मचारी भी करते हैं. यही नहीं इन छुट्टियों को देशभर के राज्य और संस्थान अपने कैलेंडर में शामिल कर लेते हैं. Gazetted List की छुट्टियों में होली, दिवाली, गुड फ्राइडे, बुध पूर्णिमा, ईद, मोहर्रम, क्रिसमस और गुरू नानक जयंती जैसे त्योहारों की छुट्टियां शामिल होती हैं. Restricted List जिसमें वैकल्पिक छुट्टियां शामिल की जाती हैं. उनमें शामिल त्योहारों को राज्य और देशभर के संस्थान अपने अपने हिसाब से चुन लेते हैं. इन छुट्टियों में मकर संक्रांति, शिवाजी जयंती, बैसाखी, रक्षाबंधन और भैया दूज जैसे त्योहार आते हैं. इन छुट्टियों को क्षेत्र के हिसाब से संस्थान या राज्य अपने कैलेंडर में शामिल करते हैं.


State Holiday List


जैसे दक्षिण भारत में भैया दूज, बैसाखी, लोहड़ी जैसे त्योहार कम मनाए जाते हैं, तो वहां के संस्थान इसकी छुट्टियां कैलेंडर में शामिल नहीं करते. इसी तरह से उत्तर भारत में पोंगल की छुट्टियां नहीं होतीं. इसके अलावा कुछ ऐसी छुट्टियां भी होती हैं, जो राज्य सरकारें खुद से तय कर लेती हैं. इसे State Holiday List कहते हैं. इसमें राज्य सरकार अपने राज्य के महत्वपूर्ण दिनों पर छुट्टियां घोषित करते हैं, इसमें क्षेत्रीय त्योहार भी होते हैं, इसमें किसी महापुरुष की जयंती भी हो सकती है. राज्य सरकारें जो छुट्टियां तय करती हैं, वो राज्य के कर्मचारी और सरकारी स्कूलों पर लागू होते हैं. यानी छुट्टियों को लेकर Gazetted List और Restricted List वाले त्योहारों को राज्य और संस्थान, अपने हिसाब से छुट्टियों के अपने कैलेंडर में शामिल करते हैं. और जरूरत पड़ने पर अपने राज्य के विशेष त्योहारों या महापुरुषों की जयंती पर भी छुट्टियां घोषित कर लेते हैं. जहां तक जन्माष्टमी की बात है तो Gazetted List में भी इस त्योहार की छुट्टी निर्धारित हैं. लेकिन ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है,जिसमें किसी राज्य ने किसी खास समुदाय से संबंधित शिक्षण संस्थानों के लिए इनको हटा दिया हो.