नई दिल्ली: आईसीएमआर (ICMR) ने हाल ही में ​बताया कि भारत में कोरोना वायरस (coronavirus)  के 80 प्रतिशत मरीजों में इसके लक्षण नहीं दिखाई दिए. तो सवाल ये उठता है कि जिन मरीजों में कोरोना के लक्षण नहीं दिखते, उन्हें क्या करना चाहिए. 


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मैक्स हेल्थकेयर के डायरेक्टर डॉ. संदीप ​बुद्धिराजा कहते हैं, भारत में अब ऐसे मरीजों में भी कोरोना पॉजिटिव आ रहा है जिनमें खांसी, जुकाम बुखार का कोई लक्षण भी नहीं है और वह किसी कोरोना मरीज के संपर्क में भी नहीं आए हैं.


डॉक्टरों का मानना है कि यह स्थिति भारत के लिए अच्छी भी है और खराब भी. अच्छी इसलिए है, क्योंकि बहुत से मरीज खुद ही ठीक हो रहे हैं अस्पतालों में उतने मरीज नहीं है, जितनी तादाद में कोरोना वायरस है.
लेकिन यह स्थिति बुरी इसलिए है क्योंकि, ऐसे लोग दूसरों को अनजाने में कोरोना का संक्रमण दे सकते हैं. अब भारत को ज्यादा लोगों को टेस्ट करने की जरूरत पड़ेगी.


इसके अलावा कंटेनमेंट स्ट्रेटजी यानी हॉटस्पॉट में ज्यादा पाबंदी लगाना भी अच्छा तरीका है. इसे कड़ाई से लागू करना पड़ेगा.



रैपिड टेस्ट पर क्यों है कन्फ्यूजन 


एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया कहते हैं, रैपिड टेस्ट लक्षण आने के 7 दिन बाद ही सही नतीजे दे सकता है. अगर हर जगह इस्तेमाल किया गया, तो गलत नतीजे आ सकते हैं. इसलिए केवल ऐसे मरीजों में इस​का इस्तेमाल करें जिनमें लक्षण को 7 दिन हो चुके हैं. टेस्ट निगेटिव आए तो ठीक, लेकिन पॉजिटिव आए तो कंफर्म करने के लिए आर टी पीसीआर करना चाहिए. इनका इस्तेमाल हॉटस्पॉट इलाके में करें. ऐसे लोगों की जांच करें, जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण की आशंका हो.


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