Jamiat Ulema-e-Hind conference: उत्तर प्रदेश के देवबंद में चल रहे जमीयत उलेमा ए हिंद के जलसा का आज दूसरा और आखिरी दिन था. जमीयत ने अपने देवबंद अधिवेशन में ‘समान नागरिक संहिता’ के विरोध में प्रस्ताव पेश किया. इस दौरान उलेमा बोले कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव मंजूर नहीं है, इसका कड़ा विरोध होगा. शरियत में किसी तरह दखलंदाजी स्वीकार नहीं की जाएगी. 


'हमें पाकिस्तान भेजने वाले खुद जाएं'


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इस दौरान मौलाना महमूद मदनी ने कहा, 'मुझसे कहा जाता है कि मैं जहर उगलता हूं. मुझसे सवाल पूछे जा रहे हैं. लेकिन जो जहर उगल रहे हैं उनके बारे में कुछ नही कहा जा रहा है.' उन्होंने कहा कि हमारे वजूद खत्म किए जा रहे हैं. हम इस देश में दूसरी सबसे बड़ी जाति हैं. इस राष्ट्र की सुरक्षा- रक्षा के लिए हम लोग आगे आएंगे. किसी को अगर हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं है तो कहीं और चले जाओ. हमको मौका मिला था पाकिस्तान जाने का. लेकिन हम नहीं गए. बात-बात पर पाकिस्तान भेजने वाले खुद पाकिस्तान चले जाएं.


यूनिफार्म सिविल कोड का विरोध


मदनी ने यूनिफार्म सिविल कोड पर बात करते हुए कहा, 'इस पर भी हमने तजबीज लाई है. महीनों की मशक्कत के बाद यह तैयार हुआ है. कानून कोई भी बन जाये अगर मुस्लिम शरीयत पर चलने की ठान लें तो कोई कानून नहीं रोक सकता है. हमारे इंटरनल क्राइसिस हैं. हमें उस पर भी काम करने की जरूरत है.


'देश की हिफाजत के खून बहेगा तो हमें खुशी होगी'


उन्होंने आगे कहा, 'लोग कहेंगे, लोग लिखेंगे. उन्हें कहने दीजिए, लिखने दीजिए, जो दुश्मनी कर रहा है वो लायक ही नहीं है. अगर वो इस्लाम को पहचान ले तो दुश्मनी नहीं करेगा. हर चीज पर समझौता हो सकता है. लेकिन पॉलिसी पर समझौता नहीं होगा, जो आइडियोलॉजी हमें मिली है उस पर समझौता नहीं होगा. हम अगर राष्ट्र एकता की बात करते हैं तो वो हमारा अज्म है. अगर देश की हिफाजत के लिए हमारा खून बहेगा तो हमें खुशी होगी.


ज्ञानवापी के माध्यम से अमन शांति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश


जमीअत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से इस जलसा में कहा गया कि बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और अन्य मस्जिदों के खिलाफ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिनसे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है. उलेमा सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव के लिए हरगिज उचित नहीं है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में ’पूजा स्थल कानून 1991 एक्ट 42’ को संविधान के मूल ढ़ांचे की असली आत्मा बताया है. इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाडने से बचना चाहिए, तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा.


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