नई दिल्ली: नए परिसीमन के बाद दिल्ली नगर निगम चुनाव की तिथि जैसे जैसे नजदीक आ रही है, वैसे इससे संबंधित तमाम तथ्यों को जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही है. ऐसे में दिल्ली नगर निगम के ऐतिहासिक पहलू को विस्तार से जानना बेहद जरूरी हो गया है. एमसीडी वजूद में कैसे आया, पहले क्या थे मुद्दे, वो पहली बैठक, राजस्व संकट...जैसे तमाम सवालों का जवाब आज हम जानेंगे.


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दिल्ली में सिविक एडमिनिस्ट्रेशन संबंधित जानकारी साल 1862 के बाद ही मिलती है, जब दिल्ली म्युनिसिपल कमिशन अस्तित्व में आया.  वैसे जानकारी के मुताबिक, सिविक बॉडी का गठन यानी साल 1862 से करीब 200 साल पहले शाहजहां ने नागरिक सेवा से संबंधित बुनियादी ढांचा की शुरुआत कर दी थी.


7 अप्रैल 1958 को संसद के एक अधिनियम के तहत एमसीडी अस्तित्व में आया. उसके बाद नगर निकाय हमेशा अपने संविधान और नागरिकों की जरूरतों के लिए कार्य करता आ रहा है. साल साल 1993 के संशोधन में निगम की संरचना, कार्यों, शासन एवं प्रशासन में मूलभूत परिवर्तन किया गया.  निगम की बिल्डिंग के तौर पर पुरानी दिल्ली में टाउन हॉल 1866 में 1.86 लाख की लागत से बनकर तैयार हुआ जिसे  इंस्टिट्यूट बिल्डिंग कहा जाता था. 23 अप्रैल 1863 में म्युनिसिपल कमिशन की पहली बैठक हुई थी. उस वक्त दिल्ली शहर 2 वर्ग मील क्षेत्र तक ही सीमित था. उस दौरान आबादी करीब 1.21 लाख बताई जाती है. 



प्रारंभिक दौर में जरूरत और उसकी आपूर्ति
साल 1863 के दौरान ही दिल्ली में स्वच्छता औऱ सफाई को लेकर एक व्यवस्था स्थापित किया गया. सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करने के साथ साथ सदर बाजार में एक यूनानी औषधालय खोला गया. इसी दौरान दिल्ली में पहली बार जन्म औऱ मृत्यु का पंजीकरण शुरू हुआ था.


उस दौरान भी नगर निकाय वीत्तीय संकट का सामना कर रहा था. सरकार से भी मदद मांगी गई थी. कुल किये गए प्रावधान यानी 94,512 रुपये में से  50 प्रतिशत हिस्सा पुलिस स्थापना पर खर्च किया गया. उन दिनों चुंगी आय का मुख्य जरिया होता था. इससे 82,000 रुपये आ जाता था. इसका छठा हिस्सा भी सैन्य खर्च के लिए दिया जाता था.


साल 1863 से 1874 के दौरान इंडस्ट्रियल और कॉमर्शियल विस्तार बड़े पैमाने पर हुए. जन उपयोगिता से संबंधित आवश्यक जरूरतों के लिए कर्ज की आवाश्यकता पड़ी थी. साल 1866 में क्लॉक टॉवर औऱ टाउन हॉल का निर्माण किया गया. वर्तमान बिल्डिंग का पुनर्निमाण साल 1947 में किया गया था. साल 1867 में फायर फाइटिंग सिस्टम को इंट्रोडयुस किया गया. करीब 9 सालों बाद इंग्लैंड से दूसरा इंजन लाया गया.
उस दौर में कुंए का पानी खपत के उपयुक्त नहीं पाया गया था, इसलिए पीने योग्य पानी की आपूर्ती 1871-72 में वॉटर कार्ट के माध्यम से की गई. वाटर वर्क्स स्थापित करने का प्रस्ताव साल 1869 में ही आ गया था.


साल 1873 में दिल्ली म्युनिसिपल कमिटी के मेंबर बैठक करते हुए, तस्वीर साभार- http://mcdonline.gov.in
पहली स्ट्रीट-लाइटिंग साल 1870 में लालटेन और लैम्प-पोस्ट के साथ शुरू की गई, बिजली बुहत बाद में आई. वहीं साल 1857 की शुरुआत में मौजूदा स्कूलों को अपने कब्जे में लेकर और नए स्कूल खोलकर प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत की गई थी. उद्यानों और बागवानी पर प्रशासन का ध्यान शुरू से ही रहा है. साल 1875 में 1600 पौधों का मास प्लांटेशन किया गया. उसी दौरान इलाका सिस्टम की शुरूआत कर तीन सद्सीय समिति को देखबाल के लिए सौंपा गया था.


दिल्ली म्युनिसिपल कमिशन को बदल कर दिल्ली म्युनिसिपल कमिटी कर दिया गया
बाद में दिल्ली म्युनिसिपल कमिशन का नाम बदलकर दिल्ली म्युनिसिपल कमिटी कर दिया गया, जिसने लगभग आधी सदी तक सिविक बॉडी के रूप में कार्य किया औऱ समस्त क्षेत्र को कवर किया. इस म्युनिसपलिटी में कुल 21 नॉमिनेटेड मेंबर शामिल थे, जिनमें छह सरकारी अधिकारी औऱ शेष नॉन-ऑफिशियल, तीन युरोपीय, छह हिंदु औऱ छह मुस्लिम शामिल थे.


जब पहली बार लोकतांत्रिक व्यवस्था को शामिल किया गया
साल 1884 में पहली बार व्यस्क मताधिकार के जरिये सदस्यों को लोकतांत्रिक मानदंड को स्वीकर किया गया औऱ अगले वर्ष चुनाव हुए. गठित कमिटी में 12 वार्डों का प्रतिनिधित्व करने वालों में 4 सरकारी अधिकारी, 5 मनोनित औऱ 12 निव्राचित सदस्य शामिल थे. दिल्ली के डिप्युटी कमिश्नर कमिटी के पदेन अध्यक्ष थे. एक्ट में वैतनिक अधिकारियों के अलावा दो तिहाई सदस्यों का भी प्रावधान था.  



आवश्यक धन जुटाने हेतु हाउस टैक्स का प्रावधान
1 जनवरी 1902 को पहली बार जल निकासी समेत अन्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आवश्यक धन जुटाने के लिए हाउस टैक्स पेश किया गया. 45,558 प्रॉपर्टी से कुल 83,327 रुपये की आमदनी हुई. आज एमसीडी 7.5 लाख यूनिट से 900 करोड़ रुपये जुटाती है. साल 1902 से 1903 के दौरान कुल आय 6.24 लाख रुपये था जबकि खर्च 9.25 लाख रुपये थी. आय का मुख्य स्त्रोत चुंगी, एनिमल्स व्हील टैक्स, टोल, मवेशी तालाब और हैकनी कैरिज थे.


जब समिति का संविधान को बदला गया
साल 1912 में दिल्ली प्रांत के निर्माण के दौरान कमिटी का कॉन्स्टिटयुशन फिर से बदल दिया गया और पदेन और निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटा क्रमशः 3 और 11 कर दिया गया. वहीं मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 11 कर दिया गया.
16 जनवरी 1913 को भारत की अस्थायी राजधानी की स्थापना के मद्देनजर सिविल लाइंस, सिविल स्टेशन नॉटिफाईड एरिया कमिटी अस्तित्व में आई.
साल 1921-22 में, संविधान को फिर से संशोधित किया गया और शहर को 12 वार्डों में विभाजित किया गया, जिसमें 2 सदस्य एक हिंदू और एक मुस्लिम थे. इसी तरह, इंपीरियल दिल्ली म्यूनिसिपल कमेटी या रायसीना म्यूनिसिपल कमेटी का नाम बदलकर साल 1926-27 में नई दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी कर दिया गया.
साल 1946 में लोगों को प्रेसिडेंट चुनने का अधिकार दिया गया. शेख हबीबुर रहमान को दिल्ली म्युनिसिपल कमिटी का पहला नॉन-ऑफिशियल प्रेसिडेंट के रूप में चुना गया.


एनडीएमसी की शुरुआत
12 दिसंबर 1911 को यह घोषणा की गई कि दिल्ली वायसराय का निवास स्थान और नया प्रशासनिक केंद्र होगा. नई राजधानी के लिए स्थल का चयन करने के लिए एक समिति का गठन किया गया था. कई स्थलों की जांच की गई और अंत में रायसीना हिल को भारत की नई राजधानी के निर्माण के लिए चुना गया. एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर और अन्य लोगों के नेतृत्व में अंग्रेजी नगर नियोजकों ने वर्तमान नई दिल्ली को वाइसराय (अब राष्ट्रपति भवन), सर्कुलर पिलर पैलेस, जिसे संसद सचिवालय भवन, हरित स्थान, पार्क और उद्यान के रूप में जाना जाता है, के महल के प्रभुत्व वाले रास्ते के साथ बनाया. नई राजधानी का निर्माण बड़े परिमाण का कार्य था. यह आवश्यक समझा गया कि निर्माण और प्रबंधन का नियंत्रण स्थानीय प्राधिकरण पर छोड़ने के बजाय, एक केंद्रीय प्राधिकरण को यह काम सौंपा जा सकता है. 25 मार्च, 1913 को शाही दिल्ली समिति का गठन हुआ.


यह नई दिल्ली नगर समिति की शुरुआत थी. फरवरी 1916 में मुख्य आयुक्त, दिल्ली ने रायसीना नगर समिति बनाई. इसे 7 अप्रैल 1925 को पंजाब म्यूनिसिपल एक्ट के तहत द्वितीय श्रेणी की नगर पालिका में अपग्रेड किया गया था. इस समिति में स्थानीय सरकार द्वारा या तो नाम या कार्यालय द्वारा नियुक्त 10 सदस्य शामिल थे. 9 सितंबर 1925 को, इस समिति को भवनों पर कर लगाने की अनुमति दी गई और इस तरह राजस्व का पहला स्रोत बनाया गया. मुख्य आयुक्त ने कई प्रशासनिक कार्यों को भी नागरिक निकाय में स्थानांतरित कर दिया, जिनकी आय और व्यय में काफी वृद्धि हुई. 22 फरवरी 1927 को समिति ने इस आशय का एक प्रस्ताव पारित किया कि "नई दिल्ली" नाम अपनाया जाए और इस समिति को "नई दिल्ली नगर समिति" के रूप में नामित किया गया, जिसे 16 मार्च, 1927 को मुख्य आयुक्त द्वारा अनुमोदित किया गया था. 15 फरवरी, 1931 को नई राजधानी को आधिकारिक तौर पर खोला गया. वर्ष 1932 में, नई दिल्ली नगरपालिका समिति प्रथम श्रेणी की नगरपालिका बन गई. इसे उन सभी सेवाओं और गतिविधियों की देखभाल करने के लिए पर्यवेक्षी शक्तियां सौंपी गई थीं जिन्हें इसे करने के लिए कहा गया था.


आजादी के बाद पहली बार मताधिकार के आधार पर कमिटी का पुनर्गठन
बाद में दिल्ली शहर के विस्तार के साथ विस्थापित लोगों के लिए नई कॉलोनियों को सिविक-एडमिनिस्ट्रेशन देने हेतु कई लोकल बॉडी जैसे वेस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कमिटी औऱ साउथ म्युनिसिपल कमिटी को अस्तित्व में लाया गया. आजादी के बाद यानी नवंबर, 1951 में वयस्क मताधिकार के आधार पर कमिटी का पुनर्गठन किया गया. सदस्यों की कुल संख्या बढ़ाकर 63 कर दी गई, जिनमें से कुल 50 निर्वाचित हुए.


कब किस नागरिक निकाय को बनाया गया
साल 1883 में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड दिल्ली बना, तो साल 1910 में नॉटिफाईड एरिया कमिटी महरौली बना. वहीं साल 1910 में नॉटिफाईड एरिया कमिटी नजफगढ़, साल 1913 में नॉटिफाईड एरिया कमिटी सिविल लाइंस, साल 1916 में म्युनिसिपल कमिटी दिल्ली-शहादरा, साल 1919 में नॉटिफाईड एरिया कमिटी नरेला, साल 1924 में नॉटिफाईड एरिया कमिटी रेड फोर्ट बना. साल 1925 में एन.डी.एम.सी औऱ साल 1951 में म्युनिसिपल कमिटी दिल्ली, साल 1954 में म्युनिसिपल कमिटी साउथ दिल्ली और साल 1955 में म्युनिसिपल कमिटी वेस्ट दिल्ली बना.
पानी, बिजली और परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने हेतु तीन वैधानिक निकाय अर्थात दिल्ली ज्वाइंट वाटर और सीवेज बोर्ड, दिल्ली राज्य बिजली बोर्ड और दिल्ली सड़क परिवहन प्राधिकरण, क्रमशः 1926, 1951 और 1952 में भारत सरकार के नियंत्रण में स्थापित किए गए.


जब म्युनिसिपल कॉरपोरेशन अस्तित्व में आया
28 दिसंबर 1957 को म्युनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट को संसद द्वारा अधिनियमित किया गया. गृह मंत्रालय द्वारा जारी 15 फरवरी, 1958 की अधिसूचना के तहत भारत सरकार ने सभी स्थानीय निकायों के प्रबंधन को संभालने के लिए स्थानीय अधिकारियों के एक आयुक्त की नियुक्ति की.


मार्च 1958 में पहला आम म्युनिसिपल इलेक्शन हुआ और नगर निगम 7 अप्रैल 1958 को 11 स्थानीय निकायों में  9  दिल्ली जिला बोर्ड के एकीकरण के परिणामस्वरूप वजुद में आया. साल 1958 में निगम की स्थापना के समय कुल 80 पार्षद थे. 12 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थे. शुरुआत में पानी, बिजली और परिवहन प्रदान करने वाले सभी तीन वैधानिक निकायों को नगर उपक्रमों में परिवर्तित कर दिया गया और निगम के समग्र नियंत्रण में रखा गया.


दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 में 272 और अधिकतम 300 के रूप में वार्डों की न्यूनतम संख्या का प्रावधान करने के लिए एक संशोधन किया गया. समिति ने 272 वार्डों के लिए वार्डों के परिसीमन के लिए मसौदा आदेश तैयार किया यानी प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का विभाजन किया गया था दो वार्डों में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में चार वार्ड और जनता और राजनीतिक दलों आदि से सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए इसे 17 जनवरी, 2007 को अधिसूचित किया गया था.


ट्रांसपोर्ट को निगम से अलग किया गया
दिल्ली में कभी जॉइंट वॉटर एंड सीवरेज बोर्ड, दिल्ली स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और दिल्ली रोड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी यह तीनों निगम में आते थे. संसद के अधिनियम के जरिए नवंबर 1971 में दिल्ली में परिवहन संस्थान को दिल्ली नगर निगम से अलग करके दिल्ली सड़क परिवहन निगम बना दिया गया.


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निगम को पहली बार भंग किया गया
दिल्ली की पहली महापौर अरुणा आसफ अली चुनी गई थी. पहले निगम 24 मार्च 1975 को भंग कर दी गई थी. निगम की 5वीं अवधि के लिए चुनाव 12 जून 1977 को हुआ. 11 अप्रैल 1980 को गृह मंत्रालय के आदेश से निगम को 6 माह के लिए भंग कर दिया गया था और निगम अधिनियम के अंतर्गत निगम के सभी अधिकार निगमायुक्त को सौंप दिए जाने के बाद छह-छह महीने के लिए 5 बार बढ़ाया गया. 5 फरवरी 1983 को चुनाव होने के बाद निगम की छठी अवधि के लिए 28 फरवरी 1983 को विधिवत गठन किया गया.  निगम का कार्यकाल फरवरी 1987 में खत्म होने के बाद इसे बढ़ाकर 6 जनवरी 1990 को भंग कर किया गया. इसके बाद 31 मार्च 1997 तक निगम में प्रशासक व विशेष अधिकारी नियुक्त रहे जिन्होंने निगम के कार्यों को पूरा किया.


निगम के मूल को बदल दिया गया
संसदीय विधायकी ने 1993 में दिल्ली नगर निगम संशोधित अधिनियम 1993 (अधिनियम 1993 का 67) में विस्तृत संशोधन किया जिसे 17 सितंबर 1993 को पारित किया गया. इसके प्रावधानों को 1 अक्टूबर 1993 से लागू किया गया. इसमें 136 धाराएं थी. इसके द्वारा निगम की संरचना कार्यों नियंत्रण व प्रशासन में मूल परिवर्तन लाए गए. मूल परिवर्तन यह आया कि निगम की संरचना में पार्षदों और एल्डरमैन से होती थी. संशोधित अधिनियम में एल्डरमैन की प्रथा समाप्त कर दी गई. पार्षदों की संख्या बढ़ाकर 134 कर दी गई. 


निगम को तीन टुकड़े हो गए
साल 2011 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम में संशोधन करके दिल्ली नगर निगम को तीन निगमों उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के रूप में बांटा गया. उत्तरी दिल्ली में 6 जोन,  पूर्वी दिल्ली में 2 जोन और दक्षिणी दिल्ली में 4 जोन. इस संशोधन के कारण काफी नीतिगत अधिकार दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आ गए. पहली बार तीनों नगर निगमों का गठन अप्रैल 2012 दूसरी बार तथा साल 2017 में परिसीमन के बाद तीनों नगर निगमों का गठन मई माह में हुआ.  इस साल मई में केंद्र सरकार ने तीनों एमसीडी को मिलाकर एक कर दिया. यानी अब दिल्ली में तीन की जगह केवल एक मेयर होगा. परिसीमन बदलने के साथ-साथ वार्डों की संख्या भी कम कर दी गई. पहले नगर निगम की कुल 272 सीटें थीं, जो अब घटकर 250 रह गईं हैं.