नई दिल्ली: आदमपुर उपचुनाव को लेकर बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. दावा किया जा रहा है कि पार्टी भव्य जीत हासिल करेगी. इस सीट का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि इसे जीतने के लिए मौजूदा सीएम से लेकर पूर्व सीएम ने अपनी मूंछों का सवाल बना लिया. भूपिंदर सिंह हुड्डा जनता के बीच गए और अपने पार्टी प्रत्याशी जीत पर अपनी जीत बताया. वहीं हरियाणा सरकार में बीजेपी के साथ गठबंधन में शामिल इनेलो (INLD) ने पहली बार बिश्नोई परिवार के सपोर्ट में दिखी. ताऊ देवीलाल के परिवार के दुष्यंत चौटाला ने चौधरी भजनलाल परिवार के भव्य बिश्नोई के लिए प्रचार किया. इन दोनों परिवारों की सियासी लड़ाई 1972 से जारी है, लेकिन कभी दिलों की दुस्वारियां नहीं हुई. दोनों परिवार अब सरकार में हैं.


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दरअसल, हरियाणा के आदमपुर उपचुनाव में विरोधी रहे उपप्रधामंत्री चौधरी देवीलाल और पूर्व सीएम भजनलाल की तीसरी और चौथी पीढ़ी को एक साथ ले आया है. पीढ़ी दर पीढ़ी से दोनों परिवार चुनावों में एक-दूसरे के आमने-सामने थे. लेकिन इस उपचुनाव में कुछ अगल ही देखने को मिला. ताऊ देवीलाल परिवार की चौथी पीढ़ी से दुष्यंत चौटाला और भजनलाल के परिवार से कुलदीप बिश्ननोई और उनके बेटे भव्य बिश्नोई ने आदमपुर के गांव बालसमंद में एक साथ मंच पर ला दिया. यह सियासत में ही हो सकता है. यह सियासत 50 साल से जारी है, लेकिन अब वक्त साथ चलने का है.



दुष्यंत महान और ओजस्वी नेता
भव्य के लिए प्रचार करने पहुंचे दुष्यंत की कुलदीप बिश्नोई ने भी सराहना की. कहा कि व्यक्तिगत रूप से दुष्यंत से प्रभावित रहा हूं. लोकसभा चुनाव हमने एक-दूसरे के खिलाफ लड़ा, परंतु मैंने इनकी मेहनत देखी और इनकी मेहनत का कायल रहा. दुष्यंत चौटाला ने इतनी कम उम्र में बुलंदियां हासिल कीं, वे महान और ओजस्वी नेता हैं. देवीलाल और भजनलाल का परिवार एक मंच पर है, ऐसा नजारा प्रदेश की राजनीति में नहीं हो सकता था.


आदमपुर से भजन लाल ने देवीलाल को हराया था
हरियाणा की राजनीति में देवीलाल और भजनलाल का परिवार बड़े घराने से हैं. साल 1972 में आदमपुर विधानसभा सीट पर चौधरी भजन लाल की कांग्रेस के उम्मीदवारी थी और उनके विपक्ष में चौधरी देवीलाल निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे थे. तब चौधरी देवीलाल 10,961 वोट से हारे थे. साल 2008 के उप चुनाव में भजन लाल के समक्ष रणजीत सिंह चौटाला चुनावी मैदान में थे, जिसमें वो 20 हजार वोट से हार का सामना करना पड़ा था. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला कुलदीप बिश्नोई को 31,867 वोटों से हरा चुके हैं. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भव्य बिश्नोई और दुष्यंत चौटाला को भाजपा उम्मीदवार बृजेंद्र सिंह ने हराया था. 



क्या हैं इसके मायने?
दोनों परिवारों के एक साथ आने के राजनीतिक मायने कुछ और हैं. प्रदेश की राजनीति को करीब से जानने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि यह गठबंधन की मजबूरी ही है, वरना ऐसा कभी संभव नहीं था. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक में दलों की दूरियां से हो सकती हैं, लेकिन दिलों की दूरियां आमतौर पर कम ही देखने को मिलती हैं. इसलिए ताऊ देवीलाल और चौधरी भजनलाल के परिवार की मजबूरी ही है. वहीं एक दूसरे राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि वह पुरानी बात हो गई, हरियाणा में अब इन दोनों परिवारों की चौथी पीढ़ी राजनीति में है, तो वह तय रहे हैं कि इसे कैसे आगे ले जाना है.


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