नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में किसानों का रुझान मशरूम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है. मशरूम की खेती बेहतर आमदनी का जरिया बन सकती है. बस कुछ बातों का ध्यान रखना होता है, बाजार में मशरूम का अच्छा दाम मिल जाता है अलग-अलग राज्यों में किसान मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, कम जगह और कम समय के साथ ही इसकी खेती में लागत भी बहुत कम लगती है, जबकि मुनाफा लागत से कई गुना ज्यादा मिल होता है. मशरूम की खेती के लिए किसान किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं. 


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किसान कृष्ण गोपाल ने सबसे पहले मशरूम के बारे में जाना और मुरथल में स्तिथ मशरूम केंद्र से ट्रेनिंग ली और उसके बाद उन्होंने दो मशरूम के झोपड़ी नुमा सेड से मशरूम फार्मिंग की शुरुआत की. आज उनके पास तकरीबन 6 के करीब झोपड़ी नुमा सेड है, जिससे वह काफी अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं, अगर एक सेड की बात की जाए तो उससे भी तकरीबन दो लाख तक का मशरूम निकाल रहे हैं. किसान कृष्ण गोपाल ने बताया कि उन्होंने बीटेक में डिप्लोमा और अन्य कोर्स भी किए हुए हैं. उसी के साथ गवर्नमेंट जॉब के लिए भी अप्लाई किया था, जहां पर उनका नंबर भी आ गया था.  मगर किसी कारण वह जॉब को ज्वाइन नहीं कर पाए. वहीं से उनमे एक जनून जाग की सरकारी नौकरी से जायदा तो मैं खेती में कुछ नया करके काम सकता हूं.


किसान कृष्ण गोपाल ने बताया कि उनको बिजनेस लाइन में जाने का शौक था. इसको लेकर अब वे काफी अच्छे प्रगतिशील किसान बन चुके हैं और काफी युवा उनके पास काम भी कर रहे हैं. वहीं कृष्ण गोपाल ने बताया कि उनको खेती करते हुए तकरीबन 7 से 8 साल के करीब हो चुके हैं और मशरूम का काम काफी अच्छा चल रहा है. अगर मार्केटिंग की बात की जाए तो कृष्ण गोपाल मशरूम की मार्केटिंग करनाल में ही करते हैं. जहां पर उनको मशरूम का रेट 100 रुपये से लेकर 120 रुपये तक मिल जाता है. एक पैकेट में 200 ग्राम के करीब मशरूम होता है, जिसको वह मार्केट में बेचते हैं.


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मशरुम से बनने वाले खाद्य पदार्थ 
बता दें कि देश में बेहतरीन पौष्टिक खाद्य के रूप में मशरूम का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा मशरूम के पापड़, जिम का सप्लीमेन्ट्री पाउडर, अचार, बिस्किट, टोस्ट, कूकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली आदि बनाए जाते हैं . भारत में उगाई जाने वाली मशरूम की किस्में विश्व में खाने योग्य मशरुम की लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां हीं खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं. भारतीय वातावरण में मुख्य रुप से पांच प्रकार के खाद्य मशरुमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है, जिनमे मुख्यता सफेद बटन मशरुम, ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम, दूधिया मशरुम, पैडीस्ट्रा मशरुम और शिटाके मशरुम हैं. 


सफेद बटन मशरुम की खेती के लिए स्थाई व अस्थाई दोनों ही प्रकार के सेड का प्रयोग किया जा सकता है. जिन किसानों के पास धन की कमी है, वह बांस व धान की पुआल से बने अस्थाई सेड/झोपड़ी का प्रयोग कर सकते हैं. बांस व धान की पराली से 30Χ22Χ12 (लम्बाई Χचौड़ाई Χऊंचाई) फीट आकार के सेड/झोपड़ी बनाने का खर्च लगभग 30 हजार रुपए आता है, जिसमें मशरूम उगाने के लिए 4 Χ25 फीट आकार के 12 से 16 स्लैब तैयार की जा सकती हैं. 


मषरुम की टेंपरेरी और परमानेंट खेती करने वालों को सरकार दे रही इतने लाख
करनाल बागवानी विभाग के dr मदनलाल ने बताया की दो प्रकार के मशरूम की खेती हो रही है और हरियाणा सरकार उस पर अनुदान दे रही है. जो किसान टेंपरेरी बांस के शेड बनाकर मशरूम की खेती करते हैं, उनको 25500 और जो परमानेंट खेती करते हैं उनको हरियाणा सरकार 8 लाख दे रही है.


करनाल महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ सतेंदर यादव ने बताया कि किसान ट्रेनिंग लेकर मशरूम की खेती कर रहे हैं और हरियाणा सरकार भी उस पर अनुदान दे रही है. इसी के साथ कुछ किसान इसको इंडस्ट्री के तौर पर भी काम कर रहे हैं. मशरूम हमारे लिए इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा-अच्छा खाद्य पदार्थ है