DNA Analysis: संसद की लड़ाई अब सड़कों पर आई, पहले हाथरस पुकारे; अब दिल्ली के सहारे?
हाथरस कांड के दौरान भी जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा पीड़ित परिवार से मिलने गए थे, तो उनकी तस्वीर खिंचवाने की बेताबी ने पीड़ित परिवार की मुश्किलें बढ़ा दी थीं और इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया.
नई दिल्ली: भारत में Event Management वाला Political मैच चल रहा है, जिसमें राहुल गांधी (Rahul Gandhi) गोल्ड मेडल जीतना चाहते हैं. आज दिल्ली में 9 साल की एक दलित बच्ची के बलात्कार और हत्या पर देश की पार्टियां जमकर राजनीति कर रही हैं. आज देश के बड़े-बड़े नेता इस बच्ची के परिवार के साथ फोटो खिंचवाने के लिए बेताब थ और इन नेताओं में राहुल गांधी का नाम सबसे ऊपर है.
क्या है मामला?
ये पूरी घटना 1 अगस्त की है, जब 9 साल की ये बच्ची अपने घर से कुछ दूर वहां के एक श्मशान घाट से ठंडा पानी लाने के लिए गई थी. लेकिन जब काफी देर तक वो घर नहीं लौटी तो परिवार को उसकी चिंता हुई. पुलिस का कहना है कि इसी दौरान शमशान घाट से कुछ लोगों ने इस बच्ची के माता पिता को फोन करके उन्हें वहां आने के लिए कहा. जब परिवार वहां पहुंचा तो उन्हें बताया गया कि पानी भरते समय बच्ची की करंट लगने से मौत हो गई है. आरोप है कि इसी के बाद बच्ची के माता-पिता की सहमति के बिना उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया.
तब कहां थे विपक्षी?
जिस इलाके में ये बच्ची रहती थी, वहां के लोगों ने इसका विरोध किया और उन्हीं में से एक व्यक्ति ने इस पूरी घटना की जानकारी पुलिस को दी. हालांकि तब तक बच्ची के माता पिता और हंगामा कर रहे लोगों में से किसी को ये जानकारी नहीं थी कि ये पूरा मामला गैंगरेप और हत्या का है. लेकिन बाद में जब इस पूरी घटना की जांच की गई तो पुलिस को पता चला कि श्मशान घाट के एक पुजारी और उसके तीन साथियों ने ही बच्ची का गैंगरेप किया, फिर उसकी हत्या की और बाद में उसके माता पिता की सहमति के बिना उसका अंतिम संस्कार कर दिया. लेकिन उस समय तक इस घटना में हमारे देश के विपक्षी नेताओं को कोई दिलचस्पी नहीं थी.
एक वर्ग इस पूरी घटना को लेकर सक्रिय क्यों?
2 और 3 अगस्त को इस मामले में किसी की तरफ से कोई हलचल नहीं हुई और किसी का कोई बयान नहीं आया. क्योंकि तब तक इस मामले में पीड़ित परिवार की जाति सामने नहीं आई थी. लेकिन जैसे ही ये पता चला कि पीड़ित परिवार दलित है और आरोपियों में श्मशान घाट का एक पुजारी भी है तो हमारे देश का एक वर्ग इस पूरी घटना को लेकर सक्रिय हो गया और पीड़ित परिवार के घर को इन नेताओं ने पर्यटन स्थल बना दिया. यहां समझने वाली बात ये है कि चारों आरोपी अलग अलग धर्म और जाति के हैं. इनमें हिन्दू भी हैं तो एक आरोपी मुस्लिम समुदाय का भी है लेकिन हमारे देश के विपक्षी नेता पीड़ित का धर्म और जाति तो देखते हैं लेकिन वो आरोपियों के धर्म और जाति की बात नहीं करते.
अच्छी तस्वीरों के लिए स्टंट?
आज दिल्ली के इस पीड़ित परिवार के साथ तस्वीर खिंचाने के लिए सबसे पहले राहुल गांधी पहुंचे. राहुल गांधी ने अपनी गाड़ी में ही पीड़ित के माता पिता से बातचीत की और इसके बाद उन्होंने मीडिया को भी एक बयान दिया. बड़ी बात ये है कि ये सब कुछ एक Event की तरह हुआ. राहुल गांधी के वहां आने से पहले ही कांग्रेस पार्टी के समर्थक बड़ी संख्या में वहां पहुंच गए थे. इसके अलावा वहां मौजूद मीडिया को भी ये बता दिया गया था कि राहुल गांधी थोड़ी देर में वहां पहुंचने वाले हैं. यानी हर एक चीज इस तरह से हुई, जैसे कोई तय कार्यक्रम होता है. राहुल गांधी ने इस मुलाकात के बाद Twitter पर एक तस्वीर भी पोस्ट की और इसे देख कर आप समझ सकते हैं कि इस तरह की अच्छी Quality की तस्वीर राहुल गांधी भीड़ के बीच नहीं खिंचवा सकते थे और शायद इसी वजह से उन्होंने बन्द गाड़ी में पीड़ित के माता पिता से मिलने का फैसला किया.
पीड़ित परिवार की बदनामी का भी नहीं रखा खयाल
हैरानी की बात ये है कि इस तस्वीर को खिंचवाने के चक्कर में राहुल गांधी ये भी भूल गए कि उनके इस शौक की वजह से पीड़ित परिवार की बदनामी हो सकती है. यानी POCSO ऐक्ट के सेक्शन 23 और Juvenile Justice Care and Protection Act के सेक्शन 74 के तहत कोई भी व्यक्ति रेप पीड़ित और उसके परिवार की पहचान को उजागर नहीं कर सकता और ना ही उनकी निजी जानकारी को शेयर कर सकता है. लेकिन राहुल गांधी ने इन बातों का ध्यान नहीं रखा और Twitter पर पीड़ित परिवार के साथ अपनी तस्वीर डाल दी और अब उनके खिलाफ पुलिस में इस पर शिकायत भी दर्ज हो सकती है.
राहुल पहले भी कर चुके हैं ऐसी गलती
हाथरस कांड के दौरान भी जब राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा पीड़ित परिवार से मिलने गए थे, तो उनकी तस्वीर खिंचवाने की बेताबी ने पीड़ित परिवार की मुश्किलें बढ़ा दी थीं और इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया. Twitter पर अपनी इसी पोस्ट में राहुल गांधी ने ये भी लिखा कि वो न्याय के रास्ते पर इस परिवार के साथ हैं और इंसाफ मिलने तक वो उनकी हर सम्भव मदद करेंगे. हालांकि. आप ध्यान से अगर इस ट्वीट की भाषा को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि राहुल गांधी का ये इस तरह का पहला ट्वीट नहीं है. इससे पहले 2020 में हाथरस में दलित लड़की के गैंगरेप मामले में भी राहुल गांधी ने इसी तरह की भाषा से मिलता जुलता ट्वीट किया था.
हाथरस गैंगरेप वाला है पैटर्न
इस मामले में राजनीति का पैटर्न वैसा ही है, जैसा पिछले साल हाथरस गैंगरेप मामले में देखने को मिला था. उस समय भी राहुल गांधी समेत हमारे देश के विपक्षी नेताओं ने इंसाफ दिलाने के नाम पर हाथरस को अपना पिकनिक स्पॉट बना लिया था. लेकिन इसके बाद ना तो राहुल गांधी फिर कभी हाथरस गए और ना ही दूसरे विपक्षी नेताओं ने कभी हाथरस जाना जरूरी समझा. बड़ी बात ये है कि राहुल गांधी ने जो बात दिल्ली के पीड़ित परिवार से आज कही, वही बात वो हाथरस में भी कह कर आए थे. लेकिन बाद में वो हाथरस कांड को भूल गए और हमें लगता है कि दिल्ली के मामले में भी अपनी तस्वीर खिंचवाने के बाद अब वो इस मामले को भी आने वाले समय में भूल जाएंगे. आज हमने हाथरस और दिल्ली दोनों मामलों पर उनके बयानों को आपके लिए निकाला है, जिसे सुन कर आपको पता चलेगा कि रेप पीड़ित के परिवारों से मिलना और उनके साथ फोटो खिंचवाना राहुल गांधी के लिए Image Management से ज्यादा कुछ नहीं है.
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ये नेता भी रहे 'इवेंट' में शामिल
राहुल गांधी के अलावा आज लेफ्ट नेता बृंदा करात भी दिल्ली के इस परिवार से मिलने के लिए पहुंचीं और उन्होंने भी अपनी खूब सारी तस्वीरें खिंचवाईं. उनके अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी आज इस परिवार से मिले और उसे 10 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया. इस सूची में भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद का भी नाम है, जो दलितों के नाम पर होने वाली राजनीति में सबसे आगे रहते हैं. ये दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इस मामले में हमारे देश के विपक्षी नेताओं को इस बच्ची के गैंगरेप और हत्या से ज्यादा उसकी जाति में दिलचस्पी है. इसलिए आज यहां ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर ये बच्ची दलित नहीं होती तो शायद ये नेता उसके लिए एक ट्वीट तक नहीं करते. उसके परिवार से मिलना तो दूर की बात है.
अपराध को भी जाति के चश्मे से देखना कितना सही?
सोचिए हमारे देश में रेप जैसे गम्भीर अपराध के मामलों को भी जाति के चश्मे से देखा जाता है और नेता इसमें अपने लिए वोट तलाशने का काम करते हैं. ये सभी वो नेता हैं, जो हाथरस कांड के समय भी पीड़ित परिवार के घर पहुंच गए थे और उन्हें इंसाफ दिलाने की बात कही थी लेकिन समय के साथ ये नेता उस परिवार को भूल गए. हालांकि Zee News ने ऐसा नहीं किया. हमने DNA में आपको इस पर पिछले साल नवम्बर में ग्राउंड जीरो से Follow Up रिपोर्ट दिखाई थी और आपको बताया था कि जिन विपक्षी नेताओं ने इस गांव में अपना कैम्प बना लिया था वो यहां फिर कभी लौटकर नहीं आए.
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रेप के मामलों को लेकर सिलेक्टिव क्यों?
Zee News दिल्ली के इस गैंगरेप मामले में सभी आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग करता है और हम चाहते हैं कि इस बच्ची को इंसाफ मिले लेकिन आज यहां आपको ये भी सोचना चाहिए कि क्या हमारे देश में रेप के मामलों को लेकर Selective होना और वोट बैंक की राजनीति करना सही है? इसे आप कुछ उदाहरणों से समझिए. 4 जुलाई को राजस्थान के अलवर में एक 19 साल की लड़की का 7 लोगों ने गैंगरेप किया था और इस मामले में सभी आरोपी एक विशेष धर्म से थे. राजस्थान में पिछले 6 महीने में रेप के मामलों में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. पंजाब के होशियारपुर में भी पिछले महीने की 9 तारीख को एक सात साल की लड़की का रेप हुआ था. इसके अलावा 30 मार्च को भी वहां एक नाबालिग लड़की का गैंगरेप हुआ, जो दलित थी. छत्तीसगढ़ में भी पिछले दिनों एक साढ़े तीन साल की बच्ची के साथ रेप का मामला सामने आया था लेकिन दिल्ली के पीड़ित परिवार से मिलने वाले नेता इन परिवारों से जाकर कभी नहीं मिले और ना ही राहुल गांधी ने ऐसा किया.
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