Makar Sankranti Khichdi Significanse 2023: मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर जाना शुरू करते हैं. हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति (उत्तरायण) को ही भगवान विष्‍णु ने दानवों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी. अमूमन माना जाता है कि मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन पंचांगों के मुताबिक इस बार 15 जनवरी मकर संक्रांति मनाने के लिए शुभ रहेगी.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

खिचड़ी खाना ही क्यों जरूरी 


इस बार 14-15 जनवरी की भोर करीब 3 बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसके बाद 15 की दोपहर तक पुण्यकाल रहेगा. इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने का विशेष महत्व है. इसके बिना त्योहार अधूरा माना जाता है. मगर सवाल ये है कि इस दिन खिचड़ी खाना ही क्यों जरूरी होता है और इसे खाने की शुरुआत कैसे हुई. 


ऐसी मान्यता है कि खिचड़ी खाने से जीवन में तमाम तरह के दोष दूर होते हैं. खिचड़ी में मिलाए जाने वाले चावल, हरी सब्जियां, हल्दी, काली दाल आदि का अलग-अलग ग्रहों से संबंध होता है. खिचड़ी के सेवन से नवग्रह की कृपा प्राप्त होती है और आरोग्य का वरदान मिलता है. साथ ही इसे दान करने से हर कार्य में सफलता मिलती है.


खिचड़ी खाने से बरसती है कृपा 


मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, दही चूड़ा खाने और दान करने से घर में सुख समृद्धि आती है. इसके अलावा खिचड़ी खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. शास्त्रों के अनुसार खिचड़ी में मिलाए जाने वाले जैसे चावल, काली दाल, हल्दी, हरी सब्जियां आदि पदार्थ का अलग-अलग ग्रहों संबंध है. जैसे खिचड़ी में मौजूद काली दाल के सेवन और दान से शनि, राहू-केतु के दुष्प्रभाव खत्म होते हैं. चावल से शांत रहते हैं. हल्दी का संबंध बृहस्पति और घी का संबंध सूर्य से है. हरि सब्जियों का संबंध बुध से है.


मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की कहानी भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ और खिलजी की सेना के बीच युद्ध से होती है. इस युद्ध की वजह से बाबा गोरखनाथ को खाना खाने का अवसर नहीं मिल पा रहा था. कई दिन भूखे रहने की वजह से वह काफी कमजोर हो गए थे. इसका हल निकालने  के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को मिलाकर एक पकवान बनाने को कहा, जिसे नाम दिया खिचड़ी. इसकी विशेषता होती है कि यह कम समय में बनने वाला खाद्य पदार्थ है और इसे खाने के बाद व्यक्ति में एक ऊर्जा भर जाती है.