लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 2022 की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने 23 नवंबर को चुनावों को लेकर एक समीक्षा बैठक की. बसपा इससे पहले यूपी में ब्राह्मण सम्मेलन भी किए हैं लेकिन फिर भी यूपी की इस चुनावी लड़ाई में बसपा का कोई खास प्रभाव दिख नहीं रहा है. आपको बता दें कि 2022 के चुनावों में भाजपी की सीधी टक्कर सिर्फ समाजवादी पार्टी से ही दिखाई दे रही है. 


ब्राह्मणों के भरोसे बसपा की नैया?


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दरअसल आगामी चुनावों से पहले बसपा अध्यक्ष मायावती की पार्टी के पुराने सदस्य लगातार उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं. अब तो बसपा में मायावती के बाद सतीश चंद्र मिश्र ही नेता के तौर पर दिखाई पड़ते हैं. बसपा के कई बड़े नेता हाल फिलहाल सपा में शामिल हो चुके हैं और ऐसा तब है जब बसपा अध्यक्ष मायावती की रैलियां अभी यूपी में शुरू भी नहीं हुई हैं. जबकि भाजपा, सपा और कांग्रेस तीनों चुनाव कैंपेन शुरू कर चुके हैं. मौजूदा राजनीति को समझते हुए बसपा अब आकाश आनंद और कपिल मिश्र को आगे कर रही है. बता दें कि आकाश आनंद मायावती के भतीजे हैं तो कपिल मिश्र बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के बेटे हैं. इसेक जरिए बसपा यूपी के ब्राह्मण मतदाताओं को साथ लाने की कोशिश कर रही है. 


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जातीय समीकरण बैठाने में नाकाम है बसपा


गौरतलब है कि यूपी में बसपा का मूल वोट बैंक SC जाति को ही माना जाता है. यूपी में लगभग 21% दलित मतदाता हैं जिनमें से लगभग 12-13% बीएसपी का मूल वोट माना जाता है. हालांकि SC की अन्य जातियां बीजेपी और सपा में बंट चुकी हैं. मायावती के इन 12-13% वोटों के बारे में कहा जाता है कि परिस्थितियां चाहे जैसी हों लेकिन यह वोट हर हाल में मायावती के नाम पर ही वोट करता है. लेकिन मायावती के साथ इस बार मुस्लिम, OBC और अन्य वोट जुड़ते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं. शायद यही कारण है कि BSP के 50 से ज्यादा ओबीसी नेता सपा में शामिल हो चुके हैं. हाल ही में बीएसपी के 6 विधायक भी सपा में शामिल हुए. जिसमें ओबीसी और मुस्लिम विधायक शामिल थे. 


मायावती के रवैये में बड़ा बदलाव


ऐसे में मायावती के सामने इस बार चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं क्योंकि जो नेता सपा से बच जा रहे हैं उन्हें बीजेपी छोड़ने को तैयार नहीं है. यही कारण है कि मायावती अपने अंदाज में बड़ा परिवर्तन ला रही हैं. परिवर्तनों की बात करें तो बीएसपी अध्यक्ष मायावती चुनावी समीक्षा बैठक कर रही हैं, पत्रकारों से पहली बार बातचीत कर रही हैं और सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव हो चुकी हैं. साथ ही मायावती मीडिया पर लगा रही हैं कि बीएसपी को लड़ाई में कमजोर दिखाया जा रहा है. इन आरोपों के साथ मायावती ने बीएसपी का एक फोल्डर भी जारी किया है, जिसमें 2007-12 के दौरान उनकी सरकार के कामकाज की जानकारी है और अपने काडर तक इसे पहुंचाने के निर्देश दिए हैं. 


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पार्टी के अस्तित्व का चुनाव


आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी 19 सीटें जीती थी. इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में BSP अपना खाता भी खोल पाने में नाकाम रही थीं. हालांकि 2019 के आम चुनावों में सपा से गठबंधन करने पर 10 सीटें BSP ने जीतीं. लेकिन अब बुआ और बबुआ की राहें अलग हैं और बुआ की पार्टी से अखिलेश लगातार बड़े नेताओं को तोड़ने में जुटे हैं. ऐसे में मायावती अपने मूल वोट बैंक को बचाने के साथ-साथ कुछ ब्राह्मण मतदाताओं पर काम कर रही हैं. इसके अलावा बीएसपी की कोशिश यह भी होगी कि जहां बीजेपी और सपा के लोगों का टिकट कटे, उन मजबूत लोगों के बीएसपी टिकट दिया जाए. लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है कि मायावती के लिए यह चुनाव अपनी पार्टी के भविष्य का भी चुनाव होगा. इसलिए मायावती वोट बैंक को बचाने के साथ-साथ पार्टी में नए चेहरे के तौर पर आकाश आनंद को आगे कर रही हैं.


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