Delhi News: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश का विरोध करने के लिए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल विपक्ष के सभी दलों से समर्थन मांग रहे हैं. वहीं शुक्रवार सुबह उन्होंने ट्वीट कर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी नेता राहुल गांधी से मिलने के लिए समय मांगा था. वहीं कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात पर सस्पेंस अभी बरकरार है. वहीं अब इस मुलाकात को लेकर दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल तौधरी का एक बयान सामने आया है.


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बता दें कि आज यानी शनिवार को केजरीवाल के ट्वीट पर बोलते हुए अनिल चौधरी ने कहा कि कांग्रेस आलाकमान मुलाकात करेंगे या नहीं, इसका फैसला तो वो ही करेंगे. वहीं उन्होंने कहा कि जब सभी विपक्षी दल साथ थे तो वे भाजपा की प्रशंसा करते रहे. सीएम केजरीवाल को अपनी गलती का अहसास होना चाहिए. वहीं अब हालात ऐसे हैं कि अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस आलाकमान से इस अध्यादेश का विरोध करने के लिए समर्थन करने का अनुरोध किया है. अब फैसला पूरी तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर है.


वहीं आप मंत्री सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली सेवा मामले पर केंद्र के अध्यादेश को लेकर कांग्रेस की दिल्ली इकाई पर सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाया था. भारद्वाज ने कहा था कि एक तरफ जहां कांग्रेस की दिल्ली इकाई अध्यादेश के विरेध में आप को समर्थन देने से इंकार कर रही है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 2002 में भाजपा शासित केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली विधानसभा में एक प्रस्ताव लाई थीं. इस दौरान शीला दीक्षित ने भाजपा सरकार की निंदा की थी और कहा था कि यह लोकतांत्रिक परंपराओं का उल्लंघन है.  


साल 2002 में शीला दीक्षित ने केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली विधानसभा में इसी तरह का एक प्रस्ताव पारित किया था, क्योंकि केंद्र ने कहा था कि वे दिल्ली सरकार को मान्यता नहीं देते हैं और दिल्ली में केवल एक ही सरकार हो सकती है. वहीं अब दिल्ली कांग्रेस जो कर रही है, वह सुविधा की राजनीति है और वह भाजपा के लिए काम कर रही है. वहीं भारद्वाज ने कहा कि कांग्रेस के ऐसे नेताओं के बयान आ रहे हैं, जिन्हें पार्टी ने दरकिनार कर दिया है. 


वहीं भारद्वाज के इन आरोपों पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने पलटवार करते हुए कहा कि 'दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ऐसे अद्वितीय विशेषाधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, जिनसे पूर्व में शीला दीक्षित, मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज जैसे मुख्यमंत्री वंचित रहे. दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी का प्रतिनिधित्व करती है और यह पूरे देश की है. इसलिए सहकारी संघवाद का सिद्धांत दिल्ली में लागू नहीं होता है. संविधान दिल्ली को केवल दिल्ली के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के रूप में बताता है. यदि आप के समर्थक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सार को समझते हैं, तो उन्हें सम्मानपूर्वक अपनी मांगों को वापस लेना चाहिए. नेहरू, शास्त्री, नरसिंह राव, वाजपेयी और वर्ष 2014 तक मनमोहन सिंह तक किसी ने भी वह नहीं दिया, जो आम आदमी पार्टी की सरकार वर्तमान मोदी सरकार से मांग रही है.'