नई दिल्ली: दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने ट्विटर पर शेयर किए जा रहे अश्लील कंटेट को लेकर आवाज उठाई है, जिसके बाद ये ये सवाल भी उठने लगे हैं कि देश में अश्लील कंटेट को प्रसारित करने को लेकर क्या कानून हैं और अगर कोई ऐसा करते पाया जाता है तो ये साबित होने पर कितने साल की सजा हो सकती है. सेक्शन 67बी में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर कानून बनाए गए हैं.  


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पॉक्सो एक्ट 2012 के सेक्शन- 14 के तहत किसी भी बच्चे को पोर्नोग्राफिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल अपराध है. अगर कोई ऐसा करता कोई पाया गया तो उसे जुर्माने के साथ ही कम से कम 5 साल की जेल हो सकती है. अगर कोई दोबारा ऐसा करते पाया जाता है तो उसे जुर्माने के साथ 7 साल की सजा हो सकती है. 


एक्ट के सेक्शन-15 में किसी भी तरह से चाइल्ड पोर्नोग्राफी को रखने या प्रसारित करने पर प्रतिबंध लगाया गया है. इसमें साफ कहा गया है कि किसी भी तरह से चाइल्ड पोर्नोग्राफी को रखना, भेजना, दिखाना या प्रसारित करना गैरकानूनी है. अगर कोई इस तरह की अश्लील सामग्री को बेचते हुए पाया जाता है तो उसे 3-5 साल तक की सजा हो सकती है.


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भारत में Porn को लेकर क्या है कानून
IPC और आईटी एक्ट के अनुसार भारत में अकेले में पोर्न देखना गैरकानूनी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा साल 2015 में दिए एक फैसले में पोर्न सामग्री को शेयर करने को अपराध घोषित किया है. अगस्त 2015 में केंद्र सरकार ने टेलीकम्युनिकेशन विभाग से 857 एडल्ट साइट को बैन करने का आदेश जारी करने को कहा था. बाद में जानकारी सामने आई थी कि यह बैन अस्थायी है. 


सेक्शन 67ए में अश्लील सामग्रियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रसारित करने को लेकर प्रावधान है. अगर कोई अश्लील सामग्री पब्लिश करता है, या भेजता है तो उसे 5 साल जेल की सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है. 


सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका 
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था कि पोर्नोग्राफी और सेक्शुअल क्राइम के संबंध की जांच की जाए. याची ने कहा था कि हाल ही में असम में एक मामले की जांच में पता चला कि छह साल की लड़की का मर्डर चार बच्चों ने किया था और ये चारों पोर्न देखने के आदी थे. इसके बाद वहां गाइडलाइंस बनाई गई कि जांच अधिकारी रेप और सेक्शुअल ऑफेंस के केस में तय की गई मानक प्रक्रियाओं का पालन करें. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि हर केस में एक जैसा स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर कैसे हो सकता है.