Kurukshetra News: अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में देश के कोने-कोने से शिल्प कलाकार अपनी शिल्प कलाए लेकर पहुंचे हैं. वहीं इस बीच गीता महोत्सव में किन्नर समाज के कुछ लोग भी अपनी शिल्प कलाएं लेकर पहुंचे हैं. साथ ही समाज को एक बड़ा संदेश देने का प्रयास किया गया है. 


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अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में शिल्प कलाए लेकर पहुंचे किन्नर कैफ व एलिस ने कहा कि हमें मांगना पसंद नहीं था और हम दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाने थे. हम भी आम लोगों की तरह समाज में शान से जीना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि गीता जयंती कुरुक्षेत्र में पिछले कई साल से लकड़ी से बने समान को तैयार कर ला रहे हैं, जिनका हुनर यहां पहुंच रहे लोगों को काफी पसंद आ रहा है.


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उनकी ओर से तैयार किए गए लकड़ी से बने बाउल, ड्राई फ्रूट, ट्रे और खिलौनों को महोत्सव में पर्यटकों की ओर से खूब पसंद किया जा रहा है. ब्रह्मसरोवर तट पर लकड़ी से बने सामान को देख हर कोई ठहर सा जाता है. किन्नर कैफ ने कहा कि वह पढ़ना लिखना चाहते थे, लेकिन जब वह घर से निकलते थे तो समाज उनको अलग ही नजरों से देखा था, जब वह घर से निकलना भी मुश्किल हो रहा था.


किन्नर कैफ पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहते थे, लेकिन पांचवी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी, पढ़ाई छोड़ने का कारण पूछा तो बताया कि समाज हमें अलग ही नजर से देखता है. इसलिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी वो कहते हैं कि हमें दुनिया से अलग मत समझों हम भी इस समाज का हिस्सा हैं. कैफ ने करीब 20 साल पहले लकड़ी का काम सीखना शुरू किया और आज उन्हें लकड़ी के काम में महारत हासिल है. ये लोग अब तक पंजाब, हिमाचल,उत्तर प्रदेश और हरियाणा में कई जगहों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके है.


उन्होंने बताया कि लोग उन्हें बहुत प्यार देते हैं और जहां पर भी मेला होता है. वहां का प्रशासन भी हमें कभी दुकान देने से मना नहीं करता. उनका पूरा साथ हमें मिलता है. हालांकि अभी तक उन्हें किसी प्रकार का सम्मान किसी सरकार द्वारा नहीं दिया गया है. उन्होंने बताया कि वो पांच लोग हैं, जोकि सभी किन्नर हैं और मिलकर सामान तैयार करते हैं. अभी गीता जयंती पर 3 ही लोग आए हैं.


एलिस भी पिछले पांच साल से कैफ के साथ मिलकर लकड़ी का सामान तैयार कर रहे हैं. उन्हें भी मांगना पसंद नहीं था. इसलिए कैफ के साथ मिलकर रोजगार शुरू किया था. उन्होंने कहां की जो पैसा इस काम से मिलता है जो भी कमा पाते है. उससे हमारा गुजारा अच्छे से चल जाता है, हमें दूसरों से मांगने की जरूरत नहीं पड़ती.


Input: Darshan Kait