होली को लेकर कैबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा बोले- लोगों में नहीं रहा पहले जैसा अपनापन
होली को लेकर कैबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा ने जी मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि आज की होली और पुरानी होली में जमीन आसमान का अंतर है. बदलते वक्त के साथ लोगों के होली खेलने का तरीका भी बदलता जा रहा है.
अमित चौधरी/बल्लभगढ़: होली को लेकर कैबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा ने जी मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि आज की होली और पुरानी होली में जमीन आसमान का अंतर है. बदलते वक्त के साथ लोगों के होली खेलने का तरीका भी बदलता जा रहा है. पुराने समय में होली खेलने के पश्चात शाम को सभी ग्रामीण टोली बनाकर बारी-बारी से सबके घर जाते थे और ढोल बजा-बजाकर फगुआ और चैतावर गाते थे, जो कि बड़ा मनमोहक लगता था.
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वहीं मंत्री मूलचंद शर्मा ने आगे कहा कि होली के कई हफ्ते पहले घर के अंदर बन रही गुजिया, नमकीन, पकवान की खुशबू बता देती थी कि कोई त्यौहार आने वाला है. होली के रंगों में अलग ही अपनेपन की महक थी. लोग दिल से मिलते थे. लोग खुले मन से गले लग गुलाल लगाकर एक दूसरे को बधाई देते थे. वहीं न अब वह खुले दिल रहे न वह रंगों की खुशी, लेकिन अब समय बदल गया है. लोग अब होली वाले दिन गली, मोहल्ले, चौराहों की जगह घर, बैंक्वेट हाल, मंदिर के अंदर तक सिमट कर रह गए हैं. अब होली देसी रंगों, पानी, मिट्टी, कीचड़ की जगह फूलों और केमिकल युक्त रंगों से खेली जाती है वो भी केवल माथे पर टीका लगाकर. पहले गांव हो या शहर की सड़के होली के दिन रंगों से डूब जाती थी. चेहरे गहरे काले, नीले, हरे रंगों से चमकते नजर आते थे, लेकिन अब वह नजारे सड़कों से गायब हो चुके हैं. अब लोग मोबाइल पर ही शुभकामनाएं भेज कर होली का त्यौहार मना लेते हैं.
उन्होंने पहले और अब की होली में जमीन आसमान का अंतर है. पहले मोहब्बत और प्यार के साथ होली खेलते थे. पहले होली की हफ्तों पहले तैयारी होने लगती थी. गली में पानी से कीचड़ से होली खेलते थे. तब भी प्यार था. सारा गांव परिवार इकट्ठा होकर गलियों में होली खेलता था, लेकिन अब युग बदल गया है. अब केमिकल से होली खेली जाती है. अब मोबाइल पर ही बधाइयां देते हैं. अब कहीं जाने या किसी से मिलने की जरूरत नहीं होती. आज की होली और पुरानी होली में जमीन आसमान का अंतर है.
वहीं व्यापारी मनोज अग्रवाल पुरानी समय में होली के त्यौहार को याद करते हुए बताते हैं कि पहले किस समय हमारे त्योहार गली मोहल्ले चौपालों पर एक हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाते थे. त्योहार पर रिश्तेदार आते थे पकवानों का इंतजाम होता था. धीरे-धीरे अब त्योहार घर तक सीमित होते जा रहे हैं. पहले गली मोहल्ले पड़ोस में हर किसी के घर जाते थे. अब समय के साथ रंग और पानी की जगह फूलों का इस्तेमाल होने लगा है. अब लोग मंदिर बैंकट हॉल में ही होली मना लेते हैं.