नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के 30 लाख से ज्यादा मामले आ चुके हैं और अभी भारत में हर रोज इस वायरस के औसतन 60 हजार नए मरीज मिल रहे हैं. मरने वालों का आंकड़ा 58 हजार से ज्यादा हो चुका है. हालांकि अच्छी बात ये है कि भारत में रिकवरी रेट 75 प्रतिशत तक पहुंच गया है. यानी भारत में 30 लाख मरीज़ों में से 22 लाख ठीक भी हो चुके हैं. लेकिन एक बार संक्रमित हो जाने के बाद क्या इन 22 लाख लोगों को दोबारा कोरोना संक्रमण नहीं होगा? क्या इस वायरस से ठीक होने वाले सभी मरीजों के अंदर वो एंटीबॉडीज बन चुके हैं जो उन्हें दोबारा संक्रमित नहीं होने देंगे? सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि क्या कोरोना वायरस फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने के अलावा शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करता है?


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दोबारा संक्रमित होने वाला पहला केस 
इन सवालों का जवाब थोड़ा मुश्किल है क्योंकि अभी भी दुनिया भर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस को समझने की कोशिश कर रहे हैं. इसी साल अप्रैल के महीने में हांगकांग के 33 साल के एक व्यक्ति को कोरोना संक्रमण हुआ और वो कुछ ही दिनों में ठीक भी हो गया लेकिन इसी महीने जब ये व्यक्ति यूरोप से वापस आया तो वो एक बार फिर इस वायरस से संक्रमित हो चुका था. इस व्यक्ति में संक्रमण की पुष्टि एयरपोर्ट पर जांच से हुई और इसे हांगकांग में Covid-19 का इस तरह से दोबारा संक्रमित होने वाला पहला केस कहा जा रहा है. जब हांगकांग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की तो पता चला कि इस व्यक्ति को दोनों बार अलग-अलग प्रकार का कोरोना वायरस हुआ है. पहली बार इस व्यक्ति में कोविड-19 के लक्षण पैदा हुए थे, लेकिन दूसरी बार इसके शरीर में कोई लक्षण नहीं देखा गया.


यानी इस व्यक्ति जो संक्रमण यूरोप में हुआ वो पहले हुए संक्रमण से कमज़ोर था. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि कोरोना पूरी दुनिया में धीरे धीरे कमज़ोर पड़ रहा है. बल्कि इसका मतलब ये है कि ये वायरस तेजी से खुद को बदलने में सक्षम है. इस बदलाव के दौरान ये कभी पहले से ज्यादा शक्तिशाली तो कभी पहले से कमजोर हो जाता है. विज्ञान की भाषा में इसे म्‍यूटेशन कहते हैं और इसी के आधार पर जब कोई वायरस तेजी से फैलने लगता है तो उसे वायरस का नया स्‍ट्रेन (Strain) कहते हैं.


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कोरोना वायरस के 8 से ज्यादा स्‍ट्रेन
दुनियाभर के वैज्ञानिक अब तक कोरोना वायरस के 8 से ज्यादा स्‍ट्रेन का पता लगा चुके हैं और दावा है कि कोरोना वायरस हर 15 दिन में खुद को बदलने की क्षमता रखता है. हाल ही में इस वायरस का एक खतरनाक Strain मलेशिया में मिला है जिसे D 614 G नाम दिया गया है. आप इसे कोरोना वायरस का नया वर्जन भी कह सकते हैं. मलेशिया में कोरोना का ये नया वर्जन भारत से लौटे एक व्यक्ति से फैलना शुरू हुआ था जिसने 14 दिन के क्‍वारंटाइन को बीच में ही तोड़ दिया था. वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस का नया वर्जन यानी D 614 G सबसे ज्यादा शक्तिशाली Strain है और ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में ज्यादा तेज़ी से फैलता है और पहले के कोरोना वायरस से 10 गुना ज्यादा घातक भी है .


कोरोना का ये नया रूप इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि म्‍यूटेशन की वजह से इस वायरस ने शरीर की कोशिकाओं से चिपकने की अपनी शक्ति को बढ़ा लिया है. कोई भी वायरस अपने स्‍पाइक प्रोटीन की मदद से शरीर की कोशिकाओं से चिपकता है. कोरोना वायरस की तस्वीरों में उसके आसपास कांटे जैसी जो आकृति आप देखते हैं उसे ही स्‍पाइक प्रोटीन कहा जाता है. कोरोना के नए वर्जन पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि अब इसके ये कांटे पहले से ज्यादा घातक हो गए हैं और ये कोशिकाओं पर ज्यादा तीखा प्रहार करने में सक्षम हैं.


इसलिए कई लोग ये भी सवाल उठा रहे हैं कि अगर इस वायरस से लड़ने वाली वैक्सीन बन भी गई तो क्या वो अलग अलग प्रकार के कोरोना वायरस का सामना कर पाएगी? इसका जवाब ये है कि अब तक इस वायरस की संरचना में जो भी बदलाव हुए हैं वो इसके स्‍पाइक प्रोटीन में हुए हैं जो इस वायरस का ऊपरी हिस्सा है. जबकि इसके निचले हिस्से में कोई बदलाव नहीं हुआ है और वैक्सीन के साथ साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी वायरस पर पहला प्रहार इसी हिस्से में करती है. इसलिए अभी तक कोरोना में हुए बदलाव वैक्‍सीन पर कोई प्रभाव नहीं डालेंगे लेकिन अगर आगे चलकर ये वायरस अपने अंदर और भी बड़े और घातक बदलाव करता है तो ये जरूर परेशानी की बात हो सकती है.


शरीर में लंबे समय के लिए कई बदलाव
एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या इस वायरस से एक बार संक्रमित होकर ठीक हो जाने के बाद आप इससे पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं या फिर ये आपके शरीर में लंबे समय के लिए कई बदलाव कर देता है ?


पूरी दुनिया में इस वायरस का शिकार हो चुके लोगों की संख्या 2 करोड़ 30 लाख से ज्यादा है और वैज्ञानिकों का मानना है कि इनमें से आधे लोगों को ये वायरस ठीक होने के बाद भी किसी ना किसी रूप में परेशान करता है.


उदाहरण के लिए इन 50 प्रतिशत लोगों में से किसी को लंबे समय तक थकान बनी रहती है, कई लोगों को ठीक होने के बाद भी सांस लेने में परेशानी होती है, कुछ लोगों को Auto Immune बीमारियां हो जाती हैं. ये ऐसी बीमारियां होती हैं जिनमें शरीर खुद से ही लड़ने लगता है और अपनी ही कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है. कुछ लोगों को न्यूरोलॉजिकल परेशानियां होने लगती हैं तो कुछ तो दिल के मरीज़ भी बन जाते हैं. कई मरीजों को डायरिया की समस्या बनी रहती है. आम तौर पर ये लक्षण कम से कम 4 हफ्तों तक बने रहते हैं लेकिन कुछ लोगों को इससे भी ज्यादा दिनों तक इन लक्षणों से संघर्ष करना पड़ता है . और ये संघर्ष 4 से 6 महीनों तक भी खिंच सकता है.


इनमें से सबसे बड़ी समस्या थकावट की है और बहुत सारे वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इस वायरस से ठीक होने के बाद होने वाली थकावट भी किसी महामारी से कम नहीं है . यानी संक्रमण से ठीक हो जाने के बाद भी आपको दो कारणों से लापरवाही बरतने की जरूरत नहीं है. पहला कारण ये है कि ये संक्रमण दोबारा हो सकता है और दूसरा कारण ये है कि ठीक होने के बाद भी इसके प्रभाव शरीर में बने रहते हैं और कमज़ोर शरीर कई दूसरी बीमारियों का भी घर बन सकता है.