नई दिल्ली: देश में कोरोना वायरस (Coronavirus)  के मामले तेजी बढ़ रहे हैं. वहीं कोविड-19 (COVID-19)  महामारी से मरने वालों का आंकड़ा अब 1.32 लाख त​क पहुंच गया है. देश में कोरोना से मृत्यु दर (Death Rate) 1.47 प्रतिशत के करीब बनी हुई है.


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​दिल्ली (Delhi) की बात करें तो ​बीते 15 दिनों में दिल्ली में करीब 1400 लोगों की मौत हुई है. दिल्ली के अस्पतालों में तो लोग दिक्कतों का सामना कर ही रहे हैं श्मशान घाटों पर भी अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग लिस्ट है. 


दिल्ली में नए मामले और मौत का आंकड़ा बढ़ा है. सरकार महामारी की रोकथाम के​ लिए उपाय कर रही है. लेकिन कोविड-19 के बढ़ते मामलों को देखकर लग रहा है कि कई राज्यों में हालात बिगड़ सकते हैं.


अस्पतालों में मरीजों की हालत
कोरोना काल पहले देश के लिए जी का जंजाल बना और अब ये बदहाली, बदहवासी, मौत और कर्ज़ के जाल में लोगों को जकड़ने लगा है. जो जिंदा बच गया उसे कर्ज का बोझ मार रहा है और जो जिंदा बचने की कोशिश में अस्पताल पहुंच गया उसे सिस्टम एक गुमशुदा लाश में बदल रहा है. अस्पतालों के पास न लाज है न लिहाज है और न ही इस बीमारी का कोई पुख्ता इलाज है. इस अस्पताल से 100 मीटर की दूरी पर रहने वाले सुरेश राय संक्रमण की आशंका की वजह से GTB अस्पताल में भर्ती तो गए. लेकिन फिर कुछ ही दिनों में वो एक लापता लाश में बदल गए. अस्पताल दावा करता रहा कि सुरेश छठी मंजिल के कोविड वार्ड से भाग गए हैं. लेकिन दो दिन की तलाश के बाद पांचवी मंजिल पर उनकी लाश मिली.


सुरेश राय 11 नवंबर को इस अस्पताल में भर्ती हुए थे. हालांकि उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई थी. लेकिन अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और उनके घर वालों को बताया गया कि उन्हें ऑक्सीजन दी जा रही है. लेकिन इसी दौरान वो सिर्फ बाथरूम तक गए और जीवित वहीं लौटे.


संगम विहार में रहने वाले बुजुर्ग घनश्याम ने 10 नवंबर को अपनी बेटी आरती को इस अस्पताल में भर्ती कराया था. आरती भी कोरोना का शिकार थी. 13 नवंबर तक घनश्याम की अपनी बेटी से बात होती रही. लेकिन फिर अचानक वो गायब हो गई. आरोप है कि आरती तीन दिन तक अस्पताल में भूखी प्यासी भटकती रही क्योंकि, उसका वार्ड अचानक बदल दिया गया था. जब एक गार्ड ने बदहाल हालत में रोते हुए आरती को देखा. तब अस्पताल ने इसकी जानकारी घनश्याम को दी.


ये कहानी एक या दो परिवारों की नहीं हैं. जो मरीज अस्पताल में कोरोना से संघर्ष कर रहे हैं, उनके घर वाले बाहर आधी अधूरी व्यवस्थाओं और सरकारी तौर तरीकों से जूझ रहे हैं.


शिकायत ये है कि जब तक घर वाले मरीज से उसके फोन पर बात करते हैं तो नेटवर्क में कोई समस्या नहीं आती. लेकिन जब मरीज के पास मोबाइल फोन नहीं होता तो जिन हेल्प लाइन नंबर्स के विज्ञापनों से दिल्ली इस समय पटी पड़ी है. उसका नेटवर्क नहीं मिलता. मिलता है तो कोई फोन नहीं उठाता और जो फोन उठाता है उसके पास कोई जानकारी ही नहीं होती.


मरीज गुमशुदा लाशों में बदल रहे
अस्पतालों में मरीज गुमशुदा लाशों में बदल रहे हैं तो जिन श्मशान घाटों पर जीवन की अंतिम यात्रा का अंत होता है. वो शमशान घाट अपनी क्षमता खोने लगे हैं. दिल्ली में कोरोना से एक दिन में होने वाली मौतों का आंकड़ा पिछले पिछले दिनों 100 से ज्यादा हो गया था. कोरोना से पहले दिल्ली में हर रोज औसतन ढाई से 300 लोगों की मृत्यु होती थी. शमशान घाट इसके लिए पर्याप्त थे. लेकिन अब एक बार फिर दबाव बढ़ता जा रहा है.


यानी पहले मरीज अस्पताल में इलाज के लिए घंटों और दिनों तक इंतजार करते हैं और अगर कोरोना से जंग ना जीत पाए तो फिर मोक्ष के लिए भी इंतजार खत्म नहीं होता.


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