Shaniwar Upay Shanidev Matra: शनिवार के दिन इन मंत्रों का करें उच्चारण, खुश होंगे शनिदेव और खत्म होंगी बाधाएं !
Shanivar upay Shanidev Matra: अगर किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की महादशा है तो वैदिक मंत्र के जाप से उस व्यक्ति को महादशा से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को पापों से भी छुटकारा मिलता है.
Shanivar upay Shanidev Matra: 2 जून को आषाढ़ महीने की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में आज यानी 10 जून का दिन आषाढ़ महीने का पहला शनिवार है. शनिवार का दिन भगवान शनिदेव को समर्पित होता है. शनिदेव कर्मफल दाता हैं और न्याय के देवता हैं. ऐसे में आज शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से ये बेहद खुश होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बनाते हैं. शनिदेव की पूजा अर्चना करने से हर प्रकार की बुरी दृष्टी से मनुष्य को मुक्ती मिलती है. ऐसे में आज हम बताएंगे कुछ मंत्रों के बारे में जिनका उच्चारण कर आप शनिदेव को खुश कर सकते हैं और उनका आशिर्वाद पा सकते हैं.
इन मंत्रों का करें उच्चारण
वैदिक मंत्र
अगर किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की महादशा है तो वैदिक मंत्र के जाप से उस व्यक्ति को महादशा से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को पापों से भी छुटकारा मिलता है. शनिवार के दिन 108 बार इस मंत्र का जाप कर आप भगवान शनिदेव की दया दृष्टि पा सकते हैं.
मंत्र:
ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।
महामंत्र
महामंत्र शनिदेव को प्रसन्न करने का मंत्र है. इस मंत्र के जाप से शनिदेव प्रसन्न होते हैं. भगवाव शनिदेव को खुश करने के लिए रोज स्नान कर रूद्राक्ष की माला के साथ इसका जाप करना चाहिए.
मंत्र:
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
महामृत्युंजय मंत्र
आकाल मृत्यु को टालने वाला महादेव का महामृत्युंजय मंत्र अति लाभदायक होता है. महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण कर आप आकाल मृत्यु से छुटकारा पा सकते हैं. इसके साथ ही इस मंत्र के उच्चारण से आकाल मृत्यु मनुष्य के आसपास नहीं भटकटी है.
मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
गायत्री मंत्र
गायत्री मंत्र के उच्चारण से व्यक्ति को सुख और समृद्धि की प्राप्ती होती है. इसके साथ ही इस मंत्र के उच्चारण से व्यक्ति को मानसिक शांति और संतोष की प्राप्ती होती है.
मंत्र:
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः।
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