नई दिल्ली: 21वीं सदी में महिलाओं को मर्दों से कम नहीं आंका जा सकता है. महिलाएं हर रोज खुद को पुरुषों से बेहतर साबित कर रही हैं. धीरे-धीरे महिला हर उस फील्ड में जा रही हैं, जहां पहले केवल पुरुष ही जाते थे. सिविल सेवाओं के साथ-साथ अब महिलाएं सैना में भी अपना कमाल दिखा रही हैं. वहीं अब से पहले किसी ने सोचा नहीं था कि महिला इतना कुछ कर जाएंगी. तमाम उपलब्धियों के बाद अब 2023 में सियाचिन ग्लेशियर में पहली भारतीय महिला सैनिक अफसर की तैनाती हुई है.


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बता दें कि सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचा लड़ाई का मैदान है. यहां पर 1980 के दशक से पहले किसी सैनिक की तैनाती के बारे में सोचा भी नहीं जाता था. वहीं अब 2023 की शुरुआत सियाचिन ग्लेशियर में पहली भारतीय महिला सैनिक अफसर की तैनाती के साथ शुरू हुई. 2 जनवरी को कैप्टन शिवा चौहान सियाचिन ग्लेशियर में एक बेहद खतरनाक चढ़ाई के बाद अपनी पोस्ट पर काम शुरू कर दिया. 


OTA के जरिये हुई भारतीय सेना में शामिल
कैप्टन शिवा चौहान भारतीय सेना की इंजीनियर रेजिमेंट के बंगाल सैपर्स ग्रुप की अफसर हैं. उनकी जिम्मेदारी सियाचिन ग्लेशियर में सैनिक जरूरतों के हिसाब से निर्माण और सारसंभाल की होगी. दुश्मन के हमलों से बचने और उसपर हमला करने के लिए जरूरी मोर्चों और बंकरों को बनाने का काम भी कैप्टन चौहान की जिम्मेदारी होगी. इसके अलावा बर्फीले तूफानों और भयंकर सर्दी में सैनिकों के रहने के लिए जरूरी इंतजाम तैयार रखने का काम भी इन्हीं को संभालना होगा. कैप्टन शिवा राजस्थान के उदयपुर की रहने वाली हैं और उन्होंने यहीं से इंजीनियरिंग में डिग्री ली है. इसके बाद उन्होंने चेन्नई के ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकादमी (OTA) में दाखिला लिया और मई 2021 में सेना की इंजीनियरिंग रेजिमेंट में कमीशंड अफसर बनीं. पिछले साल कारगिल विजय दिवस पर उन्होंने सियाचिन वार मेमोरियल से लेकर कारगिल तक की 508 किमी की दूरी को साइकिल से तय किया. इसके बाद कैप्टन शिवा का चयन दुनिया की सबसे मुश्किल मानी जाने वाली तैनाती के लिए हुआ और उन्होंने सियाचिन बैटल स्कूल की कठिन ट्रेनिंग को पूरा किया. 


सियाचिन ग्लेशियर में सैनिक को दुश्मन नहीं बल्कि मौसम से ज्यादा खतरा होता है. यहां भारतीय सैनिकों की सबसे ऊंची चौकी 21000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर है. इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की बेहद कमी, बर्फीले तूफान, एवेलांच का खतरा हमेशा बना रहता है. यहां एक-एक कदम बहुत संभालकर उठाना होता है, क्योंकि यहां बर्फ की ऐसी दरारें होती हैं, जो सैकड़ों फीट नीचे ले जा सकती है. 3 फरवरी 2016 को 19 वीं मद्रास रेजिमेंट के 10 सैनिक यहां ऐसे ही एक एवलांच में दब कर वीरगति को प्राप्त हुए थे. यहां अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने एक जबरदस्त कार्रवाई ऑपरेशन मेघदूत चलाकर सभी महत्वपूर्ण ऊंचाइयों पर कब्जा करके सियाचिन ग्लेशियर को सुरक्षित किया था. पाकिस्तान ने उसके बाद कई बार कोशिश की, लेकिन वो ग्लेशियर पर कब्जा नहीं कर पाया. इसलिए यहां हर समय भारतीय सेना की मजबूत तैनाती होती है. यहां तैनाती से पहले हर सैनिक को बेहद सख्त चयन प्रक्रिया और लंबी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. यहां की परिस्थितियां शरीर पर इतना असर डालती हैं कि यहां किसी सैनिक की तैनाती केवल 90 दिनों तक के लिए ही होती है.