Haryana Vidhan Sabha Chunav 2024: हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. राज्य में एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का लक्ष्य लेकर चल रही है, तो वहीं, कांग्रेस पार्टी अंदरूनी मतभेदों को दूर करने और हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में मिली बढ़त को बरकरार रखने की कोशिश कर रही है. हरियाणा में कांग्रेस के लिए गुटबाजी लगातार चुनौती बनी हुई है. पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे प्रमुख नेताओं की पार्टी बैठकों में एक साथ दिखने की तस्वीरों के साथ एकजुटता दिखाने की कोशिश की जा रही है.


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मौजूदा सांसदों को नहीं मिलेगी टिकट
हाल ही में कांग्रेस ने ऐलान किया है कि वो किसी भी मौजूदा सांसद को टिकट नहीं देगी. ऐसे में पार्टी की इस कदम को पार्टी के भीतर एकता का संदेश देने के व्यापक प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है. दरअसल, स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के बाद हरियाणा कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया ने टिकट वितरण का फॉर्मूला बताते हुए साफ कहा है कि विधानसभा चुनाव में किसी भी मौजूदा सांसद को टिकट नहीं दिया जाएगा. हालांकि उन्होंने कहा कि अपवाद के रूप में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से अनुमति लेकर कोई निर्णय लिया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा विधायकों का तभी टिकट कटेगा, जब उनके खिलाफ कोई खास सत्ता विरोधी लहर होगी. साथ ही टिकटों के वितरण पर उन्होंने कहा कि अभी फिलहाल 10-15 सीटों को लेकर चर्चा हुई है, लेकिन अंतिम निर्णय में कुछ दिन और लगेंगे.


क्या कांग्रेस हुड्डा के पक्ष में है?
बाबरिया की घोषणा के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या कांग्रेस पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए रास्ता साफ कर रही है. दरअसल, हरियाणा में कांग्रेस दो धड़ों में बंटी हुई है, एक धड़ा हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में है, जबकि दूसरा धड़ा कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला के नेतृत्व में है. कुमारी सैलजा ने हाल ही में लोकसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद सिरसा से सांसद बनी हैं, जबकि सुरजेवाला मौजूदा राज्यसभा सांसद हैं. ऐसे में अगर कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला चुनाव नहीं लड़ते हैं तो उनकी दावेदारी निश्चित रूप से कमजोर हो सकती है.


कमजोर हो सकती है सीएम पद की दावेदारी
बता दें कि कुमारी सैलजा ने पहले विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, जिसमें उन्होंने हरियाणा विधानसभा में काम करने की जरूरत बताई थी. उन्होंने कहा कि अंतिम फैसला पार्टी हाईकमान को करना है. बाबरिया की घोषणा के बाद उन्होंने दोहराया कि वह चुनाव लड़ने के लिए हाईकमान से अनुमति लेंगी. सैलजा जानती हैं कि अगर उन्हें विधायक पद नहीं मिला तो मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी कमजोर पड़ सकती है. हरियाणा में कांग्रेस का इतिहास बताता है कि विधानसभा का अनुभव सीएम पद हासिल करने में अहम भूमिका निभाता है.


1968 चुनाव में हो चुका है कुछ ऐसा
गौरतलब हो कि साल 1968 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भगवत दयाल शर्मा और चौधरी देवी लाल दोनों ही सीएम पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया. देवी लाल ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए पूरे राज्य में अभियान चलाया, लेकिन पार्टी की जीत के बाद नेतृत्व ने निर्वाचित विधायकों में से सीएम का चयन किया, जो अंततः शर्मा के पक्ष में रहा.


कमजोर होगी सैलजा-रणदीप सिंह सुरजेवाला की दावेदारी
ऐसे में अगर हरियाणा चुनाव के बाद सीएम पद को लेकर कोई विवाद होता है तो फैसला फिर से विधायकों के हाथ में आ सकता है. अगर ऐसा होता है तो भूपेंद्र हुड्डा की स्थिति मजबूत हो सकती है, क्योंकि उस वक्त एसआर गुट के दोनों प्रमुख नेता कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला दोनों ही विधानसभा का हिस्सा नहीं हो होंगे. दूसरी ओर हुड्डा और सैलजा दोनों ही इन बातों से भलीभांती परिचित हैं. उधर कुमारी सैलजा भी पार्टी हाईकमान से अनुमति मांग रही हैं और हुड्डा सीएम के चयन में विधायकों की भूमिका पर जोर दे रहे हैं.


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कौन होगा सीएम का चेहरा
कांग्रेस भी चुनाव से पहले सीएम उम्मीदवार घोषित करने से परहेज कर रही है. हरियाणा भाजपा ने हाल ही में सोशल मीडिया पर कांग्रेस से सवाल किया था कि अगर राहुल गांधी ओबीसी और दलितों के समर्थक हैं, तो कुमारी सैलजा को सीएम उम्मीदवार घोषित किया जाना चाहिए. हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी उदयभान ने जवाब में पूछा कि क्या भाजपा ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में सीएम उम्मीदवार घोषित किए थे? दूसरी ओर जब भूपेंद्र हुड्डा से सीएम के चेहरे के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने आलाकमान और जीतने वाले विधायकों पर फैसला छोड़ दिया.


हुड्डा को विश्वास में लेने के लिए फैसला
बता दें कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की छवि ऐसी नेता की है कि अगर आलाकमान उनके फैसलों से असहमती जताता है तो वो मोर्चाबंदी शुरू कर देते हैं. पिछले हरियाणा चुनाव में, पार्टी द्वारा सीएम उम्मीदवार घोषित न करने के फैसले के बावजूद, हुड्डा ने प्रचार के दौरान खुद को उम्मीदवार अनौपचारिक रूप से घोषित कर दिया था. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि कांग्रेस नेतृत्व ने हुड्डा का विश्वास जीतने और बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ने के लिए सांसदों को टिकट न देने का फैसला किया हो सकता है. 


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