Mughal Facts: इस मुगल ने पंडितों के साथ किया उपनिषद का अनुवाद, गद्दी के चक्कर में हुआ सिर कलम
Mughal History: यह मुगल बादशाह (Mughal Emperor) का उत्तराधिकारी था. धर्म में इनकी काफी रुचि थी. लेकिन बाद में भाई ने ही इनका सिर कलम करवा दिया था. इस मुगल की पढ़ाई-लिखाई में दिलचस्पी भी थी. इन्होंने 25 साल की उम्र में अपनी पहली किताब लिखी थी.
Mughal Emperor: मुगल इतिहास (Mughal History) ऐसी कई बातों से भरा पड़ा है जो काफी दिलचस्प हैं. मुगलों (Mughals) में एक ऐसा शख्स भी हुआ है जिसने बनारस के पंडितों के साथ मिलकर उपनिषद (Upnishad) का फारसी में अनुवाद किया था. सूफी (Sufi) परंपरा से उनका नाता था, लेकिन बाद में राजगद्दी के चक्कर में उनकी हत्या कर दी गई थी. उनका सिर कलम करने का आदेश किसी और ने नहीं, बल्कि उनके भाई ने ही दिया था. गद्दी के लालच में उनको बेरहमी से मार दिया गया था. इस मुगल से जुड़ी एक और खास बात ये है कि इसने 25 साल की उम्र में ही अपनी पहली किताब लिख दी थी. सूफी परंपराओं से ये मुगल खासा प्रभावित था. पढ़ने-लिखने में इसकी काफी रुचि थी.
जिस मुगल ने किया उपनिषद का अनुवाद
बता दें कि उपनिषद का अनुवाद करने वाला मुगल शाहजहां (Shah Jahan) का बड़ा बेटा दारा शिकोह (Dara Shikoh) था. दारा शिकोह ने अपना अधिकतर समय आध्यात्म में दिया. दारा शिकोह ने काफी कम उम्र में कुरान की दक्षता पा ली थी. इसके अलावा सूफियों से भी उनका काफी संपर्क रहा था. मुल्ला शाह ने दारा शिकोह को सूफी परंपरा की शिक्षा दी थी, उनका मार्गदर्शन किया था.
25 साल की उम्र में लिखी पहली किताब
जाने लें कि मुगल दारा शिकोह ने 25 साल की उम्र में सफीनात-उल-औलिया किताब लिख दी थी. इस किताब ने उन्होंने पैगंबर और उनकी फैमिली के बारे में लिखा था. दारा शिकोह ने कुछ प्रमुख सूफियों और खलीफाओं की जीवनी भी लिखी थी. दारा शिकोह ने रिसाला-ए-हकनुमा और इक्सिर-ए-आजम भी लिखी.
भाई ने करा दिया सिर कलम
गौरतलब है कि दारा शिकोह मुगल बादशाह के उत्तराधिकारी थे. हालांकि, युद्ध की ज्यादा समझ उनको नहीं थी. जब उनके बाकी भाई युद्ध के लिए अभियान कर रहे थे, तब वह अपना जीवन आध्यात्म को समर्पित कर रहे थे. इसी का फायदा औरंगजेब ने उठाया था और अपने भाई को रास्ते हटा दिया था. औरंगजेब ने दारा शिकोह का सिर कलम करवा दिया था.
धर्म में थी दारा शिकोह की रुचि
आपको बता दें कि दारा शिकोह को धर्म से जुड़ा साहित्य पढ़ना बहुत दिलचस्प लगता था. अलग-अलग धर्मों के मर्म को समझने के लिए वह विद्वानों से मिलते रहते थे. बनारस के पंडितों के साथ बैठकर दारा शिकोह ने सिर-ए-अकबर लिखी थी. यह किताब उपनिषद का अनुवाद फारसी में है.
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