NOIDA: आपातकाल को जीने वाले डॉ. देवेंद्र दीपक बोले-आज पुस्तक नायक तो Google सहायक की तरह है
Prerna shodh Sansthan: डॉ. देवेंद्र दीपक राष्ट्रीय चेतना के शिक्षक, पत्रकार और साहित्यकार रहे हैं. वह मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दे चुके हैं. उन्होंने आपातकाल, दलित चिंतन, भारतीय संस्कृत के मूल्यों पर अपनी दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है.
Noida Book Launch : आपातकाल को झेलकर उसे किताब में पिरोने वाले डॉ. देवेंद्र दीपक पर आधारित पुस्तक 'काव्य पुरुष: डॉ. देवेंद्र दीपक-दृष्टि और मूल्यांकन' का विमोचन नोएडा के प्रेरणा शोध संस्थान में किया गया. इस दौरान 94 वर्षीय डॉ. देवेंद्र दीपक ने मनुष्य के सामाजिक जीवन में किताबों की महत्ता पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि नायक है पुस्तक और गूगल सहायक. गूगल जो भी साहित्यक सामग्री आपके समक्ष प्रस्तुत करता है, वह किसी न किसी साहित्यकार की साधना का फल होता है.
रेलवे स्टेशन से स्टॉल से किताबों का गायब होना चिंता का विषय
प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा संपादित पुस्तक के विमोचन समारोह में साहित्यकार डॉ. देवेंद्र दीपक ने रेलवे स्टेशन से स्टॉल से किताबों के गायब होने पर चिंता जाहिर की. हालांकि उन्होंने कहा कि पुस्तकें पढ़ी जा रही हैं. हालांकि उनका स्वरूप बदल गया है. अब ई बुक का प्रचलन बढ़ गया है. उन्होंने जोर देकर कहा कि पुस्तक उद्घाटन के मंचों पर लेखक और लेखिका के जीवनसाथी का भी सम्मान होना चाहिए. इससे बदलते सामाजिक परिदृश्य में पारिवारिक समरसता बढ़ेगी.
दलित चिंतन पर लिख चुके हैं किताबें
डॉ. देवेंद्र दीपक राष्ट्रीय चेतना के शिक्षक, पत्रकार और साहित्यकार रहे हैं. वह मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दे चुके हैं. उन्होंने आपातकाल, दलित चिंतन, भारतीय संस्कृत के मूल्यों पर अपनी दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है.
आपातकाल को सहा पर नहीं बने किसी के प्रवक्ता
इस दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के क्षेत्र प्रचार प्रमुख पद्म सिंह ने कहा, देवेंद्र दीपक ने केवल शब्दों से ही नहीं, बल्कि अपने आचरण से देश और समाज को जोड़ने वाला विमर्श खड़ा किया. उनकी कविताओं में देश, धर्म, और संस्कृत का विचार होता है. उन्होंने अपने नाम के अनुरूप दीपक की तरह जलकर समाज का मार्गदर्शन किया. इस अवसर दिल्ल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अवनिजेश अवस्थी ने कहा, देवेंद्र दीपक ने आपातकाल को सहा और उसे शब्दों में पिरोया. उन्होंने नौकरियां छोड़ीं, लेकिन झुके नहीं. वह वक्ता रहे, किसी के प्रवक्ता नहीं.
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आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा 1970 के दशक में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा थोपा गया आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय है, यह लोकतंत्र पर एक धब्बा रहा है. डॉ. देवेंद्र दीपक सच्चे अर्थों मे एक भारतीय साहित्यकार हैं, क्योंकि वह अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहे हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि जिसकी वैचारिकी के सूचकांक विदेशी हों, वो भारतीय साहित्यकार कैसे हो सकता है. पुस्तक के लेखक प्रो. अरुण कुमार भगत पत्रकारिता और साहित्य का जाना माना नाम है. वो वर्तमान में बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं. अपने संबोधन में प्रो. भगत ने कहा कि डॉ. देवेंद्र दीपक की रचानाओं में सूक्तियों की भरमार है जो कि जीवन के मार्गदर्शक का कार्य करती हैं.