महाराष्‍ट्र में कांग्रेस और एनसीपी ने अपने पुराने गठबंधन को पुनर्जीवित करने का फैसला किया है. इसके तहत 2019 लोकसभा चुनावों और आगामी महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनावों के लिहाज से दोनों दलों ने एक बार सैद्धांतिक रूप से एक प्‍लेटफॉर्म पर आने की घोषणा की है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कांग्रेस नेता माणिकराव ठाकरे ने इस बाबत कहा, ''बीजेपी और शिवसेना को हराने के लिए आपसी सहमति बन गई है. सीटों के बंटवारे का फैसला राहुल गांधी और एनसीपी नेता शरद पवार की मीटिंग में तय किया जाएगा.'' उल्‍लेखनीय है कि 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले इन दोनों दलों ने अपने गठबंधन को खत्‍म कर दिया था. नतीजतन 15 वर्षों से महाराष्‍ट्र में सत्‍तारूढ़ यह गठबंधन सत्‍ता से बाहर हो गया था.


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बीजेपी की मुश्किल
इस बदलते घटनाक्रम को सियासी लिहाज से बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि इसकी प्रमुख सहयोगी शिवसेना ने पहले ही घोषणा कर दी है कि 2019 का चुनाव वह बीजेपी के साथ नहीं लड़ेगी और अकेले दम पर चुनावों में जाएगी. सत्‍तारूढ़ एनडीए में वैसे भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. महाराष्‍ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश और पंजाब में भी उसके सहयोगी क्रमश: तेलुगु देसम और अकाली दल ने बगावती तेवर अख्तियार कर रखे हैं. ऐसे वक्‍त में जब लोकसभा चुनावों में केवल एक साल का समय बचा है, इस तरह से एनडीए के घटक दलों के बागी तेवर और विपक्षी कांग्रेस के अपने कैंप को मजबूत करने की कोशिशों बीजेपी के लिए समस्‍या बन सकती हैं.


शिवसेना बनी वजह
दरअसल कुछ दिन पहले जब शिवसेना ने बीजेपी से आगामी चुनावों में अलग होने की घोषणा की थी, तभी से कांग्रेस और एनसीपी ने एक बार फिर गठबंधन बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया था. इनका मानना है कि बीजेपी और शिवसेना के अलग होने के बाद यदि ये दोनों दल एक साथ आ जाएं तो महाराष्‍ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्‍व में बीजेपी सरकार के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं.


शिवसेना ने बीजेपी से नाता तोड़ने का किया ऐलान, 2019 में अकेले लड़ेगी चुनाव


शरद पवार का दांव
एनसीपी (राकांपा) क्षत्रप शरद पवार के पीएम नरेंद्र मोदी से मधुर संबंध हैं. इन वजहों से लंबे समय से ये संकेत मिलते रहे हैं कि 2019 के लिहाज से यदि शिवसेना, एनडीए से बाहर जाती है तो एनसीपी की इंट्री हो सकती है. पिछले अगस्‍त में गुजरात राज्‍यसभा चुनावों में कांग्रेस नेता अहमद पटेल को जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा, उस वक्‍त वोटिंग में एनसीपी की भूमिका पर सवाल खड़े हुए थे. राजनीतिक विश्‍लेषकों ने अनुमान लगाया था कि एनसीपी की तरफ से क्रास वोटिंग में कुछ वोट बीजेपी समर्थित उम्‍मीदवार को मिले. हालांकि एनसीपी ने इसका खंडन किया था. लेकिन उस वक्‍त इस बात के स्‍पष्‍ट सियासी संकेत मिले थे कि एनसीपी की एनडीए कैंप में इंट्री हो सकती है.


हालिया गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन, एनडीए के घटक दलों में उठापटक ने एनसीपी को एक बार फिर कांग्रेस के करीब ला दिया है. वैसे भी मराठा क्षत्रप शरद पवार को हवा के रुख को भांपने में महारत हासिल है. वह इस दौर के विरले ऐसे राजनेताओं में शुमार हैं जिनके एक तरफ कांग्रेस के साथ सहज रिश्‍ते हैं तो दूसरी ओर पीएम मोदी भी उनकी तारीफ करते हैं.