नई दिल्ली: कोरोना काल में अदालती काम कम होने के चलते वकीलों की आर्थिक दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. वकालत के अलावा कोई और वैकल्पिक काम करने देने और विज्ञापन का इस्तेमाल करने की अनुमति की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी कर सुझाव मांगा है. काउंसिल के नियमों के मुताबिक वकील दूसरा काम नहीं कर सकते और वकालत के काम का इश्तेहार भी नहीं दे सकते.


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याचिका में कहा गया है कि "वकीलों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए उन्हें समायोजित करने के लिए मौजूदा नियमों में बदलाव करने की जरूरत है"  मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एन सुभाष रेड्डी और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी किया और 2 सप्ताह में जवाब देने को कहा है. 


याचिकाकर्ता अधिवक्ता चरणजीत चंद्रपाल ने अपनी याचिका में कहा है कि कोविड-19 के कारण देश में लागू लॉकडाउन और अदालतों में सीमित कामकाज होने की वजह से ज्यादातर वकीलों ने अपनी आमदनी के स्रोत खो दिए हैं. याचिका में कहा गया है कि इस वजह से इनमें से बड़ी संख्या में वकील अवसाद में हैं या उन्होंने अपना जीवन ही समाप्त कर लिया है.


अधिवक्ता कानून, 1961 के अंतर्गत वकालत करने वाले वकीलों पर रोजगार के दूसरे तरीके अपनाने पर अनेक पाबंदियां हैं और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पेशेगत आचरण के मानकों को नियंत्रित करने के नियम बनाने का अधिकार है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के अनुसार कोई भी वकील प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विज्ञापनों, सर्कुलर, दलालों, व्यक्तिगत संदेशों और इंटरव्यू आदि के माध्यम से न तो काम मांगेगा और न ही अपना प्रचार करेगा. 


चंद्रपाल ने याचिका में कोविड-19 महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों के मद्देनजर बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अपने नियमों में संशोधन करके वकीलों को कुछ ढील प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है. उन्होंने टैक्स या पंजीकरण से संबंधित चैंम्बर के कार्यों के लिए वकीलों को अपना प्रचार करने या फिर इसके लिए विज्ञापन की अनुमति देने का बार काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश देने का भी अनुरोध किया है.