DNA ANALYSIS: दिल्ली में कोरोना के कहर के बीच डरा रहा अस्पतालों का ये सच
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DNA ANALYSIS: दिल्ली में कोरोना के कहर के बीच डरा रहा अस्पतालों का ये सच

कोरोना काल पहले देश के लिए जी का जंजाल बना और अब ये बदहाली, बदहवासी, मौत और कर्ज़ के जाल में लोगों को जकड़ने लगा है. जो जिंदा बच गया उसे कर्ज का बोझ मार रहा है और जो जिंदा बचने की कोशिश में अस्पताल पहुंच गया उसे सिस्टम एक गुमशुदा लाश में बदल रहा है. 

DNA ANALYSIS: दिल्ली में कोरोना के कहर के बीच डरा रहा अस्पतालों का ये सच

नई दिल्ली: गरुड़ पुराण में कहा गया है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका अंतिम संस्कार रात में नहीं किया जाना चाहिए. वैसे तो ये सिर्फ मान्यता की बात है. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति ऐसी हो चुकी है कि अब यहां रात में भी चिता जल रही हैं और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी अब एक लंबी वेटिंग लिस्ट है. दिल्ली में अंतिम संस्कार के लिए लोगों को कई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है और इसका नतीजा ये है कि अब शमशान घाटों पर रात में भी चिताएं जल रही हैं. 

कोरोना वायरस की वैक्सीन अब भी महीनों दूर...
हमने बहुत पहले ही इस बात का अंदेशा जताया था और आप से कई बार कहा था कि अगर आप लोगों ने सावधानी नहीं बरती तो भारत की हालत भी यूरोप के उन देशों की तरह हो सकती है. जहां कोरोना वायरस की वजह से अस्पतालों में शव रखने तक की जगह नहीं बची थी. ये स्थिति इसलिए आई है क्योंकि हमारे देश की सरकारें, सिस्टम और आम लोग अपने कर्तव्यों और कोरोना के खतरों के प्रति ईमानदार नहीं है. ईमानदारी न बरतने का नतीजा ये हुआ है कि देश में एक बार फिर से लॉकडाउन के लौट आने की आशंका जताई जा रही है. तमाम दावों के बावजूद कोरोना वायरस की वैक्सीन अब भी महीनों दूर है और इससे बचने का फिलहाल एक ही उपाय है और वो है ईमानदारी. लेकिन जब समाज में एक व्यक्ति भी ईमानदारी बरतना भूल जाता है तो इसका खामियाजा पूरे देश को उठाना पड़ता है.

इसे आप दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के उदाहरण से समझिए. दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में एक व्यक्ति एक रेस्टोरेंट में कोरोना से संक्रमित हुआ. जब उसकी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की गई तो उसने बताया कि उसने उस रेस्टोरेंट से सिर्फ पिज़्जा खरीदा था. लेकिन इस बीच इस रेस्टोरेंट में काम करने वाले कई कर्मचारी भी कोरोना पॉजिटिव हो चुके थे. इसके बाद दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में हड़कंप मच गया क्योंकि प्रशासन को लगा कि जिस व्यक्ति ने सिर्फ कुछ मिनट रेस्टोरेंट में बिताने के बाद इतने लोगों को संक्रमित कर दिया उसके शरीर में जरूर कोरोना वायरस का ऐसा स्ट्रेन मौजूद है जो पहले से बहुत ज्यादा घातक है. इस नतीजे पर पहुंचने के बाद दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में बहुत सख्त लॉकडाउन लगा दिया गया. दुकानें और दफ्तर  बंद कर दिए गए और यहां तक कि लोगों के घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गई. लेकिन जब जांच हुई तो पता चला कि संक्रमित व्यक्ति झूठ बोल रहा था, इस व्यक्ति ने रेस्टोरेंट से पिज़्जा नहीं खरीदा था, बल्कि ये वहां काम करता था और इसने लगातार कई शिफ्ट्स में काम किया था.

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इसके बाद दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में लगाए गए 6 दिन के इस सख्त लॉकडाउन को शनिवार आधी रात के बाद हटाने की घोषणा की गई और कहा गया कि अब दुकानें और दफ्तर भी खोले जा सकते हैं, ये दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले 18 लाख लोगों के लिए राहत की खबर थी. लेकिन जिस व्यक्ति ने झूठ बोला उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के कानून में फिलहाल ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.

कोराना काल में आपकी ईमानदारी ही सबसे कारगर हथियार
आपको हमने ये कहानी इसलिए सुनाई ताकि आप ये समझ सकें कि इस कोराना काल में आपकी ईमानदारी ही सबसे कारगर हथियार है और Honesty Is The Best Policy जैसी जो बातें अब तक सिर्फ पुस्तकों में बंद हैं. उन्हें पुस्तकों से बाहर निकालकर जीवन में अपनाने की जरूरत है और भारत के 135 करोड़ लोगों के लिए तो ये और भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि, भारत में संक्रमण के नए मामलों की संख्या भले ही अब कम हो रहे हैं लेकिन स्थिति अच्छी नहीं है. त्योहारों के समय जिस तरह की भीड़ देश के अलग अलग शहरों में दिखाई दी. उससे इस बात की आशंका पैदा हो गई है कि भारत में कोरोना का टाइम बम एक बार फिर से फट सकता है.

बिहार में छठ पर्व के दौरान घाटों पर जो भीड़ दिखाई दी उसे देखकर भी आप समझ जाएंगे कि कोरोना वायरस को लेकर अभी हमारे देश में लोगों की सोच क्या है?

बिहार के बहुत सारे लोग दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े बड़े शहरों में काम करते हैं. इसलिए आप सोचिए जब ये लोग वापस इन शहरों में लौटेंगे तो क्या स्थिति हो जाएगी.

अब कोरोना वायरस से जुड़ी कुछ और बातें जान लीजिए-

-महाराष्ट्र सरकार दिल्ली और मुंबई के बीच हवाई सेवा और रेल सेवा पर रोक लगाने का विचार कर रही है. दिल्ली में Covid-19 के बढ़ते मामलों की वजह से महाराष्ट्र सरकार ऐसा फैसला ले सकती है.

-गुजरात सरकार ने अहमदाबाद में आज रात 9 बजे से लेकर सोमवार सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया है. हालांकि इस दौरान मेडिसिन और दूध बेचने वाली दुकानों सहित सभी जरूरी सुविधाएं पहले की तरह काम करेंगी.
- और अहमदाबाद के एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन आने और जाने वाले यात्रियों को कर्फ्यू से छूट मिलेगी. यानी ऐसे यात्री अपना टिकट दिखाकर एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन जा सकेंगे.

- गुजरात के राजकोट, वडोदरा और सूरत में शनिवार से रात का कर्फ्यू लगा दिया गया है जो रात 9 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक लागू रहेगा.

- महाराष्ट्र के पंढरपुर में 24 नवंबर की रात 12 बजे से 26 नवंबर की रात 12 बजे तक कर्फ्यू लगा रहेगा. 

कोरोना के डर का फायदा, दुनिया की तीन कंपनियों को पहुंच रहा
कुल मिलाकर हालत ये है कि जब भारत में संक्रमण के मामले बहुत कम थे तो लोगों में डर बहुत ज्यादा था लेकिन अब जब संक्रमण के मामले बहुत ज्यादा हो गए हैं तो डर बिल्कुल कम हो गया है और कहते हैं कि दुनिया में डर से बड़ा कोई कारोबार नहीं है. इसी डर का फायदा दुनिया की उन तीन कंपनियों को पहुंच रहा है जिन कंपनियों ने कोरोना वायरस की वैक्सीन बना लेने का दावा किया है.

इस समय दुनिया में जिन तीन वैक्सीन के नाम की सबसे ज्यादा चर्चा है. उसमें पहली है, अमेरिका की Pfizer कंपनी द्वारा बनाई जा रही है वैक्सीन, दूसरे नंबर पर अमेरिका की Moderna कंपनी की वैक्सीन है और तीसरे नंबर पर रूस की बनाई जा रही Sputnik वैक्सीन है. लेकिन मजे की बात ये है ये तीनों वैक्सीन कितने प्रतिशत कारगर है, इसे लेकर पिछले कुछ दिनों में अलग-अलग दावे किए गए हैं.

सबसे ताजा दावा Pfizer का है जिसने कहा है कि उसकी वैक्सीन 95 प्रतिशत तक कारगर है. लेकिन इसी कंपनी ने पिछले हफ्ते अपनी वैक्सीन के 90 प्रतिशत तक असरदार होने का दावा किया था. इसके बाद Moderna ने अपनी वैक्सीन के 94.5 प्रतिशत असरदार होने का दावा किया और अब Moderna ने कहा है कि उसकी वैक्सीन 90 नहीं 95 प्रतिशत तक सफल है. इसी बीच रूस की तरफ से दावा किया गया है कि Sputnik V 92 प्रतिशत तक असरदार है.

वैक्सीन के 90, 92, 94.5 और 95 प्रतिशत तक सफल होने के ये आंकड़े एक बार को देखने में ऐसे लगते हैं जैसे ये दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन के लिए Cut Off के आंकड़े हों.

94 प्रतिशत सफलता का दावा
पिछले हफ्ते जब Pfizer ने अपनी वैक्सीन के 90 प्रतिशत तक सफल होने का दावा किया था. तब इस कंपनी के शेयरों में 19 प्रतिशत का उछाल आ गया था और कंपनी के शेयर पिछले एक वर्ष में सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गए थे. लेकिन जब इसके बाद Moderna ने 94 प्रतिशत सफलता का दावा किया तो Pfizer के शेयरों के दाम साढ़े चार प्रतिशत तक गिर गए. इसकी वजह ये थी कि Pfizer द्वारा बनाई गई वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर स्टोर करके रखने की जरूरत होगी, जबकि Moderna की वैक्सीन को सामान्य फ्रिज में भी रखा जा सकता है. इस वजह से Moderna के शेयर के दाम 1.6 प्रतिशत तक बढ़ गए. लेकिन आज Pfizer की वैक्सीन के 95 प्रतिशत तक सफल होने के दावे के बाद इस कंपनी के शेयरों के दाम एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं.

Vaccines कब और किस तारीख को बाजार में आएंगी?
स्थिति ये है कि दुनिया भर में Pfizer की वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री सेल्सियस तामपान पर स्टोर करके रखने के लिए जरूरी Refrigerators का प्रोडक्शन तेज हो गया है. इन Vaccines को जिन विशेष प्रकार की शीशियों में स्टोर किया जाएगा उनका उत्पादन भी तेज हो गया है. बाकी के लॉजिस्टिक्स पर भी काम शुरू हो गया है. जिन बक्सों में इन वैक्सीन्स को रखा जाएगा उनकी GPS ट्रैकिंग कैसे होगी इसका भी प्लान तैयार हो गया है. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के देशों ने इन वैक्सीन्स के लिए ऑर्डर देना भी शुरू कर दिया है. लेकिन ये वैक्सीन्स कब और किस तारीख को बाजार में आएंगी ये किसी को नहीं पता.

भारत में तो हालात ये हैं कि वैक्सीन को छोड़कर कोरोना से 99.9 प्रतिशत तक लड़ने का दावा करने वाले साबुन, डिस्टेंपर, पेंट, टॉयलेट क्लीनर तक सब बाजार में आ चुके हैं. यानी बाजार आपके डर का अच्छी तरह से दोहन कर रहा है और आपको इसकी खबर तक नहीं है.

लापरवाही ने दिल्ली को एक बार मई-जून वाली स्थिति में पहुंचा दिया
लेकिन सबसे ज्यादा दुख की बात तो ये है कि रात में जलती चिताओं की जिन तस्वीरों को देखकर लोगों को डरना चाहिए, शमशान घाट में जिस वेटिंग लिस्ट को देखकर लोगों को डरना चाहिए और सावधानी बरती जानी चाहिए. उसके प्रति सब लापरवाह बने हुए है. इस लापरवाही ने कैसे देश की राजधानी दिल्ली को एक बार मई-जून वाली स्थिति में पहुंचा दिया है. उस पर हमने एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. ये ​रिपोर्ट देखकर आप समझ पाएंगे कि दिल्ली में इस समय हालात कितने खतरनाक हैं.

कोरोना काल पहले देश के लिए जी का जंजाल बना और अब ये बदहाली, बदहवासी, मौत और कर्ज़ के जाल में लोगों को जकड़ने लगा है. जो जिंदा बच गया उसे कर्ज का बोझ मार रहा है और जो जिंदा बचने की कोशिश में अस्पताल पहुंच गया उसे सिस्टम एक गुमशुदा लाश में बदल रहा है. अस्पतालों के पास न लाज है न लिहाज है और न ही इस बीमारी का कोई पुख्ता इलाज है. इस अस्पताल से 100 मीटर की दूरी पर रहने वाले सुरेश राय संक्रमण की आशंका की वजह से GTB अस्पताल में भर्ती तो गए. लेकिन फिर कुछ ही दिनों में वो एक लापता लाश में बदल गए. अस्पताल दावा करता रहा कि सुरेश छठी मंजिल के कोविड वार्ड से भाग गए हैं. लेकिन दो दिन की तलाश के बाद पांचवी मंजिल पर उनकी लाश मिली.

सुरेश राय 11 नवंबर को इस अस्पताल में भर्ती हुए थे. हालांकि उनकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई थी. लेकिन अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और उनके घर वालों को बताया गया कि उन्हें ऑक्सीजन दी जा रही है. लेकिन इसी दौरान वो सिर्फ बाथरूम तक गए और जीवित वहीं लौटे.

संगम विहार में रहने वाले बुजुर्ग घनश्याम ने 10 नवंबर को अपनी बेटी आरती को इस अस्पताल में भर्ती कराया था. आरती भी कोरोना का शिकार थी. 13 नवंबर तक घनश्याम की अपनी बेटी से बात होती रही. लेकिन फिर अचानक वो गायब हो गई. आरोप है कि आरती तीन दिन तक अस्पताल में भूखी प्यासी भटकती रही क्योंकि, उसका वार्ड अचानक बदल दिया गया था. जब एक गार्ड ने बदहाल हालत में रोते हुए आरती को देखा. तब अस्पताल ने इसकी जानकारी घनश्याम को दी.

ये कहानी एक या दो परिवारों की नहीं हैं. जो मरीज अस्पताल में कोरोना से संघर्ष कर रहे हैं, उनके घर वाले बाहर आधी अधूरी व्यवस्थाओं और सरकारी तौर तरीकों से जूझ रहे हैं.

शिकायत ये है कि जब तक घर वाले मरीज से उसके फोन पर बात करते हैं तो नेटवर्क में कोई समस्या नहीं आती. लेकिन जब मरीज के पास मोबाइल फोन नहीं होता तो जिन हेल्प लाइन नंबर्स के विज्ञापनों से दिल्ली इस समय पटी पड़ी है. उसका नेटवर्क नहीं मिलता. मिलता है तो कोई फोन नहीं उठाता और जो फोन उठाता है उसके पास कोई जानकारी ही नहीं होती.

मरीज गुमशुदा लाशों में बदल रहे
अस्पतालों में मरीज गुमशुदा लाशों में बदल रहे हैं तो जिन श्मशान घाटों पर जीवन की अंतिम यात्रा का अंत होता है. वो शमशान घाट अपनी क्षमता खोने लगे हैं. दिल्ली में कोरोना से एक दिन में होने वाली मौतों का आंकड़ा पिछले पिछले दिनों 100 से ज्यादा हो गया था. कोरोना से पहले दिल्ली में हर रोज औसतन ढाई से 300 लोगों की मृत्यु होती थी. शमशान घाट इसके लिए पर्याप्त थे. लेकिन अब एक बार फिर दबाव बढ़ता जा रहा है.

यानी पहले मरीज अस्पताल में इलाज के लिए घंटों और दिनों तक इंतजार करते हैं और अगर कोरोना से जंग ना जीत पाए तो फिर मोक्ष के लिए भी इंतजार खत्म नहीं होता.

अब आप एक पल के लिए कल्पना कीजिए कि कोई मरीज खुशकिस्मत निकला उसे प्राइवेट अस्पताल में बेड भी मिल गया. इलाज भी मिल गया और जान भी बच गई. लेकिन ये इलाज जिस कीमत पर होता है. वो अच्छे खासे व्यक्ति की भी कमर तोड़ कर रख देता है. ये अश्विनी तयाल हैं जिनके 67 वर्षीय पिता कोरोना से संक्रमित होने के बाद दिल्ली के साकेत में मैक्स अस्पताल में 24 अक्टूबर को भर्ती हुए. 7 नवंबर तक उनके पिता के इलाज का बिल 22 लाख 75 हजार 726 रुपये तक तक पहुंच गया. अश्विनी तयाल ने जब इसकी शिकायत ट्विटर के जरिए प्रधानमंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री को की तो इस बिल को रिवाइज किया गया और नया बिल बना 14 लाख 50 हजार 876 रुपए का.

इस बिल में-
-ब्लड transfusion फीस थी 11 हज़ार रुपये
-डॉक्टर की 14 दिनों कंसल्टेंट फीस थी 45 हज़ार 500 रुपय़े
-14 दिन की दवाओं की फीस थी 5 लाख, 91 हज़ार, 340 रुपये
-14 दिनों की इन्वेस्टीगेशन फीस थी 2 लाख 85 हज़ार 115 रुपये
-रूम रेंट था 1 लाख 95 हज़ार 750 रुपये
-14 दिन की मेडिकल कंज्यूमेबल फीस जिसमें PPE कीट्स, ग्लव्स, मास्क, सिरिंज वगैरह शामिल होते हैं उनका बिल बना, 1 लाख 14 हज़ार रुपये
-इक्विपमेंट फीस लगाई गई 93 हज़ार 240 रुपये
-अन्य चार्ज थे, 98 हज़ार 570 रुपये
- पूरी प्रक्रिया की फीस थी 15 हज़ार 550 रुपये
-एडवांस जमा कराए गए थे 1 लाख रुपये. ऐसे में 7 नवंबर तक बिल की राशि बनी Total= 14 लाख, 50 हज़ार 876

दिल्ली सरकार ने 20 जून को कोरोना का इलाज करने वाले प्राइवेट अस्पतालों के बिलों को काबू करने के लिए, प्राइवेट अस्पतालों में 60 प्रतिशत बेड के कोरोना पैकेज पर "कैप" लगाने का आदेश दिया था.

इसके मुताबिक दिल्ली के प्राइवेट अस्पताल कोरोना के सामान्य रोगी जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत हो उनका एक दिन का अधिकतम पैकेज 10 हजार, गंभीर रोगी जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत नहीं है. उनका अधिकतम पैकेज 15 हजार और गंभीर रोगी जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत हो उनका अधिकतम पैकेज 18 हजार रुपए तक ही हो सकता है.

मरीज या उसका परिवार महंगे बेड को जानबूझकर क्यों चुनेगा?
दिल्ली सरकार के इस आदेश में कहा गया था कि मरीज से पीपीई किट, ग्लव्स, सिरिंज का मरीज़ से अलग से कोई पैसा नहीं लिया जाएगा. लेकिन त्याल परिवार का बिल देखकर आप समझ जाएंगे कि कैसे नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. लेकिन जब हमने मैक्स अस्पताल से इस बारे में जवाब मांगा तो उन्होंने अजीबो गरीब दलील पेश की और कहा कि अश्विनी तयाल ने अपने पिता के लिए जो हॉस्पिटल बेड चुना. वो उन 40 प्रतिशत बेड्स में से एक था. जिन पर कोई कैप नहीं है लेकिन सवाल ये है कि भला कोई मरीज या उसका परिवार महंगे बेड को जानबूझकर क्यों चुनेगा.

अश्निनी तयाल ने किसी तरह से ये बिल तो चुका दिया लेकिन परेशानियां यहीं खत्म नहीं हुई. जब उन्होंने इसके लिए इंश्योंरेंस क्लेम किया तो ये क्लेम अस्पताल और इंश्योरेंस कंपनी के झगड़े में फंस गया. हालांकि मशक्कत के बाद ये विवाद सुलझ गया और इंश्योरेंस कंपनी ने भरोसा दिलाया कि क्लेम की रकम जारी कर दी जाएगी.

लेकिन समस्या यहीं खत्म नहीं होती. अगर आप बिल चुकाने में सक्षम भी हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपको अस्पताल में बेड मिल ही जाएगा. दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में मिलाकर अभी साढ़े सात हजार से ज्यादा बेड्स खाली हैं. इनमें 126 वेंटिलेटर वाले बेड हैं, 331 बेड्स ICU के हैं और 319 नॉन कोविड ICU है.

दिल्ली में चिताएं रात में जल रही हैं और मोक्ष पाने के लिए वेटिंग लिस्ट है और जिनको किसी तरह से इलाज मिल रहा है. उन्हें इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोराने से बचने पर उन्हें अस्पताल का बिल मार नहीं देगा.

Coronavirus को लेकर  ईमानदारी बरतना क्यों बहुत जरूरी है?
इस अनुशासन को आप कैसे अपने जीवन का हिस्सा बना सकते हैं. इसके लिए आज हमने एक प्रयोग किया. हमारी टीम दो डॉक्टरों के साथ दिल्ली की सड़कों पर निकली और जो लोग नियमों का उल्लंघन कर रहे थे उनसे बात की और हमारे साथ मौजूद डॉक्टरों ने खुद लोगों को समझाया कि इस वायरस को लेकर ईमानदारी बरतना क्यों बहुत जरूरी है. लेकिन इस दौरान हमारी टीम ने जो देखा वो भी कम हैरान करने वाला था उसकी एक झलक आपको भी देखनी चाहिए देखिए.

आप इन लोगों के बहाने सुनकर समझ गए होंगे कि लोग कैसे अब भी लापरवाह बने हुए हैं. लेकिन असल में ये लापरपवाही नहीं, बल्कि एक प्रकार की बेईमानी है. मास्क लगाना और अपने संक्रमण के बारे में लोगों को सही सही जानकारी देना ईमानदारी है.  ये देश के प्रति आपका दायित्व है. आपकी जिम्मेदारी है और जो इस जिम्मेदारी को नहीं समझता उसे आप परिवार, समाज और देश का हितैषी नहीं कह सकते.कुल मिलाकर कोरोना के संक्रमण के बारे में जानकारी छिपाना सिर्फ आपके लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए घातक है. और पॉजिटिव हो जाने पर खुद को दूसरों से अलग कर लेना सच में ईमानदारी है.

अगर आप ईमानदारी बरतेंगे तो आप अपने स्वास्थ्य को अच्छा रख पाएंगे और अगर आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो आप अपने लोगों का ख्याल भी रख पाएंगे, नौकरी भी कर पाएंगे और जीवन में आगे भी बढ़ पाएंगे. आपका स्वास्थ्य ही आपका नया पासपोर्ट है और ये पासपोर्ट ना सिर्फ आपको संभालकर रखना है, बल्कि अपनी इम्युनिटी को मजबूत करके आपको इसे हमेशा अपडेट भी रखना है. आपका Health Passport कितना मजबूत है इसका पता आपका आरोग्य सेतु ऐप देखकर लगाया जा सकता है. आपके दफ्तर में आपके शरीर का तापमान चेक करके ये पता लगाया जा सकता है कि कहीं आपको बुखार तो नहीं है. आप इन सब पैमानों पर सिर्फ तभी खरे उतर पाएंगे जब आप अपने स्वास्थ्य के प्रति ईमानदारी बरतेंगे.

कोरोना वायरस की वैक्सीन आने वाली है. लेकिन तब तक आपको अनुशासन में रहना होगा. हम समझ सकते हैं कि इस वायरस ने दुनिया के तमाम लोगों की तरह आपको भी शायद थका दिया है. इसे अंग्रेजी में Pandemic Fatigue कहा जाता है. लेकिन अभी इस थकावट से हारने का समय नहीं है. आपको अभी कुछ और महीने अपने आपको सुरक्षित रखना है और ईमानदारी को सबसे बड़ी वैक्सीन मानकर चलना है.

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