Health News: पंचकूला में ईएनटी (ENT) स्पेशलिस्ट डॉक्टर सलिल अग्रवाल का कहना है कि पूरे विश्व में इस समय करीब 100 करोड़ के करीब लोग अनसेफ लिस्टिंग डिवाइस इस्तेमाल कर रहे हैं और उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. वर्तमान समय में नवजात बच्चों में सुनने की समस्या का आंकड़ा 2.4 प्रतिशत तक पहुंच चुका है और यह आंकड़ा आने वाले समय में और बढ़ सकता है.


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पंचकूला के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर सलिल अग्रवाल ने खास बातचीत में बताया कि डब्ल्यूएचओ (WHO) ने भारत में एक सर्वे किया था कि भारत की जनसंख्या में से 6.5% लोगों को सुनने की क्षमता की समस्या है और यह भी पाया गया कि जीरो से 14 साल तक के 2.5% ऐसे बच्चे हैं जो सही ढंग से सुन नहीं पा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण मां को पूरा न्यूट्रिशन (Nutrition) न मिल पाना और गर्भवती महिला को इंफेक्शन होना पाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में 100% न सुन पाने के मामले भी सामने आए हैं.


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उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे बच्चे जो समय से पहले पैदा होते हैं उनमें भी सुनने की समस्या सामने आ रही है. उन्होंने बताया कि 2008 में भारत सरकार ने नेशनल डेफनेश कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था, जिसके तहत यूनिवर्सल हियरिंग स्क्रीनिंग (Universal Hearing Screening) के तहत बच्चे के जन्म के 1 महीने के अंदर टेस्ट करना जरूरी है, ताकि उसकी सुनने की क्षमता का पता लगाया जा सके.  उन्होंने कहा कि अगर कोई बच्चा जन्म से सही तरीके से सुन नहीं पाएगा तो उसको बोलने में भी समस्या होगी.


डॉक्टर ने आगे कहा कि जैसे-जैसे गर्भवती माताओं में इंफेक्शन बढ़ रहा है. इसी प्रकार से यह मामले बढ़ रहे हैं. उन्होंने बताया कि 2018 में हुए एक सर्वे में यह आंकड़ा 2.5% तक आया और एक हजार में से 4 बच्चों को पूरी तरह से सुनने की क्षमता नहीं होती.  उन्होंने बताया कि इसके अलावा नवजात बच्चों के साथ-साथ आज के समय में मोबाइल का इस्तेमाल हेडफोन कानों में लगाना और एयरपोड लगाए रखना भी सुनने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है.


उन्होंने कहा कि आने वाले समय में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है. उन्होंने बताया कि करीब पूरे विश्व में 100 करोड़ ऐसे लोग हैं जो अनसेफ लिस्टिंग डिवाइस इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हर व्यक्ति की सुनने की क्षमता खत्म होती जा रही है.


(इनपुटः दिव्या राणा)