नई दिल्ली: दिल्ली सरकार और एलजी विनय कुमार सक्सेना के बीच अधिकारों की लड़ाई एक बार उछल कर आ गई है. एलजी ने विधानसभा स्पीकर को संदेश दिया है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार नए नियमों के हिसाब से काम नहीं कर रही है. एलजी ने कहा कि नए कानून के हिसाब से एलजी सर्वोपरि हैं. उन्हीं के आदेश पर सरकार को काम करना चाहिए जो कि नहीं हो रहा है. साथ ही साथ एसेंबली और कमेंटियों को दखलअंदाजी करना बंद करने को भी उन्होंने संदेश दिया है. एलजी ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम 1991 पारित हुआ. बाद में इसमें संसोधन हुआ और GNCTD (संशोधन) अधिनियम 2021 (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) अधिनियम 2021) बना जिसमें सारी शक्तियां एलजी के पास चली गईं. इसके तहत दिल्ली में किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो, उनका सर्वोपरि अधिकार एलजी के पास होगा. यही एक्ट केजरीवाल और एलजी के बीच अधिकारों की खाई बना है.


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दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1991 (Government of National Capital Territory of Delhi Act 1991)
इसे वर्ष 1991 में विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मंत्रिपरिषद से संबंधित संविधान के प्रावधानों के पूरक के रूप में लागू किया गया था. इसके अनुसार निर्वाचित सरकार कार्यान्वयन से पहले एलजी को किसी भी कार्यकारी निर्णय की फाइलें भेजने के लिए बाध्य नहीं थी.  


साल 1992 में इस नियम एक्ट में 69वां संसोधन किया गया, जिसमें 2 नए एक्ट 239AA और 239AB जोड़े गए. 


239AA- इसके अनुसार केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली' बनाया गया और इसके प्रशासक को उपराज्यपाल (Lt. Governor) नाम दिया गया. दिल्ली के लिये विधानसभा की व्यवस्था की गई जो पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था के अतिरिक्त राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है.


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239AB- इसके अनुसार राष्ट्रपति अनुच्छेद 239AA के किसी भी प्रावधान या इसके अनुसरण में बनाए गए किसी भी कानून के किसी भी प्रावधान के संचालन को निलंबित कर सकता है. यह प्रावधान अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) जैसा है. 


दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने के लिए 2021 में Government of National Capital Territory of Delhi (Amendment) Act, 2021 लागू कर दिया गया. 


इसके प्रमुख प्रावधान-
यह अधिनियम वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 21, 24, 33 और 44 में संशोधन करता है, जिसके अनुसार दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 'सरकार' का आशय उप-राज्यपाल से होगा. यह अधिनियम उन मामलों में भी उपराज्यपाल को विवेकाधीन अधिकार देता है, जिन  मामलों में दिल्ली की विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है. इसके अनुसार  दिल्ली मंत्रिमंडल द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को लागू करने से पूर्व उपराज्यपाल की राय लेना जरूरी है. 


इस संशोधन की आलोचना के कारण-
इस नए संशोधन से दिल्ली सरकार को कोई निर्णय लेने से पहले राज्यपाल से सहमति लेना होगा, जिससे दिल्ली सरकार की कारयक्षमता प्रभावित होगी. इस नियम के अनुसार LG एक निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी राय देने के लिये बाध्य नहीं है. लोगों का तर्क है कि इससे सरकार के प्रशासनिक कार्य में बाध के लिए LG अपनी शक्तियों का दुरुपयोग भी कर सकता है.