शहीद पति के चिता पर लेट गई पत्नी, मंजर देख- हर किसी की आंखों से छलके आंसू
Dantewada: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुई नक्सली घटना में शहीद जवान लखमू मारकम (Lakhmu Markam) की अंतिम विदाई देने के दौरान उनकी पत्नी चिता पर लेट गईं और कहने लगीं कि वह अपने पति के शरीर को धुआं होते नहीं देख सकती.
Dantewada Naxal Attack: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुई नक्सली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. इस घटना के बाद दंतेवाड़ा के कसोली गांव में शुक्रवार को हृदय विदारक दृश्य देखने को मिला, जब शहीद जवान लखमू मारकम (Lakhmu Markam) की चिता पर उनकी पत्नी लेट गईं और कहने लगीं कि वह अपने पति के शरीर को धुआं होते नहीं देख सकती. इसे देख वहां मौजूद सभी लोगों की आंखों से आंसू छलक गए. बता दें कि महिलाओं और बच्चों समेत बड़ी संख्या में आदिवासी लोग अपने स्थानीय हीरो लखमू मारकम को अंतिम विदाई देने के लिए पहुंचे थे. दंतेवाड़ा में बुधवार को हुए माओवादी हमले में मारकम समेत 10 जिला रिजर्व गार्ड (DRG) जवानों की मौत हो गई थी.
बिलखते हुए बोलीं- इनसे पहले मुझे जला दो
चिता से थोड़ी ही दूरी पर शहीद जवान लखमू मारकम के परिवार के सदस्य उसके पार्थिव शरीर को घेरे खड़े थे, लेकिन उनकी पत्नी चिता पर लेट गईं. जब लोगों ने उससे चिता से उतरने के लिए कहा तो उसने कहा कि वह अपने पति के शरीर को धुआं होते नहीं देख सकती. रोते हुए उन्होंने लोगों से कहा कि इनसे पहले मुझे जला दो. इसे देखकर वहां मौजूद सभी लोगों की आंखों से आंसू छलक पड़े. हालांकि, बाद में गांव वालों ने किसी तरह उन्हें चिता से उतरने के लिए मना लिया और इसके बाद मारकम का अंतिम संस्कार किया गया.
कौन थे शहीद जवान लखमू मारकम
शहीद जवान लखमू मारकम एक ट्रेंड सिपाही थे और पहले स्थानीय आदिवासियों के समूह 'सलवा जुडूम' से जुड़ा थे, जिसका गठन माओवादियों की गतिविधियों से निपटने के लिए किया गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश के बाद साल 2011 में ग्रुप को खत्म कर दिया गया था. बाद में लखमू मारकम को डीआरजी में शामिल कर लिया गया, जिसका गठन दंतेवाड़ा जिले में 2015 में छत्तीसगढ़ सरकार ने किया था. डीआरजी विशेष पुलिस बल है, जिसमें ज्यादातर स्थानीय आदिवासी और आत्मसमर्पण कर चुके माओवादी हैं.
मारे गए जवानों में से 5 पहले थे माओवादी
माओवादी हमले में मारे गए 10 डीआरजी जवानों में से पांच आत्मसमर्पण कर चुके माओवादी थे जो हथियार डालने के बाद इस विशेष बल में शामिल हुए थे. डीआरजी में स्थानीय आदिवासियों को शामिल किया जाता है, क्योंकि वे उस इलाके से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं और उन्हें अपने इलाके में माओवादी गतिविधियों की ज्यादा जानकारी होती है. डीआरजी टीम ने समय-समय पर माओवादियों के खिलाफ कई ऑपरेशन किए हैं. इसीलिए माओवादी उन्हें अपना निशाना बनाते हैं.
(इनपुट- न्यूज एजेंसी आईएएनएस)