Identification of Real and Fake Medicine: सरकार ने दवाओं में इस्तेमाल होने वाले एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स ( Active  Pharmaceutical Ingredients- API's) पर क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य कर दिया है. इससे असली और नकली दवाओं की पहचान आसान से की जा सकेगी. साथ ही इससे दवा बनाने वाली कंपनी को ट्रैक करना आसान हो जाएगा. ये जानकारी भी आसानी से जुटाई जा सकेगी कि क्या फॉर्मूला से कोई छेड़छाड़ तो नहीं हुई है, कच्चे माल का ऑरीजन कहां है और प्रॉडक्ट कहां जा रहा है.


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नकली, खराब या गुणवत्ता से नीचे के API से बनी दवा से मरीजों को फायदा नहीं होता. DTAB यानी ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने जून 2019 में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. कई रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में बनी 20% दवाएं नकली होती हैं. एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 3% दवाओं की क्वालिटी घटिया होती है. बता दें कि 300 दवाओं के लिए ये जरूरी जरूरी है. इसी को देखते हुए सरकार ने Drug and Cosmetics Act, 1940 में संशोधन किया है. 


साल 2011 से ही सरकार इस सिस्टम को लागू करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन फार्मा कंपनियों के बार-बार मना करने की वजह से इस पर कोई ठोस फैसला नहीं लिया जा सका था. फार्मा कंपनियां इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित थी कि वो अलग-अलग सरकारी विभाग हैं तो अलग-अलग दिशा निर्देश जारी करेंगे.


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फार्मा कंपनियों की मांग थी कि देशभर में एक समान क्यूआर कोड लागू किया जाए, जिसके बाद साल 2019 में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (Central Drug Standard Control Organisation) ने ये ड्राफ्ट तैयार किया. जिसके तहत एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रिडेएंट्स (API) के लिए क्यूआर कोड जरूरी करना सुझाया गया था.


QR में होगी ये जानकारी 
- Unique Identification कोड.
- दवा का नाम और Generic नाम.
- ब्रांड और निर्माता की जानकारी 
- बैच नंबर
- उत्पादन और Expiry की तारीख
- लाइसेन्स


क्या होता है API?
API यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स है, जिसमें इंटरमीडिएट्स, टेबलेट्स, कैप्सूल्स और सिरप बनाने के मुख्य रॉ मैटेरियल्स होते हैं. किसी भी दवाई के बनने में एपीआई की मुख्य भूमिका होती है और इसके लिए भारतीय कंपनियां काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं.