Bhiwani News: भारतीय संस्कृति के प्रमुख त्योहार में से एक होली का पर्व होता है. यह दिन विष्णु भक्त प्रहलाद के जीवित आग से बचने की याद में मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार 24 मार्च को सुबह 9 बजेकर 54 मिनट पर भद्रा काल की शुरुआत होगी, जिसका समापन रात 11 बजकर 53 मिनट पर होगा. 


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होली की कथा (Holi Katha)
जूना अखाड़ा के श्रीमहंत अशोक गिरी ने कहा कि होली का पर्व हमारी संस्कृति का मुख्य पर्व है. यह पर्व आपसी भाईचारे और प्यार-प्रेम का प्रतीक है. हिरण्यकश्यप जो कि प्रहलाद के पिता थे, वे अपने आप को भगवान मानने लगे, जबकि प्रहलाद भगवान विष्णु का भगत था. इससे नाराज होकर हिरण्यकश्यप  ने अपनी बहन होलिाका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान था, उसके गोद में बैठाकर आग के हवाले कर दिया. 


होलिका दहन क्यों मनाया जाता है? (Why is HoliKa Dahan Celebrated)
मगर पुरानी कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अनन्य भगत प्रहलाद आग से जीवित बच गए, जबकि होलिका वरदान प्राप्त होने के बाद भी आग में जल गई. भक्ति के इसी स्वरूप की याद में होलिका का पर्व मनाया जाता है. होलिका से अगले दिन जल व पुष्पों को एक-दूसरों पर गिराकर खुशी मनाई जाती थी, जो आज गुलाल व रंगों को लगाकर मनाई जाती है.


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होली के दिन सूर्य ग्रहण (Chandra Garhan on  holi 25 March) 
जूना अखाड़ा के श्रीमहंत अशोक गिरी ने कहा कि होली के दिन चंद्र ग्रहण है, लेकिन यह चंद्र ग्रहण का भारत में कही भी प्रभाव नजर नहीं आएगा और ना ही ग्रहण भारत में दिखाई देगा.


कैसे करें होली की पूजा (Holika Dahan Puja Vidhi)
मंहत ने कहा कि होलिका की पूजा स्वास्तिक बनाकर नारियल, कच्चा सूत, मूंग व अन्य पूज्य सामग्री का प्रयोग करते हुए नरसिंह गायत्री का मंत्र जाप करते हुए मनानी चाहिए. उन्होंने कहा कि लोक कल्याण और आपसी भाईचारे की कामना के साथ होलिका की पूजा परिवार समेत करनी चाहिए, जिससे कि भारतीय संस्कृति का यह त्योहार अपने वास्तविक उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें.


INPUT: NAVEEN SHARMA