नई दिल्ली : केंद्र ने अनुसूचित जाति और जनजातियों के संपन्न तबके (क्रीमी लेयर) को आरक्षण के लाभ प्राप्त करने से वंचित करने की संभावना से बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इनकार करते हुए कहा कि पूरा समुदाय ही ‘पिछड़ा’ है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ के समक्ष गैर सरकारी संगठन समता आन्दोलन समिति की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने यह तर्क दिया. 


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क्या हुआ कोर्ट में ?
नरसिम्हा ने कहा, ‘‘अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता.’’ उन्होंने कहा कि समूची अनुसूचित जाति और जनजाति इतनी अधिक पिछड़ी हुई हैं कि अन्य पिछड़े वर्गो के मामले में लागू होने वाला संपन्न वर्ग का सिद्धांत इन पर लागू ही नहीं किया जा सकता है. 


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इस पर गैर सरकारी संगठन के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि संपन्न तबके को आरक्षण् के लाभ से बाहर करने का सिद्धांत लागू नहीं होने की वजह से अनुसूचित जाति और जनजातियों में आरक्षण का लाभ पाने के हकदार लोग इससे वंचित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा भी सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजातियों के सदस्यों ने ही उठाया है.


केंद्र को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश 
पीठ ने इस पर केन्द्र को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और जनहित याचिका को अंतिम निबटारे के लिए जुलाई के दूसरे सप्ताह में सूचीबद्ध कर दिया. इस याचिका में दलील दी गई है कि अनुसूचित जाति और जनजातियों को मिलने वाला आरक्षण और दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ इन समुदायों में संपन्न तबके की वजह से असली जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा है. याचिका में दावा किया गया है कि प्रभावशाली तबका अधिकांश लाभों पर कब्जा कर लेता है और इन समुदायों के 95 फीसदी लोगों किसी भी प्रकार से लाभ से वंचित रह जाते हैं.


(इनपुट - भाषा)