नई दिल्लीः तीन तलाक पर आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं को 1400 साल पुरानी पंरपरा के नाम पर हो रहे शोषण से मुक्ति मिली है. लेकिन अभी भी इस्लाम में कई ऐसी कुप्रथाएं हैं जिनकी वजह से औरत को दर्द और तकलीफ झेलनी पड़ती है. इनमें हलाला और महिलाओं के खतने जैसी कुप्रथाएं प्रमुख हैं. तीन तलाक पर आए फैसले के बाद अब मुस्लिम महिला ने ऐसी ही कुप्रथा को खत्म करने की गुजारिश करने की गुहार लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखा है. आपको बता रहे हैं ऐसी ही एक कुप्रथा के बारे में और बताते हैं कि उस महिला ने पीएम को लिखे अपने खत में क्या लिखा. 


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इस्लाम में महिलाओं का खतना एक ऐसी कुप्रथा है, जिससे न सिर्फ महिलाएं अपना मानसिक संतुलन खो देती हैं, बल्कि उनके शरीर को बेहद नुकसान भी पहुंचता है.  जो लड़कियां बच भी जाती हैं, इस कुप्रथा से जुड़ी दर्दनाक यादें ताउम्र उनके साथ रहती है. दुनिया भर के कई समुदाय इस कुप्रथा को सदियों से करते आ रहे हैं. लेकिन अब इस कुप्रथा को रोकने के लिए कुछ महिलाओं से मोर्चा खोल दिया है और इसके खिलाफ एक जुट होकर लड़ रही हैं. बोहरा समुदाय की मासूमा रानाल्वी ने देश के प्रधानमंत्री मोदी के नाम एक खुला ख़त लिखकर इस कुप्रथा को रोकने की मांग की है.


मुस्लिम महिला ने पीएम मोदी को लिखा खत


मासूमा रानाल्वी ने अपने खत में लिखा स्वतंत्रता दिवस पर आपने मुस्लिम महिलाओं के दुखों और कष्टों पर बात की थी. ट्रिपल तलाक को आपने Anti-Women कहा था, सुनकर बहुत अच्छा लगा था. हम औरतों को तब तक पूरी आजादी नहीं मिल सकती जब तक हमारा बलात्कार होता रहेगा, हमें संस्कृति, परंपरा और धर्म के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहेगा. हमारा संविधान सभी को समान अधिकार देने की बात करता है, पर असल में जब भी किसी बच्ची को गर्भ में मारा जाता है, जब भी किसी बहु को दहेज के नाम पर जलाया जाता है, जब भी किसी बच्ची की जबरन शादी करवा दी जाती है, जब भी किसी लड़की के साथ छेड़खानी होती है या उसके साथ बलात्कार किया जाता है, हर बार इस समानता के अधिकार का हनन किया जाता है.


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ट्रिपल तलाक अन्याय है, पर इस देश की औरतों की सिर्फ यही एक समस्या नहीं है. मैं आपको Female Genital Mutilation (FGM) या खतना प्रथा के बारे में बताना चाहती हूं,  मैं इस खत के द्वारा आपका ध्यान इस भयानक प्रथा की तरफ खींचना चाहती हूं. बोहरा समुदाय में सालों से ‘खतना प्रथा’ या ‘खफ्ज प्रथा’ का पालन किया जा रहा है. बोहरा, शिया मुस्लिम हैं, जिनकी संख्या लगभग 2 मिलियन है और ये महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बसे हैं. मैं बताती हूं कि मेरे समुदाय में आज भी छोटी बच्चियों के साथ क्या होता है.


जैसे ही कोई बच्ची 7 साल की हो जाती है, उसकी मां या दादी उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं. बच्ची को ये भी नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा रहा है या उसके साथ क्या होने वाला है. दाई या आया या वो डॉक्टर उसके Clitoris को काट देते हैं. इस प्रथा का दर्द ताउम्र के लिए उस बच्ची के साथ रह जाता है. इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य है, बच्ची या महिला के Sexual Desires को दबाना.


मासूमा ने बताया कि ‘FGM महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकार का हनन है. महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का ये सबसे बड़ा उदाहरण है. बच्चों के साथ ये अक्सर होता है और ये उनके अधिकारों का भी हनन है. इस प्रथा से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है.’


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सैंकड़ों सालों से इस प्रथा का शांति से पालन किया जा रहा है और बोहरा समुदाय के बाहर बहुत कम लोग ही इस प्रथा के बारे में जानते होंगे. साल 2015 में बोहरा समुदाय की कुछ महिलाओं ने एकजुट होकर ‘WeSpeakOut On FGM’ नाम से एक कैंपेन शुरू किया और यहां हमने आपस में अपनी दुख और कहानियां एक-दूसरे से कही. हमने खतना प्रथा के खिलाफ एक जंग का ऐलान करने की ठानी.


क्या है महिलाओं का खतना


मुस्लिम बोहरा समुदाय में छोटी बच्चियों के भगशिश्निका (clitoris) की सुन्नत की यह प्रक्रिया औरतों के लिए एक अभिशाप है. इस प्रक्रिया में औरतें छोटी बच्चियों के हाथ-पैर पकड़ते हैं और फ़िर clitoris पर मुल्तानी लगाकर वह हिस्सा काट दिया जाता है. औरतों की ख़तना का यह रिवाज अफ्रीकी देशों के कबायली समुदायों में भी प्रचलित है लेकिन अब भारत में भी ये शुरू हो गया है. अफ्रीका में यह मिस्र, केन्या, यूगांडा जैसे देशों में सदियों से चली आ रही है. ऐसा कहा जाता है कि ख़तना से औरतों की मासित धर्म और प्रसव पीड़ा को कम करती है. ख़तना के बाद बच्चियां दर्द से कईं महीनों तक जूझती रहती हैं और कई की तो संक्रमण फ़ैलने के कारण मौत भी हो जाती है.