Guruwar Upay: हिंदू धर्म के अनुसार, हफ्ते का हर दिन किसी न किसी देवी-देवताओं से जुड़ा होता है. जैसेः- मंगलवार का संबंध भगवान हनुमान से होता है. आज हम बात कर रहे हैं गुरुवार की, जिसका संबंध भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति से माना जाता है. ऐसे में गुरुवार के दिन श्री दशावतार स्तोत्र का पाठ करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. इसी के साथ सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है. ज्योतिष के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति हर गुरुवार को  दशावतार स्त्रोत का पाठ करता है तो उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. तो चलिए जानते हैं दशावतार स्त्रोत की पाठ की विधि और लाभ के बारे में…


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दशावतार स्त्रोत पाठ की विधि


ज्योतिष के अनुसार, इस स्त्रोत का पाठ गुरुवार के दिन शुरू करना चाहिए. अगर आप भी हर परेशानियों और आर्थिक स्थिति से छुटकारा पाना चाहते हैं तो इस गुरुवार से दशावतार स्त्रोत पाठ शुरू कर सकते हैं. इसके लिए गुरुवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना करें. इसके बाद साफ कपड़े पहने. इस दिन आप पीले वस्त्र धारण कर सकते हैं. क्योंकि, पीला वस्त्र शुभ माना जाता है. इसके बाद घर में पूजा की चौकी लगाकर उसपर पीला कपड़ा बिछा दें. इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें. इसके बाद दीप जलाकर पूजा करें. इसके बाद किसी भी पीले रंग की मिठाई से भगवान को भोग लगाएं. इसके बाद दशावतार स्त्रोत का पाठ करना चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें.


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दशावतार स्त्रोत पाठ और मंत्र


प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम ।


विहितवहित्रचरित्रम खेदम ।


केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ॥1॥


क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।


धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।


केशव धृतकच्छपरुप जय जगदीश हरे ॥2॥


वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।


शशिनि कलंकलेव निमग्ना ।


केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ॥3॥


तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृंगम ।


दलितहिरण्यकशिपुतनुभृगंम ।


केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ॥4॥


छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।


पदनखनीरजनितजनपावन ।


केशव धृतवामनरुप जय जगदीश हरे ॥5॥


क्षत्रिययरुधिरमये जगदपगतपापम ।


सनपयसि पयसि शमितभवतापम ।


केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ॥6॥


वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम ।


दशमुखमौलिबलिं रमणीयम ।


केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ॥7॥


वहसि वपुषे विशदे वसनं जलदाभम ।


हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम ।


केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ॥8॥


निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम ।


सदयहृदयदर्शितपशुघातम ।


केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ॥9॥


म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम ।


धूमकेतुमिव किमपि करालम ।


केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ॥10॥


श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम ।


श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम ।


केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ॥11॥