CAA Latest News: नागरिकता संशोधन कानून बनने के करीब 4 साल बाद बीजेपी ने इसके नियमों को नोटिफाई कर दिया है. सरकार ने सोमवार शाम को जैसे ही इसकी घोषणा की, बहुत सारे लोगों की आंखों से अश्रु धार बह निकली. CAA उनके लिए केवल एक नागरिकता कानून नहीं बल्कि उनके जीवन- मरण का सवाल था. वे इस कानून का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे लेकिन कभी कोरोना तो कभी इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, उनकी प्रतीक्षा की घड़ी लगातार लंबी होती जा रही थी. आखिरकार सोमवार को उन्हें अपने सब्र का मीठा फल मिल ही गया. इसी के साथ उन्हें सम्मान के साथ जीने और अपनी जिंदगी अपने अनुसार बिताने का हक भी हासिल हो गया. आज हम आपको ऐसी 2 सच्ची घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में जानकर आप समझ जाएंगे कि पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों के लिए CAA कितना जरूरी था.


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बिता रहे थे शरणार्थी का जीवन


हरलाल डे अपने परिवार के साथ पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के ठाकुर नगर में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं. बांग्लादेश के भोला जिले में उनके खेत- घर सब कुछ था. लेकिन आस-पड़ोस में रहने वाले मुसलमानों ने उनके परिवार का जीना दूभर कर दिया था. कभी उनकी फसल काट ली जाती थी, तो कभी परिवार के साथ छींटाकशी की जाती थी. उन्हें अपने धार्मिक त्योहार मनाने से रोका जाता था. 


कट्टरपंथियों ने जलाया घर, कब्जा लिए खेत


वर्ष 1991 में जब अयोध्या में बाबरी ढांचे का विध्वंस हुआ तो बांग्लादेश के कट्टरपंथियों को भी मौका मिल गया. उन्होंने 1992 में उनके घर पर हमलाकर सब कुछ लूट लिया और बाद में घर को आग लगा दी. इसके साथ ही उनके खेतों पर भी कब्जा कर लिया गया. उन्होंने पुलिस को मदद के लिए कॉल किया लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई. 


जंगल- नदी के रास्ते पहुंचे भारत 


वे जैसे-तैसे अपनी पत्नी संध्या डे और 2 बच्चों के साथ खेतों और जंगलों के रास्ते हुए भारत में घुस आए और ठाकुर नगर में शरणार्थी बनकर रहने लगे. वे हिंदू हैं, उनकी भाषा, रहन-सहन, भोजन, धर्म सभी कुछ पश्चिम बंगाल के आम लोगों की तरह था लेकिन उन पर शरणार्थी का ठप्पा लगा हुआ था. कई लोग उन्हें बांग्लादेशी कहकर वापस भेजने की बात करते तो उन्हें डर चढ़ जाता था. 


32 साल बाद नागरिकता का रास्ता साफ


शरणार्थी होने की वजह से उन्हें आधार कार्ड, पैन, जमीन खरीदने और बच्चों की पढ़ाई- नौकरी, सब चीजों में दिक्कतें आ रही थी. इसका निदान एक ही था कि उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए लेकिन पिछली सरकारों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. आखिरकार 32 साल के इंतजार के बाद मोदी सरकार ने CAA लागू किया और पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से जान बचाकर आए गैर- मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया. 


बांग्लादेश में नहीं थी उत्सव मनाने की आजादी


ऐसी ही मार्मिक कहानी बरुण डे की भी है. वे अपने माता-पिता और बड़े भाई के साथ बांग्लादेश के बोरिशल जिले में रहते थे. बांग्लादेश की कट्टरपंथी मुस्लिम जमात ने उन समेत बाकी हिंदुओं का जीना दूभर कर रखा था. उन्हें अपने हिसाब से त्योहार मनाने, अपने विचार व्यक्त करने या उत्सव करने की आजादी नहीं थी. हर वक्त डर सताता रहता था कि कहीं ईशनिंदा का आरोप लगाकर कट्टरपंथियों की भीड़ उनके घर को जला न दे. 


'भारत में आकर आजादी- सुरक्षा का अहसास'


रोज- रोज के उत्पीड़न से तंग आकर उन्होंने आखिरकार बांग्लादेश को हमेशा के लिए छोड़ने का फैसला कर लिया. वे 1990 में अपने मां-बाप और बड़े भाई के साथ नदी- जंगल के रास्ते भारत आ गए. वे भी ठाकुर नगर में रहते हैं और फूल बेच कर अपना गुजारा करते हैं. पिछले 33 साल में वे कोई खास अमीर नहीं हो पाए हैं. लेकिन इसके बावजूद उनके मन में शांति है. 


'हर वक्त डिपोर्ट करने का रहता था डर'


बरुण डे कहते हैं कि भारत में उनके साथ धर्म के आधार पर कोई अत्याचार नहीं होता है. हालांकि पिछले 33 सालों से उनके मन में एक डर हमेशा लगा रहता था कि कहीं उन्हें नागरिकता नहीं मिली तो वापस बांग्लादेश डिपोर्ट तो नहीं कर दिया जाएगा. अब खुशी की बात है कि देश में CAA लागू हो गया और हमें नागरिकता मिलने जा रही है. वे इस उपलब्धि के लिए पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का आभार प्रकट करते हैं. 


गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को मिलेगी नागरिकता


बताते चलें कि मोदी सरकार ने सोमवार को CAA को नोटिफाई कर दिया है. इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रहने गैर-मुस्लिम धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होने पर भारत की नागरिकता हासिल कर सकते हैं. इस कानून के बन जाने से अब इन देशों में अत्याचार झेल रहे हिंदुओं, ईसाइयों, बौद्ध, जैन, सिख को भारत आने और नागरिकता हासिल कर सम्मान के साथ रहने का अवसर मिल सकेगा. 


(रिपोर्ट सौमित सेनगुप्ता)