Delhi News: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने 'रसोइया' के पद पर काम करने वाले उन कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग के तहत संशोधित वेतनमान देने के हाईकोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए, दिल्ली सरकार के सामाजिक कल्याण विभाग को निर्देश दिया है. ये कर्मचारी साल 2014 से इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इस मामले में फरवरी 2016 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (सीएटी) द्वारा रसोइयों के पक्ष में फैसला सुनाया गया था. जिसके बाद दिल्ली सरकार सीएटी के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट चली गई थी. हाईकोर्ट द्वारा पिछले साल जनवरी में रसोइयों के पक्ष में फैसला सुनाए जाने तक यह मामला मुकदमेबाजी में फंसा रहा. हालांकि दिल्ली सरकार ने तब भी दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को लागू नहीं किया, जिससे रसोइयों को अवमानना याचिका दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके बाद दिल्ली सरकार ने आखिरकार, इस फाइल को जनवरी 2024 में उपराज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा.


इस फाइल को मंजूरी देते हुए एलजी ने कहा कि विभाग को अपने कर्मचारियों की जरूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए था और मुकदमों पर अनावश्यक देरी और खर्च से बचना चाहिए था. उन्होंने विभाग को मुकदमेबाजी की लागत का आकलन करने और मामले में देरी करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों की पहचान कर उन पर 15 दिन के अंदर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.


ये भी पढ़ें: Jind News: 30 जनवरी को चंडीगढ़ में बनेगा आप का मेयर- अनुराग ढांडा का दावा


सक्सेना ने रसोइया पद पर कार्यरत कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान देने के इतने छोटे मुद्दे से निपटने में समाज कल्याण विभाग के ढुलमुल रवैये पर हैरानी जताई. गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने विभाग को 07.05.2014 से प्रभावी, 7वें केंद्रीय वेतन आयोग वेतन मैट्रिक्स का ई लेवल 2 (19900-63200 रुपये) संशोधित वेतनमान देने के लिए, निर्देशित किया गया था.
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि रसोइया पद पर कार्यरत कर्मचारियों के संबंध में आदेश प्रभावकारी होगा.


उपराज्यपाल ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि इस संबंध में 5वें वेतन आयोग की स्पष्ट सिफारिशों के बावजूद मामले को लंबी अवधि तक लंबित रखा गया. हाईकोर्ट ने सीएटी के 19.02.2016 के फैसले के खिलाफ, विभाग की अपील को खारिज करते हुए 16.01.2023 को फैसला सुनाया था. 16.01.2023 के फैसले का अनुपालन न करने पर कर्मचारियों ने विभाग के खिलाफ हाई कोर्ट में अवमानना याचिका भी दायर की थी.


उपराज्यपाल ने अफसोस जताते हुए कहा कि विभाग के इन असहाय रसोइयों के पास विभाग के उदासीन रवैये के कारण अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था. एलजी ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यह निराशाजनक है कि जिस मामले पर प्रशासनिक रूप से निर्णय लिया जा सकता था उसे अदालतों में घसीटा गया. उन्होंने कहा कि ऐसे सभी मामलों का समयबद्ध तरीके से प्रभावी समाधान किया जा सकता है. इसके अलावा एलजी ने कहा कि सेवा और श्रम विभाग ने 2015 में ही राय दी थी कि दिल्ली सरकार के विभिन्न आदेशों/दिशानिर्देशों के अनुसार "रसोइया" के पद को कुशल श्रमिक माना जाता है.


उपराज्यपाल ने कहा कि अगर विभाग अपने कर्मचारियों की जरूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील होता, तो मामले को हाई कोर्ट में ले जाने में होने वाली अनावश्यक देरी और खर्च से बचा जा सकता था." ट्रिब्यूनल के निर्देशानुसार सी (पूर्व ग्रुप डी) पदों पर कर्मचारियों के कल्याण के लिए उचित लाभ देने का कोई बहुत बड़ा वित्तीय बोझ नहीं दिखता.