जेएनयू के शिक्षक ले सकेंगे लंबा अवकाश, विश्वविद्यालय में चल रहे ढाबों-दुकानों को भेजा बकाये का नोटिस
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की मूल्यांकन शाखा ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए तीन साल के बाद संकाय सदस्यों को अवकाश लेने की अनुमति दे दी है.
नई दिल्ली : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की मूल्यांकन शाखा ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए तीन साल के बाद संकाय सदस्यों को अवकाश लेने की अनुमति दे दी है. वहीं दूसरी ओर JNU में चलाए जा रहे 10 से अधिक ढाबों व दुकानों को बकाया चुकाने या जगह खाली करने का नोटिस जारी किया गया है.
विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल की बैठक में शिक्षकों के अवकाश को मंजूरी देने का यह निर्णय लिया गया है. यह निर्णय जेएनयू शिक्षक संघ (JNU Teachers Association) की मांग पर आया है. नोटिस में कहा गया है कि बिना मौजूदा सेमेस्टर को बढ़ाए ही ब्रेक जारी किया जाए. स्कूल, विशेष केंद्रों के डीन, अध्यक्षों से कहा गया है कि जहां भी आवश्यक हो, अतिरिक्त कक्षाओं की व्यवस्था कर समय पर शिक्षण पूरा करना सुनिश्चित करें.
वहीं यूनिवर्सिटी के अंदर कई प्रसिद्ध ढाबे व दुकानें बंद हो सकती हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन ढाबा मालिकों को बकायदा नोटिस जारी कर दिया है. ये ढाबे जेएनयू के छात्रों के बीच होने वाली चर्चाओं,बहस व मंथन का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी होते हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन ने कैंटीन और ढाबों मालिकों से 30 जून तक बकाया राशि का भुगतान करने को कहा है. ढाबा मालिकों का कहना है कि विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें 7 से 10 लाख रुपये तक की अदायगी का नोटिस दिया गया है.
तय समय अवधि के दौरान यदि भुगतान नहीं किया गया तो विश्वविद्यालय परिसर से इन ढाबों और कैंटीन को जाना होगा. विश्वविद्यालय प्रशासन के मुताबिक इन दुकानों को उचित निविदा प्रक्रिया के बिना ही आवंटित कर दिया गया था. अब विश्वविद्यालय के ज्वाइंट रजिस्ट्रार एमके पचौरी ने परिसर में चलाई जा रही कैंटीन को नोटिस इश्यू किया है.
10 ढाबों और दुकानों को नोटिस
जेएनयू के ढाबा मालिकों का कहना है कि कुल 10 ढाबों और दुकानों को नोटिस जारी किए गए हैं. विश्वविद्यालय का कहना है कि नोटिस का अनुपालन नहीं होने पर सार्वजनिक परिसर अधिनियम, 1971 के तहत बेदखली की कार्रवाई की जा सकती है.
जेएनयू रेक्टर अजय दुबे के मुताबिक ऐसे लोगों को नोटिस जारी किया गया है कि जिन दुकानदारों ने काफी समय से दुकानों का किराया और यहां तक कि बिजली के ब्लॉक को भी नहीं छुपाया है. विश्वविद्यालय का यह भी कहना है कि इनमें से कई दुकानों को सही प्रक्रिया के तहत आवंटित नहीं किया गया है.
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